बहुत कम कवि, साहित्यकार एवं पत्रकार ही अपनी क़लम और अपने चरित्र के साथ न्याय कर पाते हैं। अधिकतर चरणचाटू कवि, साहित्यकार एवं पत्रकार (दरअसल पत्तलकार) रूपी कुत्ते, पुरस्कार रूपी हड्डी का टुकड़ा देखते ही अपनी जीभ लपकाकर अपनी असल औक़ात दिखा दिया देते हैं। वर्ष 2017 से पहले की नमाज़वादी हुकूमत में ऐसे कवियों, साहित्यकारों और पत्तलकारों को मैनेज करने के लिए ‘यश भारती‘ नामक एक नमाज़वादी-पुरस्कार रूपी हड्डी घोषित की गई थी। प्रदेश की तत्कालीन नमाज़वादी हुकूमत राज्य के अंदर पाए जाने वाले ‘कुत्ता प्रजाति’ के ऐसे दोगले मतलबपरस्त चरण-चाटुकारों को अपने पक्ष में ‘मैनेज’ करने के लिए इस पुरस्कार रूपी नमाज़वादी-हड्डी का टुकड़ा फेंका करती थी।
सनद रहे कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश उर्फ़ टीपू यादव की सरकार के राज में यश भारती पुरस्कार बांटने में जमकर भाई-भतीजावाद हुआ। वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2017 के बीच इस सम्मान को दोस्तों, अफ़सरों, नेताओं और घर वालों को रेवड़ियों की तरह बांटा गया। टीपू सरकार के पांच साल के कार्यकाल में करीब 200 लोगों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फ़हरिस्त में कई ऐसे नाम थे जिनकी सिफ़ारिश मुख्यमंत्री कार्यालय, मुलायम सिंह यादव और टीपू यादव की कैबिनेट के मंत्रियों एवं अफ़सरों ने की थी। बता दें कि यूपी सरकार के यश भारती सम्मान के तहत इस पुरस्कार को पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हराम के एकमुश्त 11 लाख रुपए और उसके बाद आजीवन 50 हज़ार रुपये प्रति माह की पेंशन दिए जाने का प्रावधान था।
यह ख़ुलासा इंडियन एक्सप्रेस समाचार समूह द्वारा मांगे गए एक आरटीआई आवेदन के ज़रिए हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक़ टीपू यादव के कार्यकाल के दौरान यश भारती पुरस्कार पाने वालों में नेताओं के दोस्त, अफ़सर और नमाज़वादी पार्टी के छोटे-बड़े नेताओं के परिजन तक शामिल थे। रिपोर्ट में विभिन्न श्रेणियों के तहत पुरस्कार पाने वालों के नाम की अनुशंसा और संबंधित क्षेत्र में उनकी उपलब्धियां क़ाबिले-ग़ौर थीं। यश भारती पुरस्कार आधिकारिक तौर पर प्रदेश के संस्कृति मंत्रालय के तहत दिया जाता था।
आरटीआई आवेदन से हुए ख़ुलासे के बाद जब तत्कालीन मुख्यमंत्री टीपू यादव से इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने बड़े ही शर्मनाक तरीक़े से अपने फ़ैसले को जायज़ ठहराते हुए कहा कि अब केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं। वे भी अपने लोगों को अवॉर्ड दे सकती हैं। इतना ही नहीं टीपू यादव ने अपनी नीचता का प्रदर्शन करते हुए इस पुरस्कार के तहत मिलने वाली पेंशन की राशि को 50 हज़ार रुपए से बढ़ाकर 1 लाख रुपए तक करने की मांग कर डाली!
