जानिए, कैसे मात्र 1,071 मतों ने बिहार को मिनी-पाकिस्तान बनने से बचा लिया ???

babaisraeli.com202011176754

गत दिनों बिहार में हुए 17वीं विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी एवं उसकी सहयोगी पार्टियों के गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने जीत दर्ज़ करके एक बार फिर से बिहार की जनता के जनादेश को पुनः अपने पक्ष में कर लिया है। राजग द्वारा की गई पूर्व-घोषणा के अनुसार बिहार-राजग के नेता नीतीश कुमार ने दिनांक 16 नवंबर, 2020 को सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक नया रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है।

हो सकता है बिहार में हुई राजग की यह जीत कुछ लोगों को एक सामान्य जीत की तरह लगे लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में बिहार में हुई राजग की यह जीत कई मायनों में अहम है। बिहार चुनावों में हुई राजग की इस जीत ने भले ही उसके ऊपर बिहार की जनता के पहले के भरोसे को बरक़रार रखा हो परंतु इन चुनाव परिणामों ने बिहार के नेताओं सहित वहां की बहुसंख्यक हिंदू जनता के एक बड़े वर्ग तक को प्रत्यक्ष रूप से कई भविष्यगत संदेश एवं चेतावनियां प्रदान की हैं। ये संदेश एवं चेतावनियां क्या हैं, आइए संक्षेप में इस बात पर मनन एवं चिंतन करते हैं-

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए संदेश:

बिहार की जनता ने वहां के सत्तारूढ़ राजग गठबंधन को पुनः सत्ता प्राप्ति के लिए न्यूनतम-जनादेश प्रदान करके एक प्रकार से उसे यह चेतावनी प्रदान की है कि उसने उन्हें उनकी सेकुलर छवि के कारण नहीं बल्कि बिहार की बहुसंख्यक हिंदू आबादी की रक्षा के लिए चुना है। यदि बिहार की जनता को सेकुलर सरकारें ही चुननी होतीं तो उसके पास राजग के अलावा भी अन्य बहुत सारे विकल्प उपलब्ध थे।

इसके अलावा बिहार में एक कहावत है कि नीतीश कुमार किसी एक कुनबे के नहीं बल्कि सबके हैं अर्थात बिहार में यदि कोई भी मुख्यमंत्री होगा तो वह नीतीश कुमार ही होंगे, यह बात अलग है कि उनकी पार्टी के सहयोगीगण कौन होंगे? अतः बिहार राजग के लिए अब तक बड़े भाई की भूमिका निभाते आए नीतीश कुमार को भी बिहार की जनता ने निजी रूप से यह स्पष्ट संदेश प्रदान कर दिया है कि अब या तो आप स्वयं सुधर जाइए वरना आपको सिधार दिया जाएगा (राजनैतिक रूप से) क्योंकि अब बिहार में अधिक समय तक आपका यह दोहरा रवैया चलने वाला नहीं है।

विदित हो कि आज से लगभग 15 वर्ष पहले बिहार के जंगलराज से त्रस्त आकर वहां की जनता ने जिस भरोसे के साथ नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता सौंपी थी, आज से लगभग 5 वर्ष पहले नीतीश कुमार ने बिहार की जनता के उस विश्वास को पलीता लगाकर बिहार के भूतकालीन कुख्यात जंगलराज के मुखिया रहे जंगलाधीश लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ समझौता कर लिया था और उसके बाद बिहार की जनता को पुनः लालू गैंग के आतताई जंगलियों के हाथों में सौंप दिया था। यह बात अलग है कि कुछ ही समय बाद नीतीश कुमार को अपनी ग़लती का एहसास हुआ था और उन्होंने पुनः घर-वापसी करते हुए भाजपा के साथ गठबंधन करके बिहार की जनता के साथ किए गए घात का प्रायश्चित करने का प्रयास किया था।

इसके अलावा बिहार की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को भी प्रत्यक्ष रूप से यह संदेश देने का प्रयास किया कि इतने लंबे समय से बिहार में सक्रिय रहने के पश्चात भी वह बिहार के अंदर अपना बड़ा कैडर खड़ा नहीं कर पाई एवं नीतीश कुमार की पिछलग्गू बनकर उनके पीछे चलती रही। बिहार विधानसभा चुनाव-2020 के परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी को यह भी संदेश दिया है कि बिहार की जनता उससे नाराज़ नहीं है लेकिन नीतीश कुमार की सेकुलर नीतियों पर उसकी चुप्पी के चलते वह उससे भी अधिक प्रसन्न नहीं है।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन के लिए संदेश:

