‘बिहार का जंगलराज’: बिहार-वासियों के ज़ेहन में आज भी ज़िंदा हैं ‘जंगलराज’ की यादें…

babaisraeli.com3424

यदि आप बिहार में सन 1990 के बाद के 15 वर्षों के कुशासन को याद करेंगे तो आपकी रूह कांप जाएगी। उस दौर में बिहार में लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी का कुशासन था। इस दौरान बिहार की स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि प्रदेश का चप्पा-चप्पा अपहरण, हत्या, बलात्कार, चोरी-डकैती, रंगदारी, भ्रष्टाचार जैसी घटनाओं के लिए ही जाना जाता था। बिहार के अंदर उस समय बिहार के हालात यहां तक बदतर हो गए थे कि पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के कुशासन पर सख्त टिप्पणी करते बिहार की शासन-व्यवस्था को स्पष्ट रूप से ‘जंगलराज’ कहा था।

आइए, ज़रा एक बार वर्ष 1990 के बाद के 15 वर्षों के बिहार के ‘जंगलराज’ को संक्षेप में बिंदुवार याद कर लेते हैं-

अपहरण बन गया था उद्योग:

लालू-राबड़ी के कुशासन में बिहार विश्व का एकमात्र ऐसा राज्य बन गया था जहां पर ‘अपहरण’ को उद्योग का अघोषित दर्ज़ा प्राप्त हो गया था। दुर्दांत आतताई लालू प्रसाद यादव की पार्टी के गुंडे जिसे चाहते थे, उसे बेरोकटोक उठा लिया करते थे। लालू गैंग के इन दुर्दांत अपहरणकर्ता गुंडों के निशाने पर ख़ासकर डॉक्टर, इंजीनियर एवं व्यापारी-वर्ग के लोग रहते थे। शायद आप इन आंकड़ों पर विश्वास नहीं करें परंतु वर्ष 1992 से लेकर वर्ष 2004 तक बिहार में अपहरण के कुल 32,085 मामले दर्ज़ किए गए थे। यहां पर यह बात भी ज्ञात रहे कि अपहरण के ये दर्ज़ यह मामले भी वास्तविक आंकड़े नहीं हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ बिहार में होने वाली अपहरण की घटनाओं के मात्र 3 से 5% मामले ही पुलिस स्टेशनों में दर्ज़ हो पाया करते थे और इनमें भी शायद ही किसी मामले में किसी अपराधी को कोई सज़ा मिलती थी।

हत्याओं का चलता था कारखाना:

बिहार पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक़ वर्ष 2000 से 2005 के बीच बिहार में पांच वर्षों में 18,189 हत्याएं हुईं थीं। इस आंकड़े को ध्यान में रखकर कोई भी व्यक्ति इस बात का सहज ही अंदाज़ा लगा सकता है कि किस तरह बिहार के जंगलराज में 15 वर्षों में 50,000 से ज़्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे। इस बात को पुनः यहां पर याद रखा जाना चाहिए कि हत्याओं के यह आंकड़े भी वास्तविक आंकड़े नहीं हैं। बिहार में हुई वास्तविक हत्याओं की संख्या दर्ज़ हुई हत्याओं के के मामलों से कहीं अधिक हैं।

चोरी और सीना-ज़ोरी का था आलम:

लालू यादव ने वर्ष 2002 में अपनी दूसरी बेटी रोहिणी की शादी में जिस तरह से अपने आसुरी कुशासन का नग्न प्रदर्शन किया था, उसे देखकर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में ‘बिहार के जंगलराज’ की चर्चा हुई थी। उस दौरान लालू गैंग के इशारे पर पटना के दर्ज़नों कार शो-रूम्स से नई कारें ज़बरन उठा ली गईं थीं और फ़र्नीचर की दुकानों से नया फ़र्नीचर हथिया लिया गया था। लालू यादव की इस आसुरी शक्ति के खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन एवं सत्ता के बेज़ा इस्तेमाल को देखते हुए कई विदेशी कार कंपनियों के डीलरों ने बिहार के अंदर अपने शो-रूम्स को बंद करने का फ़ैसला कर लिया था।

शासन के संरक्षण में होते थे बलात्कार:

लालू-राबड़ी के शासन में राबड़ी के भाइयों साधु यादव और सुभाष यादव ने आतंक मचा रखा था। साधु यादव ने अपने ही मित्र गौतम की प्रेमिका के साथ जघन्यतम तरीके से बलात्कार किया था। उसके बाद गौतम और उसकी प्रेमिका की हत्या कर दी गई थी लेकिन बिहार के कुशासन ने उस केस को सदा-सदा के लिए दबा दिया था। इसके अलावा बिहार के एक सीनियर आईएस ऑफिसर बी० बी० विश्वास की पत्नी चम्पा विश्वास बलात्कार काण्ड की भयावह यादें शायद ही कभी बिहार-वासियों की स्मृतियों से विस्मृत हो पाएं जब लालू यादव के गुंडों ने एक बार नहीं बल्कि दो साल साल से अधिक समय तक उसका बर्बरतापूर्ण तरीके से बलात्कार किया था। ज़रा सोचिए कि जब बिहार का एक सीनियर आईएएस अफ़सर तक अपनी बीबी की इज्ज़त को बचाने में नाकामयाब रहा तो बिहार की आम जनता कैसे अपनी बहू-बेटियों की इज़्ज़त को लालू गैंग के गुंडों से सुरक्षित रख पाई होगी?

