मुज़फ़्फ़रनगर, पिछले 8 वर्षों से उत्तर प्रदेश की सियासत में एक प्रमुख भूमिका रखने वाला शहर बन कर उभरा है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति की धुरी माने जाने वाले इस शहर का ज़िक्र किए बग़ैर आज के उत्तर प्रदेश की राजनीति की परिचर्चा पूरी नहीं होती है। आज आपको बाबा इज़रायली बता रहे हैं कि जाटलैंड का सेंटर कहे जाने वाले मुज़फ़्फ़रनगर में 8 साल पहले क्या हुआ था?
27 अगस्त, 2013 को जानसठ कोतवाली के कवाल गांव में अपनी बहन के साथ छेड़खानी का विरोध करने के कारण इस्लामी आतंकवादियों ने दो ममेरे भाइयों अमर हुतात्मा स्व. सचिन तालियान और स्व. गौरव तोमर जी की हत्याएं कर दी थीं। उसके बाद पुलिस के द्वारा हत्यारोपियों को पकड़ लिया गया लेकिन नमाज़वादी पार्टी के आतंकवादी नेता मोहम्मद आज़म ख़ान के द्वारा किए गए एक फ़ोन के उपरांत पुलिस को हत्यारों को छोड़ना पड़ गया। पुलिस के द्वारा हत्यारोपियों को छोड़ने के निर्णय से स्थानीय जाटों के अंदर आक्रोश उत्पन्न हो गया और उन्होंने समाज की महापंचायत बुलाने की घोषणा कर दी।
जाटों की महापंचायत होने की ख़बर मिलते ही उधर इस्लामी आतंकवादियों ने भी अपनी महापंचायत बुलाने का ऐलान कर दिया। दोनों समुदायों के द्वारा महापंचायतें आयोजित की गईं जिसके कि बाद मामला आगे बढ़ने लगा। 7 सितंबर, वर्ष 2013 को नंगला मंदौड़ में हुई महापंचायत में इस घटना के ऊपर तीखा रोष व्यक्त किया गया और हत्याकांड के दोषियों को विधिपूर्वक दंडित करवाने की योजना पर आम सहमति बनाई गई।
महापंचायत से लौटते समय स्थानीय इस्लामी आतंकवादियों ने जौली नहर के पास लोगों के ऊपर अचानक से हमला कर दिया। इस दौरान तक़रीबन दो दर्ज़न ट्रैक्टर और कई मोटरसाइकिलें फूंक दी गईं। चश्मदीदों के मुताबिक़ कुछ शव नहर में फेंक दिए गए। इसके साथ ही मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे। उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठी नमाज़वादी सरकार के दम पर स्थानीय इस्लामी चरमपंथियों और आतंकियों ने जाटों को जमकर निशाना बनाकर उनकी हत्याएं कीं। नमाज़वादी आतंकवादी मोहम्मद आज़म खां के इशारे पर शासन और प्रशासन ने इस्लामी आतंकियों को इस काम में सरकारी चैनल से मदद मुहैया करवाई।
कभी नमाज़वादी पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे एक मौलाना के मुताबिक़ मोहम्मद आज़म खान ने “जाटों को काटो सालों को… टुकड़े कर दो…” जैसा वक्तव्य देकर अपने गुर्गों से स्थानीय जाटों को जमकर सबक़ सिखाने के दिशा-निर्देश प्रदान किए थे। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ इस इस्लामी हिंसा में पांच दर्ज़न लोगों से अधिक मारे गए और 45,000 से अधिक लोग राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर हुए।
दंगों के पश्चात असली गुनहगारों के ऊपर कार्यवाही करने के स्थान पर प्रदेश की इस्लामी नमाज़वादी हुक़ूमत ने उल्टे जाट समुदाय को ही निशाने पर ले लिया और उसके 6,000 से अधिक बच्चों के ऊपर फ़र्ज़ी मुकदमे दर्ज़ करवा कर उनको जेलों में ठूंस दिया। मोहम्मद आज़म ख़ान ने खुल्लमखुल्ला दबंगई दिखाते हुए इस्लामी दंगाइयों को बचाने का पूरा-पूरा प्रयास किया। आज़म ने तत्कालीन तत्कालीन डीएम सुरेंद्र सिंह और एसएसपी मंज़िल सैनी का तबादला करके हिरासत में लिए गए सभी इस्लामी आतंकवादियों को छोड़ने के हुक्म जारी कर दिए। आज़म ने अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से उत्तर प्रदेश पुलिस के 5 निरीक्षकों पर भी कार्यवाही की।
दंगों के कुछ समय पश्चात इस मामले से संबंधित एक स्टिंग ऑपरेशन में पुलिसवालों को आज़म ख़ान का नाम लेते हुए भी देखा गया था पर नमाज़वादी प्रभाव के कारण गठित की गई एसआईटी ने इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं मानी थी। वहीं भाजपा सांसद संजीव बालियान और विरोधी दलों ने भी आज़म ख़ान पर यह आरोप लगाया था कि उन्होंने तत्कालीन डीएम और एसएसपी का तबादला करवाया था। इस मामले में काफी हो-हल्ला हुआ लेकिन नमाज़वादी हुक़ूमत में किसी भी आवाज़ को बुलंदी हासिल नहीं हुई।
