नाव जिहाद: बदायूं के ककोड़ा मेला में कहीं किसी जिहादी घटना की साज़िश तो नहीं रची जा रही है…???

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उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के ककोड़ा नामक स्थान के पास एक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है जिसे ‘ककोड़ा मेला’ के नाम से जाना जाता है। काकोड़ देवी मंदिर से माता की लाई गई झंडी के मेला-प्रांगण में प्रतिस्थापन के साथ ही इस मेले का आयोजन प्रारंभ हो जाता है। मेले का यह आयोजन इतने बड़े स्तर पर होता है कि इसे ‘रुहेलखंड के कुम्भ’ के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लाखों लोग आते हैं और वहां पर कई दिनों तक प्रवास भी करते हैं। मेले में आए हुए लोग गंगा जी में स्नान करने के पश्चात स्थानीय मंदिरों के दर्शन एवं गंगा जी में नौका-विहार का आनंद भी लिया करते हैं। इस कारण मेला-अवधि के दौरान स्थानीय प्रशासन द्वारा लोगों को नौका-विहार करवाने के लिए मल्लाहों की अल्पकालिक नियुक्ति की जाती है।

इस बार भी ककोड़ा मेला में नौका-विहार के लिए कुछ मल्लाहों को नियुक्त किया गया है लेकिन बहुत ही आश्चर्य की बात यह है कि पुरातन-परंपरा के विपरीत इस बार जो 31 मल्लाह नियुक्त हुए हैं, वे सभी के सभी विश्व के सबसे शांतिप्रिय समुदाय माने जाने वाले शांतिदूत समुदाय से हैं। विश्व की कई बड़ी आतंकवादी घटनाओं को बेहद नज़दीक से अन्वेषित करने के उपरांत हमें इस बात को कहने में कोई संकोच नहीं है ककोड़ा मेला प्रशासन के द्वारा शत-प्रतिशत शांतिदूत मल्लाहों की नियुक्ति करना, मेले में नौका-विहार करने वाले श्रद्धालुओं की जानों को ख़तरे में डालने का प्रत्यक्ष प्रयास करने जैसा है। आप इस बात की कल्पना कीजिए कि यदि आने वाले दिनों में इनमें से किसी ईमानवाले मुजाहिद मल्लाह के दिमाग में इस बात का कीड़ा काट जाए कि उसे काफ़िरों को मार कर ग़ाज़ी बनना है और जन्नत में अपनी सीट आरक्षित करनी है तो इस बात का क्या अंजाम हो सकता है? स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति में उक्त मुजाहिद ‘नाव-जिहाद’ की जिहादी घटना को अंजाम देते हुए हिंदुओं से भरी हुई नौका को गंगा जी में भी पलटा सकता है! उस समय चूंकि सारे के सारे मल्लाह ईमानवाले मुजाहिदीन ही होंगे तो फिर उन डूबते रहे हिंदुओं को बचाने के लिए कौन आयेगा?

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चित्र: ककोड़ा मेले में नियुक्त शांतिदूत मल्लाहों की सूची

अतः हमारा स्थानीय हिंदुओं एवं हिंदूवादी संगठनों से यह आग्रह है कि वे इस मामले की जांच करवाएं कि प्रशासनिक अमले में बैठी हुई वह कौन-सी काली भेड़ थी जिसने इस हिंदुओं के ही मेले में हिंदुओं को दर-किनार करते हुए केवल और केवल शांतिदूतों को ही मल्लाह नियुक्त किया? क्या ककोड़ा क्षेत्र में रहने वाले सारे हिंदू मल्लाह मर गए थे अथवा उनमें से किसी ने इस मेले में मल्लाह बनने के लिए आवेदन ही प्रस्तुत नहीं किया जो प्रशासन के द्वारा शत-प्रतिशत शांतिदूत मल्लाहों को नियुक्ति प्रदान की गई?

भाइयों एवं बहनों, हमको प्रथम दृष्टया ही यह मामला अत्यंत संदिग्ध दिखाई पड़ रहा है। हमारा ऐसा विश्वास है कि यदि सही से जांच होती है तो इस मामले में कहीं न कहीं कोई बड़ा गड़बड़-झाला अवश्य निकलेगा। अतः अब स्थानीय हिंदुओं एवं हिंदूवादी संगठनों को इस मामले की तह में जाने के लिए तत्काल-प्रभाव से हर-संभव प्रयास करने शुरू कर देने चाहिए। ईश्वर ने चाहा तो साज़िश बेनक़ाब होकर रहेगी!

शलोॐ…!