एक लंबे समय से विधर्मी एवं वामपंथी समुदाय द्वारा श्री राम के अस्तित्व पर प्रायः प्रश्न खड़े किये जाते रहे हैं। इसके अलावा अतीत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी हिंदू-द्रोही राजनैतिक पार्टियां भी उच्चतम न्यायालय में बाक़ायदा शपथ-पत्र देकर श्री राम के अस्तित्व से पल्ला झाड़ने का कुप्रयास करती हुई पकड़ी गई हैं। ऐसी स्थिति में श्री राम के भक्तों के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वे श्री राम के अस्तित्व को नकारने वाले तत्वों के कुतर्कों का न केवल सप्रमाण खंडन करें बल्कि उन्हें अपने श्री राम-द्रोही बयानों के लिये क्षमा मांगने के लिये भी मजबूर करें।
सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम कथा लिखी थी। बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद भी थे। उन्होंने अपने ग्रंथ ‘रामायण’ में श्री राम के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के समय तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की खगोलीय स्थितियों का भी वर्णन किया है।
इस विषय में शोध करने के उपरांत भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत श्री पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से ‘प्लैनेटेरियम गोल्ड’ नामक एक काल-संगणक कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर प्राप्त किया जिससे सूर्य एवं चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां, अन्य ग्रहों की स्थितियां एवं पृथ्वी से उनकी दूरी, वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी व समझी जा सकती हैं एवं उनके आधार पर काल-गणना भी की जा सकती है। इस सॉफ़्टवेयर के द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेज़ी कैलेंडर की तारीख़ें निकाली हैं। उन्होंने श्री राम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की समस्त घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यन्त रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक ‘डेटिंग द एरा ऑफ़ लॉर्ड राम’ में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
श्री राम की जन्म-तिथि:
महर्षि वाल्मीकि ने बालकांड के सर्ग 18 के श्लोक 08 एवं 09 में वर्णन किया है कि श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, गुरु, शनि व शुक्र यह पंच-ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। यदि ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थितियों की बात की जाए तो सूर्य मेष में, मंगल मकर में, बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी की दोपहर 12:00 बजे का समय था।
उपरोक्त खगोलीय स्थितियों को ‘प्लैनेटेरियम गोल्ड’ सॉफ़्टवेयर में डालने के बाद यह परिणाम निकालकर सामने आया कि 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व दोपहर के समय अयोध्या के भौगोलिक दिशा-निर्देशांकों (लैटीट्यूड एवं लांगीट्यूड) पर ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थितियां बिल्कुल वही थीं जिनका महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में वर्णन किया है। इस प्रकार ये निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि श्री राम का जन्म 10 जनवरी, सन 5114 ईसा पूर्व को हुआ था । यह भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दोपहर 12:00 बजे से 01:00 बजे के बीच का समय है।
श्री राम के वनवास की तिथि:
वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में वर्णित तथ्यों के अनुसार महाराजा दशरथ श्री राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनकी (राजा दशरथ) कुंडली पर नक्षत्र, सूर्य, मंगल और राहु का कुयोग चल रहा था। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या फिर वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ की राशि मीन थी और उनका नक्षत्र रेवती था। ये सभी तथ्य जब सॉफ़्टवेयर में डाले गये तो ज्ञात हुआ कि 05 जनवरी, सन 5089 ईसा पूर्व के दिन सूर्य, मंगल और राहु, ये तीनों ग्रह मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्व-विदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही श्री राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्री राम को अयोध्या छोड़कर 14 वर्षों के लिए वन में जाना पड़ा। सॉफ़्टवेयर द्वारा गणना करने पर उस समय श्री राम की आयु लगभग 25 वर्ष (5114-5089 ईसा पूर्व) की निकलती है। वाल्मीकि रामायण के अनेक श्लोक भी यही इंगित करते हैं कि जब श्री राम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।
खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्य-ग्रहण की तिथि:
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्री राम का खर-दूषण के साथ युद्ध हुआ था तथा उस समय सूर्य-ग्रहण लगा था और मंगल, ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख़ के बारे में कंप्यूटर सॉफ़्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 05 अक्टूबर, 5077 ईसा पूर्व की थी। इस दिन अमावस्या थी। इस दिन जो सूर्य-ग्रहण घटित हुआ था, उसे पंचवटी के वर्तमान दिशा-निर्देशांकों से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थितियां बिल्कुल वैसी ही थीं जिनका कि महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण में उल्लेख किया था अर्थात मंगल ग्रह बीच में था तथा एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि ग्रह विद्यमान थे।
वनवास समाप्ति एवं अयोध्या वापसी की तिथियां:
श्री राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 02 जनवरी, 5076 ईसा पूर्व को पूर्ण की थी और यह दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी का ही दिन था। इस प्रकार जब श्री राम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष (5114-5075 ईसा पूर्व) के थे।
अन्य महत्वपूर्ण तिथियां:
सामान्यतः किसी भी एक समय पर बारह में से अधिकतम छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है परन्तु वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य का अत्यन्त ही रोचक ढंग से वर्णन किया गया है। इन खगोलीय स्थितियों को जब श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम गोल्ड सॉफ़्टवेयर के माध्यम से अन्वेषित किया गया तो 14 सितंबर, 5076 ईसा पूर्व की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11:00 बजे के मध्य का परिणाम निकलकर आया।
इसी प्रकार रामायण के अन्य अध्यायों में महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की विभिन्न स्थितियों को जब उक्त सॉफ़्टवेयर के माध्यम से अन्वेषित किया गया तो प्रत्येक बार उसके द्वारा बिल्कुल वैसे ही परिणाम प्रदान किए गए जैसा कि उनके विषय में वाल्मीकि रामायण में वर्णन किया गया है।
हालांकि श्री पुष्कर भटनागर ने ‘प्लैनेटेरियम गोल्ड’ नामक सॉफ़्टवेयर की सहायता से श्री राम के काल के विषय में जानने के जो प्रयास किए हैं, श्री राम-भक्तों की दृष्टि में वे प्रयास निश्चित ही स्तुत्य हैं परंतु टीम बाबा इज़रायली के मतानुसार इस सॉफ़्टवेयर की सहायता से प्राप्त किए गए शोधकार्य के यह मौजूदा परिणाम, इस शोध-श्रृंखला के समापन का नहीं अपितु शोधार्थियों से इस पर और अधिक शोध-कार्य करवाने का अनुरोध करते हैं। यदि श्री पुष्कर भटनागर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से किए गए इस महान शोध-कार्य को संस्थागत रूप से आगे बढ़ाया जाता है तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि निकट भविष्य में इस सॉफ़्टवेयर के परिमार्जित व उन्नत संस्करणों की सहायता से किए जाने वाले भावी शोध-कार्यों के उपरांत प्राप्त होने वाले परिणाम, मौजूदा समय से श्री राम के कालानुक्रम की ओर पहले से अधिक सटीक गणना के साथ स्थानांतरित होते दिखाई पड़ेंगे।
शलोॐ…!
संदर्भ:
तथ्य साभार ‘डेटिंग द एरा ऑफ़ लॉर्ड राम’ (श्री पुष्कर भटनागर)