सूचना के अधिकार के ज़रिए मिली जानकारी के अनुसार नमाज़वादी काल में कम से कम 21 लोगों को सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय में आवेदन भेजने के बाद यश भारती पुरस्कार दिया गया था। इतना ही नहीं, इस पुरस्कार को पाने वाले लोगों की लिस्ट में कई ऐसे नाम भी शामिल हैं, जिनकी सिफ़ारिश नमाज़वादी पार्टी के नेताओं ने की थी। इनमें टीपू यादव के पिता मौलाना मुल्लायम सिंह यादव, चचा शिवपाल सिंह यादव, इस समय जेल में बंद पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं इस्लामी आतंकवादी आज़म ख़ान और रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भइया जैसे बाहुबलियों के नाम शामिल थे। बड़े आश्चर्य की बात है कि इस सम्मान को पाने वाले कुछ लोगों ने ख़ुद ही अपने नाम का प्रस्ताव भेज कर इस पुरस्कार को प्राप्त करने में सफलता हासिल की थी।
नमाज़वादी पार्टी की पत्रिका ‘समाजवादी बुलेटिन’ के कार्यकारी संपादक अशोक निगम, नमाज़वादी पार्टी के सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष काशीनाथ यादव एवं दिवंगत नमाज़वादी नेता मुरलीधर मिश्रा के बेटे मणिन्द्र कुमार मिश्रा सहित कई नाम हैं, जिन्हें नमाज़वादी पार्टी की सेवा करने के लिए सरकार के यश भारती पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इनमें दिवंगत कांग्रेसी नेता जगदीश मतानहेलिया की बेटी शिवानी मतानहेलिया भी शामिल थी।
यश भारती पाने वाली 20 वर्षीय स्थावी अस्थाना सबसे युवा पुरस्कार प्राप्तकर्ता थी। बता दें कि स्थावी अस्थाना के पिता हिमांशु कुमार आईएएस रैंक के अफ़सर थे और उस वक़्त उत्तर प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव थे। स्थावी को जब यह पुरस्कार मिला, तब वह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली से क़ानून की पढ़ाई कर रही थी। उसे ‘घुड़सवारी’ करने के लिए यश भारती दिया गया था। यह तो अल्लाह ही जानता है कि स्थावी अस्थाना कौन-से ‘घोड़ों की सवारी’ किया करती थी जिसके आधार पर उसको नमाज़वादी पार्टी ने यश भारती जैसे इतने बड़े पुरस्कार से नवाज़ डाला था?
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन की पत्नी सुरभि रंजन को भी यश भारती पुरस्कार दिया गया था। टीपू यादव के कार्यकाल में मुख्यमंत्री के ओएसडी रहे रतीश चंद्र अग्रवाल ने तो ख़ुद ही अपने नाम की सिफ़ारिश की थी। इसके अलावा सैफ़ई महोत्सव कार्यक्रम का संचालन करने वाली अर्चना सतीश के नाम की अनुशंसा लखनऊ के तत्कालीन एडीएम जय शंकर दुबे ने की थी।
ग़ौरतलब है कि यश भारती पुरस्कार की स्थापना टीपू यादव के अब्बूजान और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मौलाना मुल्लायम सिंह यादव ने 1994 में मुख्यमंत्री रहते हुए की थी लेकिन बाद में बहुजन समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने ये पुरस्कार बंद कर दिए थे। वर्ष 2012 में टीपू यादव सरकार के आने के बाद इसे दोबारा से शुरू किया गया और इसकी पुरस्कार राशि 11 लाख रुपए कर दी गई। वर्ष 2017 में प्रदेश में सत्तारूढ़ होने वाली योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस यश भारती पुरस्कारों की रेवड़ियों की समीक्षा की और नमाज़वादी काल में इस पुरस्कार की गरिमा को बलत्कृत पाया देखकर इसे बंद करने का निश्चय किया।
आख़िरकार नमाज़वादी शासनकाल में उत्तर प्रदेश के इन कुत्ता-छाप कवियों, साहित्यकारों, पत्तलकारों और दल्लों को नमाज़वादियों की चरणवंदना करने के लिए इस पुरस्कार के रूप में मिलने वाले हराम के टुकड़े बंद हो गए। उसके बाद से इन कवियों, साहित्यकारों, पत्तलकारों और दल्लों की तशरीफ़-शरीफ़ में मानो आग लग गई और ये सारे के सारे धूर्त चरणचाटुकार, योगी बाबा की सरकार के ख़िलाफ़ साज़िशें रचने में व्यस्त हो गए। आज भी ऐसे कई हतोत्साहित दोगले कवि, साहित्यकार, पत्तलकार और दल्ले सोशल मीडिया पर अपनी कुंठा का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं। अब प्रदेश की जनता से आग्रह है कि वह ऐसे निकम्मे चरण-चाटुकारों की तशरीफ़-सिंकाई के लिए पेट्रोल के फाहे का सही इस्तेमाल करने की महती कृपा करे!
ख़ैर, कुख्यात जिहादी शायर मुनव्वर राणा ने अपने इन्हीं आक़ाओं की शान में कसीदे पढ़ते हुए कभी कुंठावश ग़लती से निम्न शे’र कहा था जो कि इस संदर्भ में एकदम सही दृष्टिगोचर होता है-
“हुकूमत मुंह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है,
ये हर कुत्ते के आगे ‘शाही टुकड़ा’ डाल देती है…”
शलोॐ…!