जानिए, क्यों पाकिस्तान की किस्मत ख़ुदा ने गधे के सींग से लिखी है…???

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वर्ष 1948 में जब इज़रायल नामक घोर संघी राष्ट्र का गठन हुआ तो मध्यपूर्व के लगभग सभी इस्लामी देश उसके गठन के ख़िलाफ़ थे। इस बात को लेकर इज़रायल एवं मध्य पूर्व के इस्लामी देशों के मध्य कई बार युद्ध हुए लेकिन हर बार इज़रायल ने बाल-बलात्कारी पोपट साहब के चेलों की तशरीफ़-शरीफ़ में इतनी मिसाइलें पैबस्त कीं कि पोपट साहब की उम्मतों को आसमानी किताब के ‘पांचवें सूरह की इक्यावन नंबर आयत’ एकदम सौ प्रतिशत सच्ची महसूस होने लगी।

चित्र: आयत नंबर 05:51, अल-माइदाह, क़ुरआन मजीद

अपने गधों को चीन को बेचकर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने वाला भिखारी एवं आतंकवादी मुल्क पाकिस्तान, चूंकि हमेशा से ही इस्लामी दुनिया का दादा बनने की फ़िराक़ में था, इसलिए वह बिन बुलाए मेहमान की तरह इज़रायल और अरब देशों के बीच हो रहे विवाद में बड़ी अम्मा बनकर पहुंच गया और इज़रायल को अपना प्रथम दुश्मन घोषित करते हुए अपनी एटमी ताक़त का शेखचिल्लवी मुज़ाहिरा करने लगा। हालांकि मिस्र, सऊदी अरब एवं यहां तक की तुर्की को भी पाकिस्तान की ये हरकतें हमेशा से ही अपनी आंखों में चुभती थीं लेकिन इस्लामी दुनिया की एकता की क़ीमत पर इन मुल्कों ने सामान्यतः प्रत्यक्ष रूप से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं की। इसकी मुख्य वजह यह भी थी कि इन अरब मुल्कों के लोग मतांतरित मुल्क होने के कारण पाकिस्तान नामक ‘बटुआ-चोर मुल्क’ के लोगों से अंदर ही अंदर बेहद नफ़रत किया करते थे। वे यह कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते थे कि अरब नस्ल के अलावा किसी अन्य नस्ल के लोगों का मुल्क इस्लामी दुनिया का दादा बने परंतु अरब देशों ने अमेरिका, इज़रायल एवं भारत जैसे अपने मज़हबी दुश्मन देशों को नज़र में रखते हुए पाकिस्तान को न चाहते हुए भी अपनी कूटनीतिक-बिरादरी से बाहर नहीं किया। इस बात का यह परिणाम निकला कि पाकिस्तान अपने एटमी ताक़त होने का नागाह प्रदर्शन करते हुए तमाम अरब देशों के साथ आंखें तरेर कर बात करने लगा।

चूंकि अरब देशों ने बहुत पहले ही पाकिस्तान की इस गुस्ताख़ी को अच्छी तरह से जान व समझ लिया था एवं समय के साथ भारत एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं कूटनीतिक शक्ति के रूप में उभरता जा रहा था, अतः देखते-देखते सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, ओमान, क़ुवैत, इराक़, क़तर एवं फ़िलिस्तीन जैसे तमाम इस्लामी मुल्कों ने भारत के साथ अपने मधुर राजनयिक संबंध बनाने शुरू कर दिए। हालांकि इन देशों के द्वारा भारत के साथ बनाए जाने वाले रिश्ते सामान्य न होकर केवल और केवल राजनीतिक, व्यावसायिक और कूटनीतिक ही थे, लेकिन इसका यह परिणाम ज़रूर निकला कि उपरोक्त इस्लामी मुल्कों के भारत के नज़दीक आने से पाकिस्तान की एटमी-हेकड़ी अचानक से ठंडी पड़ गई।

