तुर्की से आए इस्लामी आक्रांता व लुटेरे ज़हीर-उद-दीन मोहम्मद बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखा है कि अधिकतर हिंदुओं को केवल मरना ही आया, मारना नहीं। शायद यही वजह है कि अधिकतर हिंदू पराजेय हैं अर्थात उन्हें आसानी के साथ पराजित किया जा सकता है। बाबर की यह बात इस संदर्भ में भी सटीक बैठती है कि हिंदुओं ने युद्ध में आवश्यकता से अधिक नैतिकता, उदारता एवं सहिष्णुता का परिचय देते हुए युद्ध के परिणामों की अपेक्षा युद्ध के क्रियान्वयन पर अधिक बल दिया और अंततोगत्वा विशाल आर्यावर्त की भूमि का एक बड़ा हिस्सा अपने हाथों से खोकर आज अपनी ही नैसर्गिक भूमि पर द्वितीयक नागरिक की भूमिका में रहने को मजबूर हो गए।
पिछली 8 शताब्दियों में हिंदुओं ने अपनी इस आत्मघाती नीति से बिल्कुल भी सबक़ नहीं लिया और आज भी हिंदुओं का यह भस्मासुरी तरीक़ा बदस्तूर क़ायम है। आज के समय में एक ओर जहां यदि सब्ज़ी काटने का चाकू भी किसी हिंदू के हाथ में आ जाता है तो वह उसके साथ अपनी सेल्फ़ी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करके स्वयं को योद्धा दिखाने के मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन में जुट जाता है वहीं दूसरी ओर ठीक उसी समय उसके असंख्य शिकारीगण एके-47 जैसे विभिन्न प्रकार के विनाशकारी हथियारों की बड़ी खेपों को अपनी इबादतगाहों और घरों में छुपाकर उसकी बर्बादी की पटकथा लिखने में जुटे हुए होते हैं। इसके अतिरिक्त यदि कोई नीतिवान व्यक्ति हिंदुओं को कोई नीतिगत बात समझाने का प्रयास भी करता है तो मूर्ख हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग उसको समझने और उस पर चलने से पहले उस नीतिगत बात को अपने विरोधियों के ही समूहों में अग्रेषित करके अपनी बौद्धिक अक्षमता का नग्न प्रदर्शन करता हुआ दिखाई पड़ता है।
यह बात केवल आम हिंदू पर ही लागू नहीं होती है बल्कि यह बात हिंदुओं के सभी छोटे-बड़े संगठनों पर भी एकरूपता के साथ लागू होती है। एक ओर जहां 93 वर्ष पहले अस्तित्व में आया एक दुर्दांत हिंदू-विरोधी इस्लामी जिहादी संगठन लगभग एक शताब्दी तक अपनी समस्त जिहादी गतिविधियों को बाह्य दुनिया से छुपाकर करोड़ों की संख्या में सशस्त्र इस्लामी मुजाहिदीन को तैयार करने में क़ामयाब हो जाता है वहीं दूसरी ओर उस से 2 वर्ष बड़ा एवं 95 वर्ष पुराना हिंदुओं का सबसे बड़ा संगठन 95 वर्षों तक केवल लाठी में तेल पिलाता हुआ दृष्टिगोचर होता रहता है और इस प्रकार वह भविष्य में होने वाले अवश्यंभावी युद्ध के प्रति अपने कर्तव्यों के मानकों पर अपने शत्रु ख़ेमे के समक्ष तुलनात्मक रूप से बौना साबित होता है। इतना ही नहीं हिंदुओं के छोटे-बड़े लगभग सभी संगठन इससे एक कदम आगे जाकर शस्त्र-पूजन जैसे अनेक दिखावटी कार्यक्रमों के अवसर पर काग़ज़, लकड़ी एवं बग़ैर धार वाले हथियारों के ओछे प्रदर्शनों के द्वारा अपने पूर्ववर्ती ऐतिहासिक पतन के उपरांत पैदा हुई कुंठा को तृप्त करने का नाहक प्रयास करते हैं और अपनी ऐतिहासिक कायरता का उन्मत्त प्रदर्शन करते हुए अपने विरोधियों को ही उत्तेजित एवं आक्रोशित करके उन्हें अपने भविष्यगत उन्मूलन हेतु और अधिक युद्धस्तरीय तैयारियां करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित भी करते रहते हैं।
यह बात हिंदुओं के तथाकथित स्वयं-भू शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों, धर्मगुरुओं एवं कथा-वाचकों पर भी समान रूप से लागू होती है। पहली बात तो हिंदुओं के धर्मगुरुओं का एक बड़ा वर्ग पहले से ही तथाकथित सेकुलरिज़्म एवं गंगा-जमुनी तहज़ीब के आगोश में समा चुका है जो अपनी तथाकथित धर्मसभाओं में व्यास-गद्दी पर बैठकर अली मौला, अली मौला के भजन गाते हुए भगवान श्री कृष्ण के महान योगी, कूटनीतिक एवं विराट व्यक्तित्व का वाचन एवं चित्रण करने के स्थान पर उनके माखन-चोरी जैसे बाल्यकालीन कार्यों का भद्दा चित्रांकन करके हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं को जागृत करने की अपेक्षा एक प्रकार से उन्हें कुंद करने का प्रयास करते हैं। हिंदुओं के धर्मगुरुओं का दूसरा वर्ग जो स्वयं को एक जागरूक राष्ट्रवादी के तौर पर प्रकट करता है, भले ही उसके प्रयासों को प्रथम दृष्टया नकारा न जा सके परंतु यह बात भी शत-प्रतिशत सत्य है कि उसके द्वारा सार्वजनिक रूप से दिए जा रहे उग्र-व्याख्यानों एवं अत्यंत निम्न-स्तरीय तथाकथित शौर्यपूर्ण प्रदर्शनों को देखकर हिंदू समुदाय की तुलना में हिंदू-विरोधी तबका कहीं अधिक सावधान और हथियारबंद हो रहा है।
