अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार 2 नवंबर, 1990 की सुबह, पवित्र हिंदू तिथि कार्तिक पूर्णिमा की सुबह थी। हज़ारों की संख्या में हिंदू साधु-संत और राम-भक्त पतित पावनी सरयू मैया में स्नान करने के बाद अपने प्रभु श्री राम के नाम का स्मरण करते हुए उनके जन्म-स्थान की कार सेवा करने के लिए रवाना हुए थे। तभी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से आए एक इस्लामी हुक्म के मातहत तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा अपने मातहतों से मुख़ातिब हुए कि उनके आका का हुक्म है कि कारसेवा करने जा रहे हिंदू साधु-संतों और राम-भक्तों को किसी भी क़ीमत पर उनके आराध्य के जन्म-स्थान के दर्शन करने से रोक दिया जाए।
फिर क्या था, उनके सिपहसालारों ने घेरा बनाकर राम-भक्तों को आगे बढ़ने से रोक दिया। इसके बाद राम-भक्त जहां थे, वे बग़ैर विरोध किए वहीं पर शांतिपूर्वक बैठ गए और अपने प्रभु श्री राम के स्मरण में जुट गए। जब लखनऊ स्थित उनके आका को यह मालूम हुआ कि राम-भक्तों ने अयोध्या में सड़क पर ही डेरा डाल दिया है तो कट्टरपंथियों का आंख का तारा बनने की ख़्वाहिश रखने वाले हिंदूद्रोही इस्लामी सुल्तान दुरात्मा मु-ल्ला-यम सिंह यादव ने अपनी सियासी ताक़त का बेज़ा इस्तेमाल किया और अपने प्यादों को बल का प्रयोग करके राम-भक्तों को श्री राम ही की नगरी से बाहर फिंकवाने के औरंगज़ेबी फ़रमान पर ख़ूनी दस्तख़त कर दिए।
उसके बाद आईजी ने अपने आका के हुक्म की लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ तामील करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को राम-भक्तों पर बल प्रयोग करने के लिए फ्री-हैंड दे दिया। पुलिस ने आव न देखा ताव, आंसू गैस का प्रयोग करके राम-भक्तों के ऊपर लाठीचार्ज कर दिया। लाठी चार्ज होने के बाद भी राम-भक्त न तो उत्तेजित हुए, न डरे और न ही घबराए। हां, राम-भक्तों ने अपने स्थान पर ही रामधुन गानी अवश्य शुरू कर दी। इस बात की ख़बर होते ही मु-ल्ला-यम सिंह यादव नामक इस्लामी कट्टरपंथी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया और उसने अयोध्या को राम-भक्तों से मुक्त करने के लिए उनके उपर लाठीचार्ज करने और उनका क़त्लेआम करने का हुक्म जारी कर दिया।
उसके बाद राम-भक्तों के ऊपर लाठीचार्ज शुरू हो गया। लाठीचार्ज के परिणामस्वरूप रक्त रंजित होने के पश्चात भी शांति के साथ रामधुन गाते हुए राम-भक्तों के ऊपर पुलिस के द्वारा फायरिंग भी शुरू कर दी गई। एक-एक राम-भक्त को जान से मार डालने के लिए वहां पर तैनात वर्दीधारी जल्लादों ने अपने सुल्तान के हुक्म की तामील की और रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर बारूदी पीतल का निशाना बनाया गया।
एक अनुमान के मुताबिक़ लगभग 1,000 से अधिक राम-भक्तों के ख़ून से सरयू का पानी लाल हो उठा। अगले दिन 3 नवंबर, 1990 को देश के प्रसिद्ध समाचार-पत्र जनसत्ता ने लिखा कि राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका कि नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने ख़ून से सड़क पर ‘सीताराम’ लिखा। पता नहीं कि यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात और गोलियां मारीं।
उस समय छपी ख़बरों के ज़रिए से यह बात पता चली कि अयोध्या में हुए हिंदू-क़त्लेआम के बाद पुलिस और सुरक्षा बल, ज़िंदा बचे हुए घायलों को न तो ख़ुद उठा रहे थे और न ही किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे। ऐसा संभवतः धूर्त हिंदूद्रोही मौलाना मु-ल्ला-यम सिंह यादव के आदेश के अनुसार ही किया जा रहा था। नाम न बताने की शर्त पर उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस में एक उच्च पद पर मौजूद रहे अधिकारी ने बाबा इज़रायली को बताया कि मौलाना मु-ल्ला-यम सिंह यादव ने राम-भक्तों के ऊपर फायरिंग का कोई लिखित आदेश नहीं दिया था। मु-ल्ला-यम ने एक इस्लामी सुल्तान की मानिंद मौखिक रूप से राम-भक्तों के ऊपर फायरिंग करने का औरंगज़ेबी हुक्म जारी किया था। फायरिंग के काफ़ी समय बाद ज़िला मजिस्ट्रेट से राम-भक्तों के क़त्लेआम के हुक्मनामे पर दस्तख़त करवाए गए।
इस फायरिंग की घटना में उत्तर प्रदेश पुलिस के द्वारा किसी भी निहत्थे राम-भक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोलियां मारी गईं ताकि अधिक से अधिक राम-भक्तों का क़त्ल सुनिश्चित किया जा सके। इस मु-ल्ला-यमी क़त्लेआम ने मोहम्मद बिन कासिम, महमूद ग़जनवी, मोहम्मद गौरी, तैमूर, बाबर, औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान सरीखे दुर्दांत आतंकवादी इस्लामी ज़ालिम बादशाहों के ज़ुल्मों की यादों का स्मरण करवा दिया।