राजग को संदेश प्रदान करने के साथ ही बिहार की जनता ने बिहार में हुए विधानसभा चुनावों के माध्यम से बिहार के जंगलराज के लिए कुख्यात रहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को भी स्पष्ट रूप से यह संदेश प्रदान कर दिया है कि भले ही समय के साथ उनकी पार्टी के नेताओं में पीढ़ीगत परिवर्तन हुआ है परंतु बिहार की जनता उनकी नीतियों एवं प्राथमिकताओं से भली-भांति परिचित है और वह किसी भी स्थिति में बिहार का भविष्य उनकी पार्टी के अराजक, नक्सली एवं आतताई लोगों के हाथों में नहीं सौंप सकती है।

राजग के छोटे सहयोगी दलों के लिए संदेश:

विधानसभा चुनाव परिणामों के माध्यम से बिहार की जनता ने चिराग पासवान जैसे राजग के छोटे सहयोगी दलों को भी स्पष्ट रूप से यह संदेश प्रदान कर दिया है कि बिहार में उनकी ख़ुद की कुछ भी हैसियत नहीं है। यदि उन्हें अपने अस्तित्व को बचाकर रखना है तो अलगाव की अपेक्षा हिंदू-एकता के सिद्धांतों पर चलते हुए उन्हें एकजुट रहना ही होगा अन्यथा आने वाले समय में वे समूल नष्ट कर दिए जाएंगे।

बिहार की जनता द्वारा स्वयं के लिए संदेश:

बिहार में राजग को मिली जीत और राजद गठबंधन को मिली हार के बीच मतों के मामूली-अंतर का आंकड़ा यह इंगित करता है कि राजनीतिक पार्टियों को दिए गए संदेशों के अलावा बिहार की जनता ने स्वयं के एक बड़े हिस्से को भी एक अहम संदेश प्रदान किया है। वह संदेश यह है कि यदि बिहार की बहुसंख्यक हिंदू जनता अपने निजी स्वार्थों और लिप्सा के वशीभूत होकर अपनी एकता को तोड़ने की भूल करेगी तो भविष्य में उसे इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह क्या क़ीमत होगी, वर्तमान में शायद इसकी परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है परंतु कूटनीति एवं राजनीति-शास्त्र के आचार्यों के कूटनीतिक एवं राजनीतिक विश्लेषणों के उपरांत इस विषय में काफ़ी कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।

उपरोक्त वर्णित तथ्यों की पुष्टि के लिए नीचे दिया गया एक बहुत छोटा-सा राजनीतिक विश्लेषण बहुत कुछ स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है-

मात्र 1,071 मतों ने बिहार को मिनी-पाकिस्तान बनने से बचा लिया:

बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के परिणामों का सघनता के साथ विश्लेषण करने के उपरांत पता चलता है कि एक ओर जहां बिहार के बेटे चिराग़ पासवान ने राजग से अलग होकर चुनाव लड़ा और लगभग 5.66% मत प्राप्त करने के बाद भी उनकी सेकुलर पार्टी जैसे-तैसे एक सीट पर ही जीत दर्ज़ कर सकी, वहीं दूसरी ओर एआईएमआईएम नामक कट्टर इस्लामी पार्टी के प्रमुख मोहम्मद असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में बैठे-बैठे बिहार चुनावों में मात्र 1.24% मत प्राप्त करके मज़हब के नाम पर सीमांचल क्षेत्र की 5 मुस्लिम बाहुल्य सीटें झटक लीं। बिहार के मुस्लिम समुदाय ने ऐसा करके बिहार के सेकुलर धड़ों को स्पष्ट रूप से यह संदेश प्रदान कर दिया कि वे भारत की तथाकथित सेकुलरी गंगा-जमुनी तहज़ीब का केवल तभी तक ढिंढोरा पीटेंगे जब तक उनकी जनसंख्या निर्णायक रूप से राजनीतिक परिदृश्य को बदलने के लिए कम रहेगी। जैसे ही उनकी जनसंख्या एक निश्चित सीमा से अधिक होकर राजनीतिक परिणामों को बदलने के लिए पर्याप्त हो जाएगी, उसके उपरांत वे उपरोक्त वर्णित तथाकथित सेकुलरी गंगा-जमुनी तहज़ीब को लात मारकर अपने हम-मज़हबी लोगों के साथ खड़े हो जाएंगे। बिहारी मुस्लिम समुदाय की इस मज़हबी कट्टरता से सबक़ लेते हुए नीतीश कुमार एवं लालू प्रसाद यादव गैंग के सेकुलर गुर्गों को बिहार की इस्लामी जमात द्वारा दिए गए इस बेहद अहम संदेश में निहित कटु-सत्य को समझते हुए अपनी सेकुलर नीतियों पर पुनः सिरे से विचार करना चाहिए।

