मौलाना उमर गौतम: ग़ज़वा-ए-हिंद नेटवर्क के मास्टर-माइंड जिहादियों में से एक प्रमुख जिहादी…

जैसा कि हमने आपको अपने पिछले आलेख में बताया था कि नई दिल्ली स्थित इस्लामिक दावत सेंटर (IDC) वर्तमान समय में भारत में ग़ज़वा-ए-हिंद नेटवर्क की गतिविधियों के बेहद अहम केंद्रों में से एक है। इस सेंटर का संचालक एवं चेयरमैन मौलाना उमर गौतम इस नेटवर्क के प्रमुख मास्टर-माइंड जिहादियों में शुमार होता है। मौलाना उमर गौतम कितना शातिर मुजाहिद है, इस बात का अंदाज़ा केवल इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वह पिछले 40 वर्षों से भारत के हज़ारों हिंदुओं के मतांतरण से जुड़े हुए कार्यों में संलिप्त था परंतु वह मई 2021 तक कभी-भी क़ानून के शिकंजे में नहीं फंसा।

अपने आप को पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का भतीजा बताने वाला मौलाना उमर गौतम मूलतः उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले के थरियांव थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पंथुवा गांव का रहने वाला है। वर्ष 1980 में उसने उत्तराखंड के उधम सिंह नगर ज़िले में स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में बीएससी (कृषि) पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। उसके बाद लगभग वर्ष 1982 में बिजनौर के रहने वाले अपने एक मुस्लिम मित्र मोहम्मद नासिर ख़ान से प्रभावित होकर उमर गौतम ने मज़हब-ए-इस्लाम स्वीकार कर लिया था। इस्लाम स्वीकार करने के बाद भी अगले 2 से 3 वर्षों तक मौलाना उमर गौतम पंतनगर में ही रहा और उसने वहीं रहकर इस्लामी गतिविधियों को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। एक सटीक सूचना के अनुसार इसने उस दौरान पंतनगर सहित उत्तराखंड में लगभग 250 से 300 हिदुओं के मतांतरण करवाए थे। वर्ष 1985 के बाद उसने पंतनगर छोड़ दिया और विभिन्न स्थानों पर अपने मज़हबी कार्यों को अंजाम देता रहा। इसी दौरान उसने दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामिक स्टडीज़ में एमए एवं पीएचडी जैसे उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों में भी दाख़िला लिया। उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ ही उमर गौतम ने जामिया मिलिया इस्लामिया एवं जामिया हमदर्द जैसे इस्लामी शिक्षण संस्थानों में अपनी शैक्षिक सेवाएं भी प्रदान कीं।

चित्र: इस्लामिक दावत सेंटर (IDC) का चेयरमैन मौलाना उमर गौतम लंदन में.

जैसा कि उमर गौतम के एक बेहद क़रीबी व्यक्ति से पता चला है कि वर्ष 1994 तक आते-आते उसने अपने जिहादी कार्यों के दम पर भारत के इस्लामी समुदाय में अच्छी जान-पहचान बना डाली। अतः वर्ष 1994 में बांग्लादेशी घुसपैठिया रहे असम के प्रमुख राजनीतिक दल ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIDUF) के सदर एवं वर्तमान सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने उमर गौतम की क़ाबलियत को पहचानते हुए उससे उपरोक्त शिक्षण संस्थानों में पठन-पाठन के कार्यों को छोड़कर असम आ जाने के लिए गुज़ारिश की जिसे उमर गौतम ने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया और दिल्ली से असम स्थानांतरित हो गया। वर्ष 1994 से लेकर वर्ष 2010 तक उमर गौतम ने असम में 16 साल गुज़ारे। इस दौरान उसने मौलाना बदरुद्दीन अजमल की संस्था ‘मरकज़-उल-ल मारिफ़’ में रहकर असम में चलने वाले इस्लामी जिहादी मदरसों एवं शिविरों में जमकर जिहाद की तालीम प्रदान दी।

असम के एक मौलाना के कथनानुसार मौलाना उमर गौतम ने अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को असम में बसाने के कार्यों में बदरुद्दीन अजमल की बहुत मदद की। असम में रहने के दौरान उमर गौतम का बांग्लादेश के कई इस्लामी जिहादी केंद्रों के साथ संपर्क स्थापित हुआ। बताते हैं कि यहीं रहते हुए उसने अपनी हिंदू पत्नी राजेश कुमारी उर्फ़ राजेश्वरी देवी को भी इस्लाम क़ुबूल करवा कर रज़िया बेगम बना दिया। चूंकि मौलाना बदरुद्दीन अजमल मौलाना उमर गौतम के बेहद तेज़ दिमाग़, शातिरपन व उसकी क्षमता को भली-भांति जानता और पहचानता था। अतः उसने वर्ष 2010 में उमर गौतम को दिल्ली जाकर वहां पर ग़ज़वा-ए-हिंद नेटवर्क के केंद्र को खोलने और वहां से उत्तर भारत में मतांतरण एवं अन्य जिहादी गतिविधियों को संचालित करने का कार्य सौंपा जिसका कि कार्यक्षेत्र आगे जाकर संपूर्ण भारत एवं नेपाल हो गया।