अयोध्या नगरी का प्रसिद्ध तुलसी चौराहा राम-भक्तों के ख़ून से रंग गया। विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ़ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी जी और 20 साल के शरद कोठारी जी भी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद जी को घर से बाहर निकाल कर सड़क पर बैठाया और उनके सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार जी भी कूद पड़े और उस इंस्पेक्टर की अगली गोली रामकुमार जी के गले को भी पार कर गई। इस तरह दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर उनका बेरहमी के साथ क़त्ल कर दिया गया।
राम अचल गुप्ता जी, जिनकी अखंड रामधुन बंद नहीं हो रही थी तो उनकी आवाज़ को शांत करने के लिए उन्हें पीछे से गोलियां मारकर छलनी कर दिया गया। गुप्ता जी के कितनी गोलियां लगी थीं, इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जाली की तरह उनके शव के एक पार से दूसरी पार तक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।
रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधु-संतों पर फायरिंग की गई। कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी के माथे पर इतनी गोलियां मारी गईं कि उनका भेजा तक बाहर निकल आया। रामबाग़ के ऊपर से एक साधु आंसू गैस से परेशान राम-भक्तों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। इस बात की सज़ा देते हुए उन्हें घात लगाकर निशाना बनाया गया और वह छत से नीचे गिरकर तत्काल अपने प्रभु श्री राम से जा मिले।
जनसत्ता ने अगले दिन की ख़बर में बलिदानियों की संख्या 40 और बुरी तरह से ज़ख्मी घायलों की संख्या 60 बताते हुए लिखा था कि घायलों का तो कोई हिसाब ही नहीं है। इसके अलावा जनसत्ता ने अपनी उस रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियांवाला बाग़ से भी जघन्य कांड किया है। इसके अलावा मौके पर रहे एक पत्रकार ने जहां मृतकों की संख्या 45 बताई तो वहीं प्रसिद्ध समाचार पत्र दैनिक जागरण ने यह संख्या 100 के पार बताई। आज ने 200 की मौत की बात कही तो कुछ समाचार-पत्रों ने 400 राम-भक्तों के बलिदान होने की बात स्वीकार की।
इस घटना के जो प्रत्यक्षदर्शी वहां से भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब हुए, यदि उनकी मानें तो उस दिन अयोध्या में 1,000 से भी अधिक राम-भक्तों का क़त्लेआम हुआ था। अयोध्या में राम-भक्तों का इतना ख़ून बहाया गया कि सरयू का पानी तक लाल हो उठा था। फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े राम-भक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए और उनको गुपचुप ठिकाने लगा दिया गया। मृतकों की वही संख्या सामने आ पाई, मीडिया के आ जाने के कारण जिनके शव सुरक्षा बल और पुलिस के जल्लाद ठिकाने नहीं लगा पाए।
इस घटना के बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आंकड़े तो नहीं दिए थे लेकिन मीडिया के आंकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। यहां तक कि तत्कालीन फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिंग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि अयोध्या में कितने राउंड गोलियां चलाई गई थीं! उनके पास मृतकों और ज़ख्मी लोगों का आंकड़ा भी मौजूद नहीं था।
घटना के काफ़ी बाद में जब सरकारी जांच की खानापूर्ति हुई तो आधिकारिक तौर पर मृतकों की संख्या 17 बताई गई लेकिन मौलाना मु-ल्ला-यम ने एक जनसभा में स्वयं इस बात को गर्व के साथ स्वीकार किया कि इस घटना में उसने 28 राम-भक्तों को हलाक़ करवाया था। हालांकि घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना और हमेशा इस बात को दोहराया कि उस दिन अयोध्या में 1,000 से अधिक राम-भक्तों का क़त्लेआम हुआ था। सनद रहे कि इस आंकड़े में 30 अक्टूबर, 1990 के दिन क़त्ल किए गए उन 5 कारसेवकों की संख्या को शामिल नहीं किया गया है जिनको कि बिल्कुल इसी प्रकार से श्री राम के पास भेज दिया गया था।
इस घटना के बाद हिंदूद्रोही आतंकवादी मुलायम को मौलाना मु-ल्ला-यम का ख़िताब हासिल हुआ। वर्ष 2017 में अपनी इस बेशर्मी भरी आतंकी करतूत का बखान करते हुए उसने 28 राम-भक्तों के क़त्ल की बात को स्वीकार किया था और यह कहा था कि यदि ज़रूरत पड़ती तो और राम-भक्तों को भी क़त्ल कर दिया जाता! इसके अलावा एक अन्य चुनावी सभा में इस्लामी आतंकवादियों से वोट मांगते हुए इस नीच मु-ल्ला-यम ने कहा था कि याद है, मैंने कैसे कारसेवकों के ऊपर गोलियां चलवाई थीं?
