हनुमान: भक्ति-मार्ग से देवत्व को प्राप्त एक रामभक्त…

babaisraeli.com20200802-05

श्री राम के अनन्य भक्त पवन-पुत्र हनुमान जी को कलियुग में सिद्ध-साधक बताया गया है। जिन महान आत्माओं को पृथ्वी लोक पर अमरता का वरदान प्राप्त हुआ है, उनमें से एक श्री हनुमान जी भी हैं। एक सिर, पंच-सिर और एकादश सिर के रूप में हनुमान जी के भक्त उनकी पूजा करते हैं।

रुद्रावतार:

हिंदू महाग्रंथ रामायण में संदर्भित सर्वाधिक स्मरणीय रामभक्तों में हनुमान जी प्रधान हैं। भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार के रूप में हनुमान जी सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार श्री राम के अतिरिक्त वे माता जानकी के भी अत्यधिक प्रिय हैं। वज्र की भांति कठोर अंगों के स्वामी होने के कारण हनुमान जी को वज्रांगी (बजरंगी) भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी का अवतार श्री राम की सहायता के लिए ही हुआ था।

जन्म:

हनुमान जी के जन्म के विषय में हनुमान-भक्तों के मध्य कई मान्यताएं हैं। एक ओर जहां आदिवासियों के अनुसार हनुमानजी का जन्म भारत के झारखण्ड राज्य के रांची ज़िले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था तो वहीं कर्नाटक-वासियों की धारणा है कि हनुमान जी कर्नाटक के पम्पा-किष्किन्धा में पैदा हुए थे। पम्पा और किष्किन्धा के ध्वंसावशेष आज भी हम्पी में देखे जा सकते हैं।

देवों का आशीर्वाद:

हनुमान जी को कई देवताओं से विशेष आशीर्वाद एवं वरदान प्राप्त थे। एक ओर जहां स्वयं ब्रह्मा जी ने हनुमान जी को सदैव अस्त्र-शस्त्रों से सुरक्षित रहने का वरदान प्रदान किया था तो वहीं दूसरी ओर देवराज इंद्र ने हनुमान जी को वज्रांगी होने का वरदान प्रदान किया था। सूर्य देव ने हनुमान जी को अपने तेज का शतांश प्रदान करते हुए शास्त्र-मर्मज्ञ होने का आशीर्वाद भी प्रदान किया था। वरुण देव ने वरुण-पाश और जल से सुरक्षा तो यमदेव ने अवध्य और निरोगी काया प्रदान की थी। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने हनुमान जी को अमोघ वरदान प्रदान किए थे। आदित्य नारायण ने हनुमान जी को समस्त वेदादि शास्त्र, उप-शास्त्र एवं समस्त विद्याएं प्रदान की थीं। इस प्रकार आदित्य नारायण भगवान सूर्य देव हनुमान जी के गुरु हैं।

हनुमान जी के गुण:

वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम ने हनुमान जी के गुणाें के विषय में कहा है कि-

तेजो धृतिर्यशो दाक्ष्यं सामर्थ्यं विनयो नयः।
पौरुषं विक्रमो बुद्धिर्यस्मिन्नेतानि नित्यदा।।

अर्थात, तेज, धैर्य, यश, दक्षता, शक्ति, विनय, नीति, पुरुषार्थ, पराक्रम एवं बुद्धि- ये गुण हनुमान जी में नित्य स्थित हैं।

धीरता, गम्भीरता, सुशीलता, वीरता, श्रद्धा, नम्रता, निराभिमानिता आदि अनेक गुणों से सम्पन्न हनुमान जी के विषय में महर्षि वाल्मीकि के समान गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपने महान ग्रंथ श्री रामचरितमानस के सुन्दरकांड में ‘सकलगुणनिधानं’ के उद्घोष से उनकी सादर वंदना की है-

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रिय भक्तं वातजातं नमामि।।

चूंकि हनुमान जी में अनेक गुण हैं, इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें अति-गुणी एवं चतुर कहा है। इसके आगे भी गोस्वामी जी ने उनको सदैव राम-काज के लिये तत्पर रहने वाला बताया है-

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

हनुमानजी का संपूर्ण जीवन भगवान श्री राम के कार्य के लिए ही समर्पित था। श्री राम के लिये उनका दास-भाव इतना उत्कृष्ट था कि उसने उन्हें श्री राम के साथ ही पूज्यनीय बना दिया।

पूरे बदन को सिंदूर से रंगा:

एक बार हनुमान जी ने माता सीता को अपनी मांग में सिंदूर भरते हुए देखा तो हनुमान जी ने उनसे पूछा कि वह अपनी मांग में सिंदूर को क्यों भर रही हैं? माता सीता ने उन्हें बताया कि यह सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक है। इसे मांग में भरने से मुझे श्री राम जी का स्नेह प्राप्त होता है और इससे उनकी आयु में वृद्धि भी होती है। यह सुनकर हनुमान जी से न रहा गया और उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे कि अब इससे मेरे प्रभु श्री राम की आयु और भी अधिक लंबी हो जाएगी तथा वह मुझे भी अति स्नेह करेंगे। ऐसा करने के पश्चात हनुमान जी प्रभु श्री राम जी के समक्ष उनकी सभा में चले गए।

श्री राम ने जब हनुमान जी को इस रुप में देखा तो वह हैरान रह गए। श्री राम ने जब उनसे पूरे शरीर में सिंदूर लेपने का कारण पूछा तो उन्होंने श्री राम को बताया कि इससे आपकी आयु और अधिक लंबी हो जाएगी और मुझे भी माता सीता की तरह ही आपका स्नेह प्राप्त होगा। हनुमान जी की इस बात को सुनकर श्री राम अत्यंत ही भाव-विभोर हो गए और उन्होंने तुरंत ही हनुमान जी को अपने हृदय से लगा लिया।

कहते हैं तभी से हनुमान जी को सिंदूर अत्यंत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि उन्हें सिंदूर अर्पित करने वाले भक्तों पर उनकी विशेष कृपा होती है-

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये।
भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम।।

ऐसी असीम प्रभु-भक्ति, जहां संपूर्ण समर्पण है, भक्त और भगवान की एक-रूपता है, यही ‘भगवद्भक्त’ की सुंदरता का सुंदरतम स्वरूप है। श्री हनुमान जी का यही सर्वोच्च भक्त-स्वरूप श्री राम के भक्तों को अनादि काल तक प्रेरणा देता रहेगा। प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि वे अपने समस्त भक्तों पर अपने अनन्य भक्त श्री हनुमान जी के पद-चिह्नों पर चलाने की महती कृपा करें।

शलोॐ…!