‘बिहार का जंगलराज’: दुर्दांत अपराधी साधु यादव के कुकर्मों की दास्तान…

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बिहार की राजनीति के कलंक साधु यादव के बग़ैर बिहार की राजनीति का दुर्भाग्य परिभाषित नहीं किया जा सकता है। बिहार के जंगलराज के मुखिया लालू प्रसाद यादव के साले एवं बिहार के दुर्दांत जंगली अपराधी अनिरुद्ध प्रसाद यादव उर्फ़ साधु यादव ने अपने आसुरी आतंक से न केवल बिहार बल्कि भारत के नाम को दुनिया में गंदा करने का जो महापाप किया था, दुनिया के किसी दंड-विधान में उसकी कोई सज़ा ही मौजूद नहीं है। लालू प्रसाद यादव के कुशासन में साधु यादव ने बिहार में वह आतंक बरपाया था कि जिसके क़िस्से सुनकर रावण, कुंभकर्ण, कंस और जरासंध जैसे राक्षसगण भी यदि आज धरती पर ज़िंदा होते तो वे उनको अपना उस्ताद मानकर साक्षात दंडवत प्रणाम करने लग जाते।

साधु यादव भारत माता का वह कपूत था जिसने अपनी पैशाचिक प्रवृत्तियों से बिहार के साथ-साथ समस्त यादव कुल एवं हिंदू समाज को कलंकित करके रख दिया था। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि विश्व के समस्त इतिहासकार भी साधु यादव की असुरता और नीचता के विषय में लिखने बैठ जाते और समस्त धरा, वन-सम्पदा एवं सागर के जल को क्रमशः कागज़, क़लम एवं स्याही बना लेते तो भी वे शायद ही साधु यादव एवं उसके गैंग की नीचता, कमीनगी एवं समाज-द्रोहिता को पूर्ण रूप से परिभाषित कर पाने में क़ामयाब हो पाते।

लालू प्रसाद यादव एवं उनकी धर्म पत्नी राबड़ी देवी के शासनकाल में साधु यादव की तूती बोलती थी। न सिर्फ पार्टी बल्कि पूरे बिहार में साधु यादव की वह धाक थी जिसके बारे शायद आज की पीढ़ी कल्पना तक नहीं कर सकती है। बिहार के अंदर वहां की राजनैतिक-धरा के नर-पिशाच कहे जाने वाले साधु यादव की गणना एक ऐसे दबंग-बाहुबली के रूप में होती थी जिसका नाम सुनकर शैतान भी डरकर भाग जाते थे। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जंगलाधीश लालू प्रसाद यादव की वजह से ही साधु यादव, विधान-परिषद और विधानसभा में आरजेडी विधायक के रूप में पहुंचे थे। सन 2004 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पार्टी उम्मीदवार के रूप में गोपालगंज सीट से लोकसभा का चुनाव जीता था।

लालू-राबड़ी राज में साधु यादव पर दबंगई करने, व्यापारियों को परेशान करने, बाहुबलियों को राजनीतिक प्रश्रय देने, बलात्कार एवं हत्याएं करने जैसे तक कई आरोप लगते रहे हैं। उन पर सन 2016 में पटना में एक बिल्डर से 50 लाख रुपए की रंगदारी मांगने का आरोप लगा था जो काफ़ी चर्चित रहा था। बिहार के चर्चित बाढ़ राहत घोटाले में भी साधु यादव का नाम आया था जिसके बाद उन्हें अदालत में समर्पण करके ज़मानत लेनी पड़ी थी। इसके अलावा बिहार भवन में जेएनयू के एक छात्र पर हमला करवाने का आरोप भी साधु यादव पर लगा था। सन 1999 के बिहार के चर्चित गौतम सिंह एवं शिल्पी जैन बलात्कार एवं हत्याकांड मामले में भी साधु यादव का नाम आया था। इस मामले में सीबीआई ने साधु यादव से जब उनका डीएनए टेस्ट करवाने के लिए कहा था तब उन्होंने टेस्ट को करवाने से साफ़ इनकार कर दिया था। उपरोक्त आरोपों के अलावा भी साधु यादव पर गोली चलाकर दहशत फैलाने, हत्याओं के प्रयास करने, रंगदारी न देने पर पिटाई एवं हत्याएं करने, दंगा करवाने, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने समेत कई आरोप लगे थे परंतु दीदी-जीजा की सरकार की कृपा के कारण किसी भी मामले में उन पर कभी कोई कार्यवाही नहीं हुई।

