03 जुलाई, सन 1999 को बिहार के प्रतिष्ठित व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेहद ख़ूबसूरत बेटी शिल्पी जैन एवं उनके मित्र गौतम सिंह की लाशें पटना के फ्रेज़र रोड स्थित एक क्वार्टर के गैराज से बरामद हुईं। यह क्वार्टर उस वक़्त राज्य की सत्तानशीं पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के विधायक एवं बिहार के अपराधी नेता लालू प्रसाद यादव के साले साधु यादव का था। एक ओर जहां शिल्पी जैन के पिता उज्ज्वल कुमार जैन स्थानीय व्यावसायिक संस्थान कमला स्टोर के मालिक थे तो वहीं दूसरी ओर गौतम सिंह के पिता बी० एन० सिंह राजद के बड़े नेताओं के बेहद क़रीबी माने जाते थे। विदित रहे कि बी० एन० सिंह ने चारा घोटालेबाज़ लालू प्राद यादव के द्वारा अंजाम दिए गए चारे घोटाले का धन हवाला-सूत्रों के माध्यम से विदेशी बैंकों में जमा करवाने का कार्य किया था। व्यवसायी उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी शिल्पी जैन पटना के विमेंस कॉलेज की छात्रा थीं और गौतम सिंह उनके बॉयफ्रेंड थे। गौतम सिंह और लालू यादव के विधायक साले साधू यादव, फ्रेज़र रोड में स्थित सिल्वर ओक रेस्टोरेंट में बिज़नेस पार्टनर्स थे।
03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह पिछले करीब 8 घंटों से लापता थे और अचानक जब उनकी लाशें विधायक अपराधी नेता साधु यादव के फ्लैट से मिलीं तो पूरे बिहार में हड़कंप मच गया। सियासी कनेक्शन होने के कारण देखते ही देखते यह ख़बर पूरे बिहार में आग की तरह फैल गई। मौक़े पर उपस्थित प्रत्यक्षदर्शी लोग बताते हैं कि पुलिस के गैराज तक पहुंचने से पहले ही राष्ट्रीय जनता दल के विधायक साधु यादव के गुंडे वहां पर पहुंच गए और उन्होंने वहां जमकर हंगामा खड़ा कर दिया। सबसे ज़्यादा हैरानी तो उस वक़्त तब हुई जब उजले रंग की जिस मारुति ज़ेन में शिल्पी और गौतम की लाशें मिली थीं, उस गाड़ी को पुलिस खींचकर नहीं बल्कि ड्राइव करके ले गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि एक संदिग्ध कार को मौका-ए-वारदात से ड्राइव करके ले जाने की वजह से गाड़ी से काफ़ी फिंगर प्रिंट्स मिट गए थे। पुलिस जब इस मामले की जांच में जुटी तो निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही पुलिस ने दोनों मौतों को आत्महत्या बताना शुरू कर दिया।
पुलिस की थ्योरी के मुताबिक शिल्पी जैन और गौतम सिंह की मौत कार्बन-मोनो-ऑक्साइड गैस की वजह से हुई थी लेकिन शिल्पी और गौतम के विसरा रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ कि दोनों के शरीर में लीथल एल्युमिनियम ज़हर था। इतना ही नहीं, कई लोगों ने यह भी दावा किया था कि शिल्पी के शरीर पर नोचने एवं जूतों से पीटे जाने के निशान भी मौजूद थे लेकिन पुलिस इस बात से हमेशा इनकार करती रही। उपरोक्त तथ्यों के अतिरिक्त भी इस मामले में एक और अहम तथ्य पाया गया था जिसे कि बिहार पुलिस ने बहुत ही सावधानी से छुपाने एवं हल्का करने का प्रयास किया। दरअसल शिल्पी के शरीर पर एक से ज्यादा लोगों के वीर्य के सैंपल भी पाए गए थे। शिल्पी का Vaginal Fluid, जो डीएनए टेस्ट के लिए हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला में भेजा गया था, उसकी रिपोर्ट में यह ख़ुलासा हुआ था कि मौत से पहले शिल्पी के साथ एक से अधिक लोगों ने सामूहिक-बलात्कार किया था। ज़ाहिर सी बात है कि हत्या से पहले शिल्पी जैन के साथ लालू प्रसाद यादव के गुंडे एवं बलात्कारी साले साधु यादव और उसके गैंग के गुंडों ने सामूहिक बलात्कार किया था लेकिन बिहार पुलिस ने उन्हें बचाने के लिए इन समस्त सबूतों को झुठलाने और दबाने का कार्य किया। उस समय के एसपी सिटी यह नहीं बता पाए कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कैसे शिल्पी के शरीर पर एक से अधिक व्यक्तियों के वीर्य के मौजूद होने की पुष्टि हुई?
