‘मानवता-विरोधी वैश्विक बीमारी’ क्या लाइलाज है…?

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माता हिंगलाज, देवी दुर्गा की 51 शक्तिपीठों में प्रथम स्थान रखती हैं जिनका मूल स्थान ‘बलूचिस्तान’ दुर्भाग्यवश आज हिंदुओं के हाथ से निकल चुका है। माता हिंगलाज, हमारी शक्ति का केंद्र हैं जो हमें यह बराबर इस बात की प्रेरणा देती हैं कि ऐ हिंदुओं! तुम धर्म की रक्षा करो। यदि तुम धर्म की रक्षा नहीं करोगे तो जिस प्रकार कम होती हुई हिंदू जनसंख्या के कारण आज हिंगलाज पीठ (बलूचिस्तान), शारदा पीठ (नीलम घाटी), ढाकेश्वरी पीठ (ढाका), कैलास मानसरोवर (तिब्बत) एवं बामियान (अफ़ग़ानिस्तान) जैसे पवित्र हिंदूस्थल आज तुम्हारे हाथ से निकल गए हैं, कल को ठीक इसी तरह केदारनाथ, बद्रीनाथ, बैजनाथ, वैष्णो पीठ एवं सबरीमाला जैसे पवित्र स्थलों की भूमि भी तुम्हारे हाथ से निकल जाएगी।

उपरोक्त वर्णित समस्याओं के निराकरण में सबसे पहले हमें उनके मूल में निहित कारणों को खोजना होगा। ऐसा नहीं है कि अभी तक इन समस्याओं के मूल कारणों को खोजने के लिए लोगों ने प्रयास नहीं किए हैं परंतु यहां पर हम इस बात को अवश्य कहना चाहेंगे कि जिस तरह से यदि किसी बीमारी की दवा प्रदान करने के बाद भी बीमारी ठीक नहीं होती है तो इसका सीधा-सीधा अर्थ यह निकलता है कि उस बीमारी के उपचार के लिए जो भी दवा प्रदान की जा रही है, वह दवा उस बीमारी की सही दवा ही नहीं है। इसके अतिरिक्त ऐसा भी नहीं है कि जिस मानवता विरोधी बीमारी से हम आज जूझ रहे हैं, उस बीमारी का विश्व के किसी भी क्षेत्र में समुचित इलाज नहीं किया गया है। मध्य पूर्व के एक देश के साथ-साथ दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्व एशिया के क्रमशः दो देशों ने इसी तरह की बीमारी का न केवल समुचित इलाज किया है बल्कि ये देश इस बीमारी का सटीक इलाज प्रदान करने और उसकी ‘दवा के न होने’ का मिथक तोड़ने वाले विश्व के प्रथम तीन राष्ट्र भी बने हैं।

इस दिशा में शोध करते हुए सबसे पहले हमें इस बात का पता लगाना होगा कि विश्व के ये तीन राष्ट्र इस बीमारी-विशेष का समुचित इलाज कर पाने में आखिर कैसे क़ामयाब हुए? इस बात के मूल कारणों का उद्घाटन ही हमें यह जानकारी प्रदान करेगा कि हम इस बीमारी का निदान कर पाने में आख़िर क्यों ऐतिहासिक रूप से नाकाम रहे हैं और पिछले 800 वर्षों में धीरे-धीरे करके महान राष्ट्र आर्यावर्त का 70 से 80% भूभाग हमारे हाथों से क्यों निकल चुका है?

चिकित्सा विज्ञान का एक सिद्धांत है कि किसी भी बीमारी का पता लगाने के लिए रोगी को एक जांच प्रक्रिया से गुज़रना होता है जिसके बाद ही इस बात का पता चलता है कि संबंधित व्यक्ति को कौन-सी बीमारी है? उसके बाद चिकित्सक उस बीमारी की दवा देकर इलाज करने में क़ामयाब होता है। एक योग्य चिकित्सक और एक झोलाछाप चिकित्सक में यह बुनियादी फ़र्क़ होता है कि एक योग्य चिकित्सक जांच के उपरांत बीमारी के कारणों का पता लगाकर संबंधित बीमारी की दवा प्रदान करता है और एक झोलाछाप चिकित्सक बग़ैर किसी जांच के ही सिर्फ़ रोग के लक्षणों को देखकर अनुमानित बीमारी की दवा दे दिया करता है। दूसरे शब्दों में यदि कहा जाए तो एक योग्य चिकित्सक रोग के मूल कारणों का पता लगाने के बाद ‘कारणिक-चिकित्सा’ यानी कि ‘Causative Treatment’ प्रदान करता है जबकि एक झोलाछाप चिकित्सक रोग के लक्षणों के आधार पर ‘लाक्षणिक-चिकित्सा’ अर्थात ‘Symptomatic Treatment’ प्रदान करके अपने कर्तव्य की इति-श्री कर लेता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति के सिर में दर्द है तो वह सिर-दर्द थकान, ज़ुकाम अथवा किसी अन्य छोटे रोग के कारणवश भी हो सकता है परंतु सिर-दर्द का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति के सिर में ‘ब्रेन ट्यूमर’ जैसा कोई बड़ा रोग भी हो! ऐसी स्थिति में झोलाछाप डॉक्टर बगैर जांच किए हुए यदि उस व्यक्ति को केवल सिर-दर्द की दवा देकर ठीक करने का प्रयास करता है तो विश्वास कीजिए कि वह झोलाछाप चिकित्सक चाहे अपनी पूरी ज़िंदगी उस बीमारी का इलाज करने में लगा दे, वह कभी भी उस व्यक्ति की बीमारी को ठीक नहीं कर सकता है।

आज भारत सहित विश्व के अनेक देश ऐसी ही ‘मानवता विरोधी बीमारी’ से जूझ रहे हैं और उसका इलाज करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। इस असफलता के पीछे का मुख्य कारण केवल इतना भर है कि वे समस्त देश उस बीमारी के मूल कारणों का पता लगाकर उसका इलाज करने के स्थान पर उस बीमारी के लक्षणों का इलाज करने की बुनियादी ग़लती कर रहे हैं। अतः यदि भारत सहित विश्व के अन्य देशों को मानवता विरोधी इस बीमारी का वास्तव में इलाज करना ही है तो उन्हें सबसे पहले इस बीमारी के मूल कारणों की खोज करनी होगी उसके पश्चात ही वे उस बीमारी का इलाज कर पाने में सफल होंगे।

वह बीमारी क्या है, उसके मूल में कौन-कौन से कारण हैं और इस बीमारी की खोज और इसके निराकरण की दिशा में हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं इसके बारे में हम अपने किसी लेख में कुछ संकेत देने का प्रयास करेंगे!

शलोॐ…!