मालूम हो कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मोहम्मद आज़म ख़ान को नोटिस जारी किया था। साथ ही न्यायालय ने मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के मामलों में निलंबित किए गए 5 पुलिसवालों के निलंबन पर भी रोक लगा दी थी। उस दौरान पुलिसवालों ने आरोप लगाया था कि यह निलंबन आज़म ख़ान के इशारे पर किया गया था और उन्हीं के दबाव के चलते सचिन और गौरव की हत्या करने वाले 7 इस्लामी आतंकवादियों को रिहा किया गया था। बताते हैं कि इसी वजह से क्षेत्र में दंगे भड़के थे जिनके कारण 5 दर्ज़न से अधिक लोगों को अपनी जानों से हाथ धोना पड़ा और 45,000 से अधिक लोगों को विस्थापन का दंश भोगना पड़ा।
वर्तमान में किसान यूनियन के कथित नेता और वामपंथी उग्रवादी चे ग्वेरा के वैचारिक शिष्य रहे अर्बन नक्सली नेता राकेश टिकैत ने भी उस वक़्त मुज़फ़्फ़रनगर हिंसा को लेकर इशारों-इशारों में नमाज़वादी पार्टी के एक स्थानीय नेता पर इस्लामी आतंकवादियों की मदद करने का आरोप लगाया था। समाचार पत्र दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान टिकैत ने कहा था कि 27 अगस्त से 7 सितंबर तक मुज़फ़्फ़रनगर के एक स्थानीय नमाज़वादी नेता के कहने पर ही पुलिस प्रशासन की ज़ुबां बंद रही। दो आला अफ़सरों ने ज़ुबान खोलने की हिम्मत दिखाई भी तो उनका तबादला कर दिया गया। कवाल कांड के आरोपितों को थाने से छुड़वाया गया जिसकी वजह से आक्रोश भड़का।
उस समय राकेश टिकैत ने कहा था कि नंगला मंदौड़ महापंचायत में भाजपा विधायक संगीत सोम हों या सुरेश राणा, किसी ने भी ऐसा भाषण नहीं दिया कि जिससे उन्माद भड़कता हो। नमाज़वादी हुक़ूमत द्वारा संगीत सोम व सुरेश राणा पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) के अंतर्गत की गई कार्यवाही पूरी तरह से ग़लत है। पुलिस अफ़सरों को चाहिए कि वे सियासी चक्रव्यूह से निकल कर दंगों के असली गुनाहगारों पर शिकंजा कसें।
वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के पश्चात मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दोषियों के ऊपर कड़ी कार्यवाही की गई। राज्य सरकार ने युद्ध स्तर पर कार्य करते हुए दोषियों के ख़िलाफ़ साक्ष्य जुटाए और अंततः फ़रवरी 2019 में कवाल कांड के सभी 7 दोषियों- मोहम्मद मुजम्मिल, मोहम्मद मुजस्सिम, मोहम्मद फ़ुरकान, मोहम्मद नदीम, मोहम्मद जहांगीर, मोहम्मद अफ़जल और मोहम्मद इक़बाल को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई। दंगों के अन्य दोषियों के ऊपर भी संबंधित मामलों में कार्यवाही हुई। मोहम्मद आज़म ख़ान और और उसके परिवार के अन्य सदस्य भी अपने गुनाहों के लिए जेल में ठूंसे गए। आशा है कि दंगों के अन्य बचे-खुचे अपराधी भी देर-सबेर अपने अंजाम को ज़रूर पहुंचेंगे।
बता दें कि बीते दिनों नमाज़वादी पार्टी ने रामपुर जिले की पांचो सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। इन उम्मीदवारों में जेल में बंद आतंकवादी मोहम्मद आज़म ख़ान को रामपुर सीट से टिकट दिया गया है। इसके अलावा अखिलेश यादव ने आज़म ख़ान के बेटे अब्दुल्ला आज़म ख़ान को नज़दीकी स्वार-टांडा सीट से टिकट दिया है। इधर राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी पहले ही यह शर्मनाक बयान दे चुके हैं कि उन्होंने जाटों का कोई ठेका नहीं ले रखा है और उनके लिए जाट केवल ‘एक वोट मात्र’ है।
ख़ैर, अब यह उत्तर प्रदेश की जनता को निर्धारित करना है कि वह मुज़फ़्फ़रनगर दंगों जैसे मानवताविरोधी कुकृत्यों में संलिप्त रहने वाले नमाज़वादी आतंकवादियों को अपना समर्थन प्रदान करके उत्तर प्रदेश की सत्ता पर दोबारा से उनको क़ाबिज़ करवाने की भूल करेगी अथवा वह उत्तर प्रदेश में शांति एवं क़ानून के राज को स्थापित करने वाली योगी आदित्यनाथ की भगवा सरकार को अपना समर्थन प्रदान करके प्रदेश को सुख, शांति एवं समृद्धि की राह पर अग्रसर करेगी। याद रहे कि उत्तर प्रदेश की जनता के द्वारा लिया जाने वाला यह निर्णय, उसकी आने वाली नस्लों के भविष्य को निर्धारित करने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
शलोॐ…!