अब जब वर्ष 2020 में उन्हीं अरब देशों ने, जिनके कारण पाकिस्तान ने इज़रायल को अपना दुश्मन नंबर एक घोषित किया हुआ था, घोर संघी मुल्क इज़रायल के साथ अपने राजनयिक संबंध बनाने शुरु कर दिए तो पाकिस्तान की दशा धोबी के उस खुजैले-कुत्ते की तरह हो गई जो कि अब न घर का रहा न घाट का रहा। ज्ञात हो कि पाकिस्तान का इज़रायल से कभी-भी किसी भी प्रकार का कोई सीधा-सीधा विरोध नहीं रहा था परंतु पाकिस्तान ने केवल बड़ी अम्मा बनने की ख़ातिर अर्थात इस्लामी मुल्कों का दादा बनने के लिए ही उड़ता हुआ तीर लेकर इज़रायल को अपना राष्ट्रीय दुश्मन घोषित किया हुआ था। इसके अलावा पाकिस्तान ने स्वयं को मुस्लिम दुनिया की नज़र में लाने के लिए अपने यहां से जारी होने वाले पासपोर्ट्स तक पर यह लिखना शुरू कर दिया था कि उसका पासपोर्ट इज़राइल को छोड़कर दुनिया के हर देश के लिए वैध है। अब समय का चक्र देखिए कि जिन देशों का दादा बनने के लिए पाकिस्तान ने अपने पासपोर्ट तक को इज़रायल में अवैध क़रार दिया था, आज पाकिस्तान के उन सभी मित्र देशों के पासपोर्ट्स न केवल इज़रायल में वैध हैं बल्कि उन पासपोर्ट्स पर इज़रायल जाने वाले लोग स्वयं को धन्य एवं गौरवान्वित भी महसूस कर रहे हैं।

चित्र: संयुक्त अरब अमीरात के दुबई स्थित बुर्ज़-ख़लीफ़ा

उपरोक्त बातों के साथ ही आपको एक और मज़ेदार बात बताते हैं। चूंकि पाकिस्तान जैसे ‘हुड़क-चुल्लू मुल्क’ ने इज़रायल को अपना दुश्मन क़रार दिया हुआ था इसलिए उसने अपने मुल्क में इज़रायल राष्ट्र के झंडे को फहराना भी बैन किया हुआ था। ऐसा करने वाले अपने देश के नागरिकों के लिए उसने 10 साल क़ैद की सज़ा का प्रावधान भी किया हुआ था। आज अरब के सभी मुल्क अपने यहां न केवल इज़रायल राष्ट्र का झंडा फहरा रहे हैं बल्कि संयुक्त अरब अमीरात जैसा इस्लामी मुल्क तो अरब की शान जाने वाली गगनचुंबी इमारत ‘बुर्ज़ ख़लीफ़ा’ के ऊपर तक इज़रायल और भारत राष्ट्रों के झंडों का प्रदर्शन करके पाकिस्तान की तशरीफ़-शरीफ़ पर गर्मा-गर्म इस्तिरी फिरा रहा है।

चित्र: पाकिस्तान में इज़रायल का झंडा फहराते हुए कई लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है

डियर पाकिस्तान, इसीलिए तो कहते हैं कि दूसरे से मसलों में बेवजह ‘उंगली’ नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने पर अंत में सिवा रुसवाई के और कुछ और हाथ नहीं आता है। ऐसा लगता है कि तुम्हारी किस्मत ख़ुदा ने ‘गधे के सींग’ से लिखी है। तभी तुम बार-बार ज़लील होकर अरबी दुनिया में ‘अल-हिंदी’ की गाली से नवाज़े जाते हो लेकिन उसके बाद भी तुम पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और न ही तुम सुधरने का कोई प्रयास ही करते हो। चूंकि वैचारिक एवं सैद्धांतिक रूप से तुम अब ‘पतन को प्राप्त एक असफल राष्ट्र’ सिद्ध हो चुके हो इसलिए हम ख़ुदा त’आला से यह दुआ करते हैं कि वह तुम्हें जल्द से जल्द जन्नत-उल-फ़िरदौस में आला मक़ाम बख़्शते हुए इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत अता फ़रमाए और दार-उल-हिंद की तवारीख़ी सिंधवी, पख़्तूनवी, बलूची, पंजाबी और कश्मीरी बिछड़ी ज़मीनों को उसकी अस्ल हमशीरा यानी हिन्दोस्तानी ज़मीन से मिलाकर ‘अखंड-भारत’ के ख़्वाब को मुक़म्मली ताबीर का डोला चढ़ाए। अब तुम सूरह बक़रह की आयत नंबर 156 को पढ़कर ख़ुदा त’आला से यह दुआ कर सकते हो कि ‘इन्न लिल्लाहि व इन्न इलाही राजिऊन (إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ‎)’ अर्थात हम अल्लाह से हैं और हमें उसी की तरफ़ लौटकर जाना है।

शलोॐ…!