जैसा कि आप जानते हैं कि 243 विधानसभा सीटों वाली 16वीं विधानसभा के लिए हुए बिहार चुनावों में राजग ने 125 सीटों पर विजय प्राप्त की है। राजग को मिले इस पूर्ण बहुमत में उसे सरकार बनाने के लिए आवश्यक 122 सीटों से मात्र 3 सीटें ही अधिक मिली हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि राजग को मिली 125 सीटों में से यदि उसके हाथ से 4 सीटें भी बाहर निकल जातीं तो बिहार में राजग की सरकार बननी बिलकुल असंभव हो जाती।

चुनाव आयोग द्वारा प्रदान किए गए डाटा के अनुसार बिहार की हिलसा, बरबीघा एवं भोरे विधानसभा सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सहयोगी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने मात्र 12, 113 एवं 462 मतों से तो बछवारा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने मात्र 484 मतों से अपने विपक्षी उम्मीदवारों के ऊपर जीत दर्ज़ की है। इस प्रकार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सहयोगी पार्टियों जनता दल (यूनाइटेड) एवं भारतीय जनता पार्टी द्वारा इन चारों सीटों के ऊपर प्राप्त की गई जीतें मात्र 1,071 मतों के मामूली अंतर से प्राप्त हुई हैं।

कुल-मिलाकर उपरोक्त चुनावी विश्लेषण के उपरांत यह निष्कर्ष सामने निकल कर आता है कि यदि बिहार विधानसभा की उपरोक्त चारों सीटों पर ये 1,071 मत क्रमशः 12, 113, 462 एवं 484 के चार जत्थों में विभाजित होकर उपरोक्त चारों सीटों पर विपक्षी उम्मीदवारों के पाले में चले जाते तो यह बताने की शायद आवश्यकता नहीं है कि बिहार चुनाव के परिणाम आज क्या होते? शायद बिहारवासी इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि यदि ऐसा हुआ होता तो मात्र 5 विधायकों के दम पर बिहार के ऊपर ओवैसी की इस्लामी हुकूमत क़ायम हो जाती और बिहार अगला बंगाल बनने की ओर अग्रसर हो जाता!

वीडियो: विकास को लेकर क्या हम चाटेंगे…???एक बिहारी मुस्लिम मतदाता

बिहार सहित पूरे आर्यावर्त के हिंदुओं, यह मत समझना कि हाल-फ़िलहाल में बिहार में राजग की सरकार बनने के बाद तुम्हारे ऊपर मंडराने वाला ख़तरा अब समाप्त हो गया है। इन चुनाव परिणामों ने एक ऐसी भविष्यगामी भयावह वास्तविकता को तुम्हारे सामने रखने का प्रयास भर किया है जो बहुत जल्दी तुमसे रूबरू होने वाली है। जो लोग भविष्य में झांकने की क्षमता रखते हैं, वे लोग इस चुनावी परिणाम का आकलन कर इस बात को भली-भांति समझ सकते हैं कि 12 करोड़ की आबादी वाले बिहार जैसे बड़े राज्य में मात्र 1,071 मतों के अंतर से इस्लामी हुकूमत का क़ायम न हो पाना, हिंदुओं के लिए प्रसन्नता की नहीं अपितु भविष्य में होने वाले एक महा-युद्ध की चेतावनीपूर्ण पूर्व-आहट है।

इन 1,071 निर्णायक मतों के द्वारा हाल-फ़िलहाल में बिहार के वर्तमान एवं भविष्य को इस्लामी हाथों में जाने से बचाने के प्रयासों में सैकड़ों गुमनाम सनातनी हिंदू भाई-बहनों का विशेष सामूहिक योगदान रहा है। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि इन्हीं गुमनाम हिंदू-आत्माओं के द्वारा टीम बाबा इज़रायली के गिलहरी प्रयास भी फलीभूत हुए हैं। माता भारती से प्रार्थना है कि वे निस्वार्थ-भाव से अपनी सेवा करने वाले अपने पुत्र-पुत्रियों को कूटनीतिक, राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सबल एवं सक्षम बनाने की कृपा करें ताकि उनका सेवा-कार्य निर्बाध रूप से अनंत-काल तक इसी प्रकार चलता रहे।

आशा है कि उपरोक्त सत्य एवं षड्यंत्रों के विषय में पूर्व-भविष्यवाणियों एवं उद्घाटन के बाद बिहार सहित पूरे भारत की बहुसंख्यक हिंदू जनता अपनी पूर्व-ग़लतियों से सबक़ लेते हुए अपने अस्तित्व एवं भविष्य को सुरक्षित करने के प्रयासों के विषय में गंभीरता से सोचना शुरू करेगी।

शलोॐ…!