कुल-मिलाकर म्यांमार के बौद्ध भिक्षु विराथु बनने के चक्कर में ऐसे अविवेकशील हिंदू-धर्मगुरुओं के ये मूर्खतापूर्ण कृत्य भविष्य में उनके जीवन को तो संकट में डालने का कार्य कर ही रहे हैं अपितु उनके ये कार्य हिंदू और हिंदू-विरोधियों के बीच में शक्ति-असंतुलन को भी और अधिक बढ़ा रहे हैं। मीडिया सूत्रों की ओर से मिली ताज़ातरीन सूचना यह है कि अगले 8 वर्षों के अंदर कट्टर इस्लामी जिहादी संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद सवा करोड़ मुस्लिमों की फ़ौज तैयार करने जा रहा है। यह फ़ौज कैसी होगी और इसका मक़सद क्या होगा, इसके विषय में जानने के लिए आप ‘ग़ज़वा-ए-हिंद’ का सिद्धांत और केरल में तैयार हो चुकी पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफआई) की मुजाहिदीन की फ़ौज का अवलोकन कर सकते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद भले ही इस फ़ौज को अशस्त्र बताए, लेकिन इस्लामी मुजाहिदीन की इस फ़ौज को सशस्त्र होने में कितना समय लगेगा, यह बताने की अधिक आवश्यकता नहीं है। समस्त हिंदू समुदाय को इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि हिंदुओं के तमाम छोटे-बड़े हिंदूवादी संगठन और हिंदू धर्मगुरुओं के अखाड़े, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के द्वारा तैयार की जाने वाली मुस्लिम युवाओं की इस फ़ौज का मुक़ाबला करने के लिए क्या तैयारी कर रहे हैं? पूर्व में जैसा कि एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुदीन ओवैसी 15 मिनट के अंदर भारत के 100 करोड़ हिंदुओं को मार देने की आतंकवादी धमकी दे ही चुके हैं, उस पर गंभीरता के साथ विचार किया जाए तो भविष्य में मुस्लिम युवाओं की इस फ़ौज के द्वारा यदि भारत की शांतिप्रिय हिंदू आबादी पर हमला किया जाता है (मौजूदा हालातों को देखकर जिसकी 100% संभावना है) तो उस समय हिंदूवादी संगठनों एवं हिंदू धर्मगुरुओं के अखाड़ों के पास अपनी हिंदू आबादी को भविष्यगामी इस्लामी जिहादी हमलों से बचाकर रख पाने की क्या योजना है?
अपने अस्तित्व पर मंडराते हुए अब तक के सबसे बड़े ख़तरे को भांपकर भी यदि हिंदू समुदाय ने तुरंत ही अपनी सुरक्षा-व्यवस्थाओं का समुचित प्रबंध न किया तो हिंदुओं के पास डूब मरने के लिए भी जल शेष नहीं बचेगा। अपने पूर्वजों की वीरता की ऐतिहासिक भूतकालीन कथाओं के सपनों में जीकर वर्तमान में स्वयं को महान मानने वाले शुतुरमुर्गी हिंदुओं को शत्रुओं से प्रत्यक्ष भिड़कर स्वयं को नष्ट कर देने की आत्मघाती नीति को त्यागकर अपनी पूर्वगामी नीति में परिवर्तन लाना ही होगा। स्वयं को पूर्णतया सुरक्षित करते हुए अपने अस्तित्व के लिए संकट बनने वाले शत्रुओं का संपूर्ण विनाश करना ही एक आदर्श योद्धा की पहचान है। ऐसा करने से व्यक्ति भविष्य में भी अपने एवं अपनी संस्कृति के दुश्मनों का संहार करने के लिए बचा रहता है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने भी इसी नीति पर चलकर स्वयं को नष्ट होने से बचाया था। अल्पकालिक वाहवाही एवं थोथे दिखावे के चक्कर में स्वयं को समाप्त कर देने वाले लोग एवं ऐसे लोगों को योद्धाओं के आइकन के रूप में प्रतिस्थापित करने के चक्कर में उनकी वाहवाही करने वाले उनके मूर्ख प्रशंसक वास्तव में राष्ट्र एवं धर्म के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हैं।
राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के नाम पर स्वयं नष्ट हो जाने की अपेक्षा स्वयं को सुरक्षित रखकर राष्ट्र एवं एवं धर्म-विरोधियों को नष्ट कर देने की नीति ही सर्वोत्तम नीति है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो जब हम स्वयं सुरक्षित रहेंगे तभी हम राष्ट्र एवं धर्म-विरोधियों को नष्ट कर पाने में सक्षम होंगे। महान राष्ट्र आर्यावर्त की पुरातन कृष्ण-नीति भी यही कहती है, आचार्य चाणक्य की चाणक्य-नीति का भी यही मत है और ‘By the way of deception, thou shalt do war…’ अर्थात ‘छल-छद्म एवं भेद के माध्यम से तू युद्ध कर…’ नामक सूत्र-वाक्य का अनुसरण करते हुए स्वाभिमान के अप्रतिम प्रतीक राष्ट्र इज़रायल की इज़रायली नीति भी यही कहती है।
शलोॐ…!