इतना सब कुछ स्पष्ट होने के बाद एवं अपने मुंह से अपनी इस करतूत को गर्व के साथ स्वीकार करने वाले इस नीच हिंदूद्रोही को जो दंड मिलना चाहिए था, वह उसे नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन बेशर्म रामद्रोही हिंदुओं पर लानत हो कि इतनी निकृष्ट हरकत को अंजाम देने वाले इस नीच को दंडित करने के स्थान पर उन्होंने इसे एक बार नहीं बल्कि कई बार उत्तर प्रदेश की गद्दी पर बैठाया और इसकी नस्लों को खाद-पानी प्रदान किया। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश के हिंदुओं ने इसके संपोले अखिलेश यादव उर्फ़ टोंटी चोर को भी अपना प्रचंड बहुमत देकर राज्य का सुल्तान नियुक्त किया।
हालांकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में संभवतः उत्तर प्रदेश के हिंदुओं का ज़मीर कुछ हद तक जागा और उन्होंने इस निकृष्ट रामद्रोही के रक्त की बादशाहत को नकार कर अपने पापों का प्रायश्चित किया। गोरक्ष पीठाधीश्वर परम पूज्य महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज के अघोषित चेहरे के दम पर लड़े गए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ इस धूर्त की नमाज़वादी पार्टी को धूल चटाई। उत्तर प्रदेश, जो कि इस कुटिल गैंग के दुःशासन में जंगलराज के आग़ोश में आ गया था- धीरे-धीरे ही सही परंतु मुक्ति के पथ पर अग्रसर होने लगा। युगों से इस्लामी शासन में रहने के अभ्यस्त प्रदेश के हिंदुओं को अपनी पुरातनता, सनातनता और समागमता का बोध हुआ। दिव्य प्रयाग, भव्य काशी और वैराग्य-नगरी अयोध्या जैसे सनातन धर्म के पुरातन गौरव, इज़रायली अभिमान के साथ एक बार फिर से अपने मूल स्वरूप में लौटने लगे।
पूरे भारतवर्ष में यह केवल उत्तर प्रदेश ही एकमात्र ऐसा राज्य था जिसके निवासियों ने वर्ष 2017 से लेकर वर्ष 2022 तक के समय को वर्तमान समय में सबसे श्रेष्ठतम रूप में जिया। कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई आपाधापी एवं भयावहता में भी यह केवल उत्तर प्रदेश ही था जो न केवल भारतवर्ष में बल्कि वैश्विक रूप से महामारी के सर्वोत्तम प्रबंधन के लिए विख्यात हुआ।
हालांकि ऐसा नहीं है कि इस 5 वर्ष के योगीराज ने उत्तर प्रदेश के हिंदुओं की दबी हुई आकांक्षाओं को पूर्ण रूप से संतुष्टि प्रदान कर दी थी। हिंदुओं का पूर्ववर्ती सनातन गौरव अभी शतांश भी अपने पूर्व रूप में नहीं आ पाया है। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी भले ही पहले से अधिक सुंदर रूप में दृष्टिगोचर हो रही हो परंतु अभी भी बाबा विश्वनाथ के आंगन में बैठे हुए हमारे नंदी महाराज की दृष्टि, हिंदुओं के पूर्ववर्ती पापों को पूरी तरह से भस्म नहीं कर पाई है। श्री हरि विष्णु के द्वापरीय अवतार एवं हम बाबा इज़रायली जैसे सनातनी कूटनीति के छात्रों के आदिगुरु द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण का प्रोजेक्ट, ‘प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः’ अभी भी अपूर्ण ही रहा है।
अतः इन समस्त कामनाओं और भावनाओं की संपूर्णता के लिए केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्ष के हिंदुओं को अपनी सततता और निरंतरता को संरक्षित करके रखना होगा। उन्हें अपने उस पूर्ववर्ती भगवा-नेतृत्व की रस्सी को पकड़ कर रखना होगा जो कि उन्हें लगातार सनातनी महानता की ओर अग्रसर कर रही है। यदि भारत के हिंदू बस थोड़े और समय तक कोई ग़लती नहीं करते हैं तो संभव है कि उनका प्राचीन सनातनी गौरव एक बार फिर से उनके मस्तक पर विराजमान हो जाए परंतु यदि भारत के हिंदू किसी भी प्रकार के कालनेमीय छलावे में फंस कर कुल्हाड़ी के ऊपर अपना पैर मारते हैं तो समझ लीजिए कि उन्होंने अपने ‘डेथ वारंट’ पर स्वयं दस्तख़त कर दिए हैं!
शलोॐ…!