छोटी दीवाली पर श्री राम से सीखें वचन-बद्धता का पालन करना…

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ईश्वर न करे हममें-आपमें किसी को भी 14 वषों की किसी भी प्रकार की कारा से दो-चार होना पड़े परंतु फिर भी दुर्भाग्यवश यदि किसी के साथ ऐसा हो भी जाता है तो सोचिए कि क्या हम-आप 14 वर्षों पूर्व राह चलते दिए गए अपने वचनों और प्रतिबद्धताओं को निभाना तो दूर, याद भी रख पाएंगे अथवा नहीं? हम सभी को सबसे पहले तो इस प्रश्न पर अपने अंतर्मन से विचार करना चाहिए उसके बाद हमें इसका प्रत्युत्तर तलाशने के लिए भगवान श्री राम के जीवन-चरित्र में झांकना चाहिए।

वन-गमन के समय श्री राम विभिन्न स्थानों पर विभिन्न लोगों से भेंट करते हुए गए थे। इसी क्रम में श्री राम की भेंट निषादराज से भी हुई थी जिसके उपरांत अल्प-समय के लिए श्री राम ने उनका आतिथ्य भी ग्रहण किया था। कुछ समय निषादराज के पास बिताने के बाद जब श्री राम उनके पास से प्रस्थान करने लगे तो निषादराज ने उनसे पुनः अपने राज्य में पधारने के लिए अनुरोध किया। श्री राम ने भी अपने मित्र निषादराज के इस अनुरोध को सहर्ष स्वीकारते हुए उनको वचन दिया कि जब वह अपने वनवास-काल को पूर्ण करके अयोध्या लौटेंगे तो वे उनसे अवश्य भेंट करते हुए जाएंगे।

इसके अलावा वन-गमन के समय जब श्री राम महर्षि भारद्वाज के आश्रम में उनका आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचे थे तो महर्षि भारद्वाज ने श्री राम से वन से वापसी के समय पुनः अपने आश्रम में पधारने का अनुरोध किया था। श्री राम ने महर्षि भारद्वाज के इस अनुरोध को उनका आदेश मानते हुए वन से वापस होते समय पुनः उनके दर्शन करने का वचन दिया था।

14 वर्षों के वनवास-काल के पूर्ण हो जाने के उपरांत श्री राम एवं उनके सहचरगण जब अयोध्या जाने के लिए तैयारियां करने लगे तो श्री राम ने अपने परम भक्त श्री हनुमान से कहा कि हे हनुमान, जैसे-जैसे हमारे अयोध्या जाने की घड़ी समीप आ रही है, वैसे-वैसे भरत की व्याकुलता भी बढ़ती ही जा रही होगी। चूंकि हमें अयोध्या जाते समय अपने मित्र निषादराज एवं पूज्य महर्षि भारद्वाज से भेंट करनी है, अतः कहीं ऐसा न हो कि हमारे अयोध्या पहुंचने में थोड़ा-सा भी विलंब हो जाए और अनुज भरत अपनी प्रतिज्ञानुसार अपने साथ कुछ अशुभ घटित कर दें। इसलिए तुम अविलंब अयोध्या के लिए प्रस्थान करो और वहां जाकर अनुज भरत को यह सूचना दो कि हम सभी जल्द ही अयोध्या पहुंचने वाले हैं।

श्री हनुमान ने रामादेश का तत्क्षण ही पालन करते हुए अयोध्या के लिए आकाश-मार्ग से उड़ान भरी और शीघ्र ही अयोध्या पहुंचकर अनुज भरत को श्री राम के अयोध्या-आगमन के विषय में पूर्व-सूचना प्रदान की। श्री राम के आगमन की प्रसन्नता में श्री भरत ने अपनी कुटिया की चौखट पर एक दिया जलाया और तब से आर्यावर्त में श्री राम के अयोध्या-आगमन की पूर्व-सूचना का दिन ‘छोटी-दीवाली’ के रूप में मनाया जाता है।

उपरोक्त वर्णित कथा के अतिरिक्त हम सभी सनातनी लोगों को इस बात पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि श्री राम ने कठोर विषमताओं से भरे अपने वनवासी जीवन, दुर्भाग्यशाली परिस्थितियों एवं युद्ध-काल की कुस्मृतियों के बाद भी अयोध्या वापसी के समय 14 वर्षों पूर्व दिए गए अपने वचनों को कभी विस्मृत नहीं होने दिया। यही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन की महानता, पूज्यता और वचनबद्धता है। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि वे समस्त ब्रह्मांड में फैली मानवता एवं जीवटता को अपने पावन जीवन-चरित्र की महत्ता से पल्लवित एवं आशीषित करने की महान कृपा करें।

शलोॐ…!