अंग्रेज़ उनको भारत का शासक बना गए जो न तो हिंदुस्तानी थे और न ही अधिक बुद्धिमान थे…

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अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे मैकाले के शिष्यों ने, हमारा अभिप्राय है अंग्रेज़ियत के गुलामों ने जब भारत का संविधान बनाना आरंभ किया तो उन्होंने इसके प्राक्कथन में ही अपनी विशेष ‘बुद्धि’ का प्रदर्शन करना आरंभ कर दिया। इन ‘महापुरुषों’ के मन में यह विचार तक नहीं आया कि इस देश के बहुसंख्यक लोग प्राचीन शास्त्रों के ज्ञाता भी हैं जो यह मानते हैं कि यूरोपियन आचार-विचार असुरों के से हैं।

संविधान बनाने वाले चंद सौ बुद्धिमानों में से किसी को यह भी समझ नहीं आया कि वे संस्कृत भाषा के किसी विद्वान को, जो यहां की प्राचीन स्मृतियों तथा राज्य-विधान के विषय में कुछ जानता हो, बुलाकर पूछ लें कि वह देश का कल्याण किस प्रकार संभव मानता है? यह मुट्ठी भर लोग जो अपनी डुग्गी स्वयं ही पीटने में कुशल थे, दिल्ली में आकर बैठ गए और पैंतीस-छत्तीस करोड़ देशवासियों के लिए बेड़ियों का निर्माण करने में लग गए। देश में कुछ एक ऐतिहासिक कारणों से विदेशियों की दासता उत्पन्न हुई थी जो कई कारणों से एक लगभग एक सहस्त्र वर्ष तक चलती रही।

अंग्रेज़ों ने अपनी चतुराई और सैनिक योग्यता से दो सहस्त्र मील लंबे-चौड़े देश पर एकाकी शासन स्थापित किया। उन्होंने यह उचित समझा कि देश में भेद पर भेद उत्पन्न किए जाएं जिससे कि भारत में उनका शासन सदा-सदा के लिए बना रहे परंतु अल्प समय के भीतर ही दो-दो विश्व युद्धों ने उनको अंदर से इतना दुर्बल कर दिया कि वे अपने विस्तृत साम्राज्य को अपने अधीन न रख सके और अंत में उन्हें एक कछुए की भांति अपना सर अपनी खोपड़ी के नीचे सिकोड़कर भारत को स्वतंत्र करके पलायन करने पर विवश होना पड़ा।

इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। भारत को छोड़ते-छोड़ते अंग्रेज़, उसके टुकड़े-टुकड़े करके चल दिए और अपने विचार से उन लोगों को यहां का शासक बना गए जो न तो हिंदुस्तानी थे और न ही अधिक बुद्धिमान थे।

विशेष: उपरोक्त बौद्धिक-अंश महान हिंदूवादी लेखक ‘गुरुदत्त’ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘बुद्धि बनाम बहुमत’ से उद्धृत है। यह पुस्तक भारत के ‘छद्म लोकतांत्रिक परिदृश्य’को उजागर करते हुए उससे जुड़ी हुई विषमताओं, समस्याओं एवं चुनौतियां के ऊपर प्रकाश डालती है। इस पुस्तक को आप टीम बाबा इज़रायली द्वारा विकसित किए जा रहे ‘ई-पुस्तकालय‘ में जाकर पढ़ सकते हैं। आने वाले समय में आपको हमारे इस ई-पुस्तकालय में हिंदू-चेतना से जुड़ा हुआ दुर्लभ हिंदू-साहित्य प्राप्त होगा।

शलोॐ…!