चित्र: विभिन्न गुप्त इस्लामी मस्लिसों में मौलाना उमर गौतम

लगभग 16 वर्षों तक असम में रहने और विभिन्न जिहादी गतिविधियों को अंजाम देने के पश्चात वर्ष 2010 में मोहम्मद उमर गौतम मौलाना बदरुद्दीन अजमल के दिशा-निर्देश पर दिल्ली चला आया। दिल्ली आने के बाद उमर गौतम ने शाहीन बाग़, बटला हाउस एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया के निकट सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इस्लामी दड़बे अर्थात जोगाबाई एक्सटेंशन क्षेत्र में अपनी बेटी फ़ातिमा तक़दीस के नाम पर ‘फ़ातिमा चैरिटेबल फाउंडेशन’ समेत कम से कम दो अन्य इस्लामी एनजीओज़ की स्थापना की। मौलाना बदरुद्दीन अजमल जैसे बड़े राजनीतिक एवं धनाढ्य इस्लामी मुजाहिद का हाथ होने एवं वर्ष 2010 में देश में मुस्लिम परस्त पार्टी कांग्रेस की सरकार होने के कारण उमर गौतम का हर कार्य बहुत तेज़ी के साथ संपन्न होता चला गया। इसके साथ ही चूंकि उमर गौतम पहले दिल्ली में काफ़ी समय बिता चुका था, इसलिए वहां पर उसका पहले से ही एक बहुत बड़ा इस्लामी नेटवर्क मौजूद था। फिर क्या था, उपरोक्त सभी समीकरण दिन-दूनी रात चौगुनी गति से उमर गौतम के पक्ष में झुकने शुरू हो गए और देखते ही देखते उमर गौतम ने करोड़ों का विशाल साम्राज्य खड़ा करते हुए ‘इस्लामिक दावत सेंटर (IDC)’ की स्थापना कर डाली।

अपने विशाल इस्लामी नेटवर्क एवं इस्लामिक दावत सेंटर को मिलने वाली करोड़ों-अरबों की देशी-विदेशी फंडिंग के दम पर मौलाना उमर गौतम ने देखते ही देखते अपने इस्लामिक दावत सेंटर को उत्तर भारत की कन्वर्जन फ़ैक्ट्री में तब्दील कर दिया। मात्र 2 वर्षों के भीतर ही उमर गौतम के इस संस्थान ने भारत के इस्लामीकरण की हसरत रखने वाली तमाम वैश्विक इस्लामी तंज़ीमों की नज़रों में अपनी ख़ास जगह बना ली। इसका परिणाम यह हुआ कि विश्व के बड़े-बड़े इस्लामी संगठन मौलाना उमर गौतम से स्वयं ही संपर्क साधने लगे। आज के समय में शायद ही कोई ऐसा वैश्विक इस्लामी संगठन शेष हो जिसने उमर गौतम संस्थाओं के लिए फंडिंग प्रदान न की हो। सऊदी अरब, क़तर, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और कई अन्य खाड़ी देशों में इसके बड़े समर्थक और फ़ाइनेंसर्स बन गए जिनके साथ इसने बहुत ही बेहतर विधि से सामंजस्य स्थापित किया। इसके साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई अमेरिकी, लैटिन अमेरिकी, यूरोपीय तथा अफ़्रीक़ी देशों में भी इसके बहुत बड़े दानवीर और समर्थक बनने लगे।

अचानक से बड़ी फंडिंग आने के कारण कहीं सुरक्षा एजेंसियों की नज़र न पड़ जाए, इससे बचने के लिए उमर गौतम ने अपने प्यादों के नाम पर कुकरमुत्तों की तरह छोटी-छोटी संस्थाएं बनवाईं और विदेशी धन के बड़े हिस्से को सीधे अपनी संस्थाओं में न लेते हुए ये उन छोटी-छोटी संस्थाओं के माध्यम से धन प्राप्त करने लगा। इस धन से उमर गौतम में भारत एवं नेपाल के अंदर जमकर इस्लामी एजेंडे को आगे बढ़ाया और साथ ही साथ भारत के 4 राज्यों में स्वयं, अपने परिवार वालों एवं परिचितों के नाम पर भी अकूत संपत्ति बनाई। मोटे तौर पर यदि कहा जाए तो आज के समय में विश्व के लगभग-लगभग सभी बड़े इस्लामी संगठन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उमर गौतम उसके सहयोगियों से जुड़ कर भारत के अंदर इस्लाम के प्रचार और प्रसार में उसकी हर-संभव मदद कर रहे हैं। यही मुख्य कारण है कि उमर गौतम की टीम ने पिछले एक दशक में देश-विदेश में इस्लाम का प्रसार करते हुए हज़ारों नहीं बल्कि लाखों की संख्या में ग़ैर-मुस्लिमों को इस्लाम में दाख़िल करवाया है।