उस वक़्त दबी ज़ुबान में इस बात की भी चर्चा थी कि जिस 03 जुलाई, सन 1999 के दिन शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशों की बरामदगी गांधी मैदान थाना के अंतर्गत जिस विधायक आवास से हुई थी, वास्तविकता में उस दिन और उस स्थान पर इन दोनों की हत्याएं नहीं की गई थीं। अन्वेषणकर्ताओं के अनुमान के मुताबिक़ इन दोनों की हत्याएं, लाशों की बरामदगी से एक दिन पहले यानी कि 02 जुलाई, सन 1999 को नगर के बालमी नामक स्थान पर की गई थीं परंतु अज्ञात कारणों से दोनों लाशों की बरामदगी, साधु यादव के फ्लैट से हुई दिखाई गई। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि इन लाशों की बरामदगी किसी और स्थान से दिखाई जानी थी अथवा लाशों को नष्ट किया जाना था परंतु संभवतः किसी के द्वारा दोनों की लाशों को साधु यादव की गैराज में देख लिए जाने के कारण ऐसा किया जाना संभव न हो सका और मजबूरी में वहीं पर लाशों की बरामदगी दिखानी पड़ गयी।
काफ़ी समय तक चली जांच के पश्चात यह मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के पास भी गया। सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की प्रक्रिया में एक बार जांचकर्ताओं ने साधु यादव से उनका डीएनए सैंपल भी मांगा ताकि शिल्पी के डीएनए से उसका मिलान किया जा सके परंतु सरकारी सिस्टम के अंदर लालू प्रसाद यादव की ज़बरदस्त पैठ के चलते संबंधित जांचकर्ता अधिकारी साधु यादव का डीएनए सैंपल प्राप्त नहीं कर सके। इसके बाद इस मामले में आगे चली जांच प्रक्रिया में आरोपियों की पहचान भी उजागर नहीं की गई थी और बाद में कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान आरोपियों को क्लीन चिट भी प्रदान कर दी गई। कुछ वर्षों के बाद शिल्पी जैन के भाई ने जब इस केस को फिर से खुलवाने और इसकी जांच करवाने के प्रयास करने शुरू किए तो उसके बाद उनका भी अपहरण हो गया।
कुल-मिलाकर इस पूरे घटनाक्रम का यह परिणाम निकला कि आज तक इस केस के पीछे के असली अपराधियों का नाम आधिकारिक रूप से प्रकाश में नहीं आ पाया और क़ानून की रोशनी में शिल्पी जैन तथा गौतम सिंह की हत्या का रहस्य अनसुलझा ही रह गया। फ़िलहाल, बिहारवासियों से ऐसी आशा की जाती है कि पूर्व में बिहार के ‘जंगलराज’ के दौरान घटी ऐसी हृदय-विदारक एवं मानवता-विरोधी घटनाओं से सबक़ लेते हुए वे भविष्य में कभी भी बिहार एवं राष्ट्र के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे एवं बिहार के राजनैतिक एवं सामाजिक परिदृश्य को अपराधियों, बलात्कारियों, गुंडों, लफंगों एवं आतंकवादियों से सदैव मुक्त रखने के लिए अपने हर-संभव प्रयास करेंगे।
शलोॐ…!