एक विवाह का कार्यक्रम चल रहा था। अचानक से बीच में ही फेरों के दौरान दूल्हे की तबीयत बिगड़ गई। अतः विवाह की सारी रस्में जल्दी-जल्दी पूरी करवाने के बाद साथ में आए बाराती लोग उसको चिकित्सालय में इलाज के लिए लेकर गए लेकिन अफ़सोस दूल्हे की जान नहीं बचाई जा सकी।
इस घटना के बाद समाज और परिजनों के कहने के बावजूद भी दुल्हन ने दूसरा विवाह नहीं किया। जो तलवार दूल्हे ने फेरों के समय अपने पास रखी थी, उसी को लेकर वह अपनी ससुराल चली गई और अपना सारा जीवन अपने सास-ससुर एवं देवर-जेठ के बच्चों की सेवा और देखभाल में लगा दिया।
हो सकता है कि उपरोक्त वर्णित कहानी आपको कोई फ़िल्मी कहानी सी प्रतीत हो परंतु यह कहानी एकदम सच्ची कहानी है। यह कहानी है भारत के राजस्थान राज्य के जोधपुर स्थित करणू गांव में रहने वाली 104 वर्षीया गजरा कंवर की जिनके पतिव्रत-धर्म की मिसालें आज भी दी जाती हैं। राजस्थान के जोधपुर के निकट स्थित सिहड़ा गांव की रहने वाली 19 वर्षीया गजरा कंवर का विवाह आज से 85 वर्ष पहले मूल सिंह पातावत के साथ हुआ था। विवाह की रस्मों के मध्य फेरों के दौरान ही मूल सिंह की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें समीपवर्ती फलौदी के एक चिकित्सालय में भर्ती करवाया गया परंतु चिकित्सकों की अनेक कोशिशों के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका और इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गई।
उसके बाद मायके एवं ससुराल वालों के लाख कहने के पश्चात भी गजरा कंवर ने अपने दूसरे विवाह के लिए हामी नहीं भरी और पति की तलवार को ही अपना पति मानकर ससुराल रवाना हो गईं। इसके बाद उन्होंने अपने सास-ससुर की मृत्युपर्यंत सेवा की। फ़िलहाल, अब वे अब 104 वर्ष की हैं और अपने जेठ के पोतों के साथ जोधपुर में रह रही हैं।
पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली एक सनातनी वीरांगना की इस गाथा को पढ़कर हर हिंदू का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। माता गजरा कंवर जैसी महान स्त्रियों की बदौलत ही हमारी महान सनातन सभ्यता और संस्कार आज तक जीवित हैं। वर्तमान समय में तेज़ी से पतनोन्मुखी भारतीय परिवेश के साथ इस स्तुत्य गाथा की तुलना करने के उपरांत उनके सम्मान में राष्ट्रकवि डॉ० राहुल अवस्थी जी की ये प्रसिद्ध पंक्तियां सहसा ही स्मरण हो आती हैं कि-
“अवधि के शाप का आंगन तुम्हारा कौन देखेगा
नयन का ये बरसता घन तुम्हारा कौन देखेगा
शहर फौलाद का है ये यहां हैं लोग पत्थर के
यहां पर कांच जैसा मन तुम्हारा कौन देखेगा
पबों में शाम ढलती तो क्लबों में रात गलती है
यहां पर भोर का अर्चन तुम्हारा कौन देखेगा
यहां है चाह में कोई मगर है बांह में कोई
यहां विश्वास का वंदन तुम्हारा कौन देखेगा
यहां सबमें मिलावट है यहाँ तक भावनाएं भी
वचन की शुद्धता का धन तुम्हारा कौन देखेगा
यहां हर ओर भूखे भेड़ियों के दांत दिखते हैं
यहां पर आत्म-अनुशासन तुम्हारा कौन देखेगा
यहां हर एक ख़्वाहिश जन्म से बिगड़ैल होती है
बयानों में कुंवारापन तुम्हारा कौन देखेगा”
आज ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- 08 मार्च’ के अवसर पर माता गजरा कंवर जैसी भारत-पुत्रियों के श्री चरणों में हम सभी सनातनीजन सादर नमन करते हैं!
शलोॐ…!