पिछले एक दशक में उमर गौतम ने अपने इस्लामी लक्ष्यों को साधने के लिए अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी संगठनों एवं मुल्कों के नेताओं से मिलने के लिए सैकड़ों गुप्त यात्राएं की हैं। जानकारी के मुताबिक़ इनमें से मात्र 20% यात्राएं ही उमर गौतम ने अपने असली भारतीय पासपोर्ट से की हैं जबकि 80% यात्राएं नेपाल जैसे देशों से दूसरे फ़र्ज़ी पासपोर्ट पर की हैं। दूसरे पासपोर्ट पर की जाने वाली यात्राएं अधिकतर पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं तुर्की जैसे देशों में की गई हैं। उमर गौतम के द्वारा सबसे अधिक बार भ्रमण किए गए देशों में प्रमुखतः सऊदी अरब, क़तर, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, अज़रबैजान, अर्मेनिया सहित कई अन्य देश हैं। यह सभी इस्लामी मुल्क अपने यहां होने वाले अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक कार्यक्रमों में उमर गौतम को अपने सबसे प्रमुख एवं अग्रणी अतिथियों में शुमार करते थे। ऐसा पता चला है कि वर्ष 2014 के दौरान जब इज़रायल और ग़ाज़ा पट्टी में इज़रायली सेना और हमास के इस्लामी आतंकवादियों बीच और ईराक़-सीरिया गृहयुद्ध में ISIS और गठबंधन सेना के बीच भारी जंग चल रही थी, तब उस दौरान ब्रिटेन में दुनिया भर के इस्लामी झंडाबरदारों की एक गुप्त मीटिंग बुलाई गई थी। उस मीटिंग में भाग लेने मौलाना उमर गौतम भी ब्रिटेन रवाना हुआ था। आज तक लगभग डेढ़ से दो दर्ज़न से अधिक बार मौलाना उमर गौतम ब्रिटेन की यात्रा कर चुका है।

वर्ष 2010 के दशक के दौरान भारत में तेज़ी के साथ कट्टरपन और चरमपंथ को बढ़ावा देने वाला भगोड़ा आतंकवादी ज़ाकिर नायक और ‘तब्लीगी जमात’ नामक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन का सदर रहा मौलाना साद भी उमर गौतम के कार्यों के साथ हम-शरीक रहे हैं। उमर गौतम की टीम में कार्य करने वाले अधिकतर इस्लामी मुजाहिदों का निर्माण करने में इस तब्लीगी जमात की ही प्रमुखता रही है। इसके अलावा उमर गौतम ने ज़ाकिर नायक के साथ भी भारत में इस्लामी चरमपंथ को गति देने का कार्य किया है। ज़ाकिर नायक और उमर गौतम के कार्यों का ध्यान से अन्वेषण करने पर यह पता चलता है कि इन दोनों की कार्यविधि में कुछ विशेष अंतर नहीं रहा है और ये दोनों लगभग एक ही एजेंडे पर ही चले हैं। ज़ाकिर नायक और उमर गौतम के कार्यों में बस ये ही अंतर रहा है कि ज़ाकिर नायक ने अपने इस्लामी एजेंडे को खुलेआम चलाया और बदकिस्मती से बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले से मिले कनेक्शन से उसका भांडा फूट गया जबकि उमर गौतम ने अपने इस्लामी एजेंडे को तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद की तरह बड़ी ही चालाकी से बग़ैर कोई शोर-शराबा किए हुए अंजाम दिया और मई 2021 तक उसमें पूर्ण रूप से सुरक्षित और सफल भी रहा।

दोस्तों, अंग्रेज़ी भाषा की एक प्रमुख कहावत है कि ‘Every dog has its own day’ अर्थात हर कुत्ते का अपना एक दिन होता है। अतः वर्ष 2021 में उमर गौतम एवं उसकी टीम ने एक ज़रा सी चूक कर दी। उमर गौतम एवं मतांतरण करवाने वाली उसकी मोहम्मदी टीम ने उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद ज़िले के एक शिक्षण केंद्र में पढ़ने वाले कुछ मूक-बधिर बच्चों का मतांतरण करवा दिया। इस घटना के कुछ समय बाद जब मतांतरित किए गए एक मूक-बधिर बच्चे का वीडियो वायरल होकर सामने आया तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। उसके बाद उस बच्चे के घर वालों के द्वारा इस घटना की जानकारी उत्तर प्रदेश पुलिस को दी गई और फिर अंततः 20 जून, 2021 को उत्तर प्रदेश की परम देशभक्त पुलिस के एक आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने चीते की फुर्ती दिखाते हुए मौलाना उमर गौतम और उसके साथी मुफ़्ती काज़ी जहांगीर आलम क़ासमी को नोयडा से धर दबोचा। उसके बाद जैसे-जैसे इस गैंग के नापाक कार्यों का भांडा फूटता गया, उत्तर प्रदेश की बाबा योगी आदित्यनाथ की सरकार इस जिहादी-गैंग के ऊपर बेहद सख़्त होती चली गई और अंततः मौलाना उमर गौतम समेत इसके पूरे ग़ज़वा-ए-हिंद नेटवर्क के जिहादियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (रासुका) के तरह कार्यवाही करने और उनकी समस्त संपत्ति ज़ब्त करने के ‘हाहाकारी आदेश’ जारी कर दिए गए।

शलोॐ…!