पर्यटन उद्योग हो गया था तबाह:

लालू-राबड़ी के जंगलराज में हालत ऐसे थे कि बाहर से आने वाला कोई भी पर्यटक बिहार के अंदर बगैर लुटे-पिटे नहीं बचता था। विदेशी महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं आम बात हो गई थीं। ऐसे हालातों में कोई भी विदेशी पर्यटक बिहार आने की हिम्मत नहीं जुटा पता था।इस कारण से बिहार का पर्यटन उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो गया था।

मोटरसाइकिल के इंजन से बनते थे जनरेटर:

लालू-राबड़ी के जंगलराज में पड़ोसी राज्यों से आने वाले वाहनों में से अधिकतर वाहनों को चोरी करके चंद घंटों के अंदर ठिकाने लगा दिया जाता था। मोटरसाइकिल जैसे छोटे वाहनों को काटकर उनके इंजन से जनरेटर बनाने का धंधा जंगलराज में इतना कुख्यात हुआ था कि पड़ोसी राज्यों के लोग बिहार के अंदर भूलकर भी अपने वाहनों को लाने से डरते थे।

नरसंहारों का चलता रहा सिलसिला:

लालू-राबड़ी के राज में बिहार जातीय हिंसा की आग में झुलस गया था। भोजपुर का बथानी टोला नरसंहार, जहानाबाद का लक्ष्णपुर बाथे कांड, अरवल का शंकर बिगहा कांड, औरंगाबाद के मियांपुर गांव का नरसंहार जैसी घटनाएं- आज भी बिहारवासी भूले नहीं हैं।

राजनीति का अपराधीकरण:

लालू-राबड़ी शासन में शहाबुद्दीन, सूरजभान, पप्पू यादव जैसे कई नेताओं का अपने-अपने क्षेत्रों में आतंक व्याप्त था। उनका स्पष्ट कहना कानून था कि उनका आदेश ही शासन, प्रशासन और संविधान है। आज भी पटना के अंदर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो लालू गैंग के गुंडे रीत लाल यादव के आतंक को भूल पाया हो।

जाति-समुदायों में बंट गया था समाज:

हमको ‘परवल’ बहुत पसंद है और ‘भूरा बाल साफ करो’… जैसे नारों ने बिहार में जातीय-संघर्ष को इस क़दर बढ़ा दिया था कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परवल का पूरा-पूरा मतलब पाण्डेय यानि ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य यानी बनिया और लाला से लगाया जाता है। वहीं भूरा का मतलब भूमिहार और राजपूत से और बाल से तात्पर्य ब्राह्मण और लाला जाति से लगाया जाता है।

घोटालों की संस्कृति चढ़ी थी परवान:

लालू-राबड़ी के शासन काल में बहुत बड़े पैमाने पर ग़रीबों की हक़-मारी की गई। लगभग सभी कल्याणकारी योजनाओं के पैसे डकार लिए गए। अलकतरा घोटाले और चारा घोटाले ने मीडिया में इतनी सुर्ख़ियां बटोरीं कि इन घोटालों के विषय में न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत का बच्चा-बच्चा परिचित हो गया। शायद यह जंगलराज में किए गए पापों का परिणाम ही है जो आज लालू प्रसाद यादव सज़ायाफ़्ता क़ैदी के रूप में अपने गुनाहों की सज़ा भुगत रहे हैं। दुर्दांत अपराधी होने के कारण लालू यादव आज भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत चुनाव् लड़ने की क़ाबलियत नहीं रखते हैं। अतः उन्होंने अपने दोनों अपराधी पुत्रों- तेजस्वी यादव एवं तेज प्रताप यादव को अपनी पूर्व विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में राजनीति के मैदान में खड़ा किया है। एक पुरानी कहावत है कि ‘सांप के जाए सपोले, भविष्य में सांप ही बनते हैं’। अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि लालू-राबड़ी के पुत्रों का भी अंदाज़ भी ‘जंगलराज’ वाला ही है!

अब बिहार-वासियों को यह स्वयं निर्धारित करना है कि वे अपनी आने वाली पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य की ख़ातिर अपने मताधिकार का सदुपयोग करते हुए अपने हितों को सुनिश्चित करने वाली सरकारों का चयन करते हैं अथवा अपने तुच्छ जातिगत, वर्गगत, क्षेत्रगत अथवा किसी अन्य प्रकार के फ़ायदे को देखते हुए भस्मासुरी मोड में आकर आत्महत्या करने का मूर्खतापूर्ण निर्णय लेते हैं।

शलोॐ…!