‘बिहार का जंगलराज’: सरिता-महेश हत्याकांड…

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सामाजिक कार्यकर्ता रहे सरिता और महेश ने बिहारी-समाज को सशक्तता प्रदान करने की दिशा में कार्य करते हुए बिहार के अंदर एक लंबे समय तक सामूहिक खेती और सामुदायिक विकास के अनेक प्रयोग किए थे। उन्होंने फतेहपुर, गया में लगभग चार वर्षों तक कार्य करके तक़रीबन चालीस गावों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था। उनके प्रयासों से एक बड़े क्षेत्र में शराब-बंदी, आपसी झगड़ों का निबटारा, स्वच्छता-जागरूकता, बच्चों और वयस्कों की शिक्षा के कार्यक्रम, ग्राम-संगठनों का निर्माण, महिला-हिंसा से जुड़े मामलों का निवारण, गावों में बिजलीकरण, सामूहिक खेती एवं मछली-पालन, भूमिहीन परिवारों को भूमि पर कब्ज़ा दिलवाना, विकलांगों का पुनर्वास जैसे कई सामजिक कार्य किए गए।

इन कार्यों के लिए उन्होंने श्रमदान, ग्राम-समितियों का गठन और सामूहिक एकता को बढ़ावा देने वाले प्रयासों को अपना बुनियादी उसूल बनाया था। इसके अलावा उन्होंने विकास मद के सरकारी पैसे को सीधे ग्राम-समितियों को स्थानांतरित करवाने और सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के प्रयास भी किए थे।

उनके इन प्रयासों से बिहार के भ्रष्ट सरकारी तंत्र के अंदर बंदर-बांट करने वाले भ्रष्टाचारियों,  अपराधियों, बाहुबलियों एवं धूर्त-राजनीतिज्ञों के स्वार्थों पर इस क़दर चोट पहुंची कि उन्होंने 24 जनवरी, सन 2004 को इन दो समर्पित सामाजिक कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या कर दी।

शलोॐ…!