‘बिहार के जंगलराज’ के दौरान बिहार के अंदर ‘अपहरण’ एक उद्योग का स्थान ले चुका था जिसका मंत्रालय साधु यादव के अधीन था। नाम न बताने की शर्त पर बिहार के एक उद्योगपति ने इस विषय में हमारे एक संवाददाता के समक्ष स्वीकार किया कि ‘बिहार के जंगलराज’ के समय यदि उनके बच्चे स्कूल से घर लौटने में 5 मिनट भी लेट हो जाते थे तो वह अपनी घड़ी देखने लग जाते थे। बच्चों के घर लौटने में यदि 10 मिनट की देरी होती थी तो वह यह सोचने लग जाते थे कि उनके बच्चे अभी तक घर क्यों नहीं आए? यही देरी बढ़कर जब 15 मिनट की हो जाती थी तो तनाव के कारण वह कुर्सी छोड़कर अपने घर के बाहर बने बरामदे में टहलने लग जाते थे और बच्चों के घर पहुंचने में 20 मिनट की देरी होते ही वह तेज़ी से घर के अंदर दौड़कर अपनी तिजोरी से रुपए निकालकर गिनने लग जाते थे। सन 2003 में मशहूर फिल्म निर्देशक प्रकाश झा ने साधु यादव की दबंगई, गुंडई और उनके आपराधिक चरित्र को दर्शाने के लिए ‘गंगाजल’ नामक एक फ़िल्म भी बनाई थी जो उस समय काफ़ी हिट रही थी।

आज न तो बिहार में लालू राज है और न ही साधु यादव से लालू ख़ानदान की नज़दीकियां, मगर फिर भी साधु यादव एक बार फिर से बिहार के चुनावी मैदान में हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में साधु यादव ने बीएसपी के प्रत्याशी के तौर पर गोपालगंज विधानसभा सीट से अपना नामांकन-पत्र भरा है। इस बार भी उन पर यह आरोप है कि उनके नामांकन करने के दौरान पूरे शहर में हजियापुर से लेकर मौनिया चौक तक एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था जिसमें क़रीब 300 से लेकर 400 लोग शामिल हुए थे। इस बाबत सदर सीओ विजय कुमार सिंह ने क़ुबूल किया कि साधु यादव की ओर से उक्त रैली की इजाज़त नहीं ली गई थी।

साधु यादव के जीवन-वृत्त का अच्छे से अध्ययन करने के बाद आख़िर में इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि समय की मार के कारण बिहार की राजनीति में आज भले ही साधु यादव अपनी प्रासंगिकता खो चुके दिख रहे हैं मगर ऐसा नहीं है कि साधु यादव ने अपने आपराधिक इतिहास से किसी प्रकार की कोई तौबा की है। अतः इस बात को शत-प्रतिशत दावे के साथ कहा जाता है कि आने वाले समय में यदि साधु यादव को बिहार की राजनीति में अपने पैर जमाने का पुनः मौका मिलता है तो वह पूर्व की तरह बिहार की राजनीति एवं समाज को गंदा करते हुए पुनः बिहारवासियों को ख़ून के आंसू रुलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। अतः बिहारवासियों को यदि अपनी एवं अपनी आने वाली पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य की लेश-मात्र भी परवाह है तो उन्हें साधु यादव एवं उन जैसी मानसिकता वाले अपराधियों एवं गुंडों को उनकी असली औक़ात दिखाते हुए बिहार के राजनैतिक एवं सामजिक परिदृश्य से सदा-सदा के लिए लात मारकर बाहर फेंकना ही होगा।

शलोॐ…!