भारत के 123 ज़िले हिंदू-विहीन, अपने ज़िले का नंबर इस लिस्ट में ढूंढिए…

babaisraeli.com20201217083736

हिंदुओं के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें इस बात का ही पता नहीं है कि उन्हें किसके प्रति निष्ठावान होना है? वे कभी व्यक्तियों, कभी संस्थाओं तो कभी राजनैतिक अथवा अराजनैतिक दलों के प्रति अपनी चलायमान निष्ठा का प्रदर्शन करते हुए निज-शक्ति एवं समय को नष्ट करते रह जाते हैं। कभी उन्हें यह लगता है कि कुछ टोटकों को करने से उनका भला हो जाएगा तो कभी करोड़ों रुपए ख़र्च करके किसी अली-मौला का जाप करने वाले कालनेमि से कथा बंचवाने में उन्हें अपनी भलाई मालूम होती है। इस प्रकार हिंदू समुदाय अपनी अदूरदर्शी प्रवृत्ति के कारण ग़लत संस्थाओं को वित्त-पोषित करके एवं उसकी झंडाबरदारी करके स्वयं के राष्ट्रवादी एवं धर्मप्रेमी होने का स्व-घोषित प्रशस्ति-पत्र प्राप्त कर देता है। इन सभी क्रिया-कलापों का यह परिणाम निकलता है कि नादान हिंदू अपने समाप्त होते अस्तित्व के प्रति लगातार एक के बाद एक ग़लतियां करते हुए बैकफुट पर आता चला जाता है और अपनी सुदृढ़ एवं पहले से तय रणनीति के चलते उसके शत्रु उस पर और अधिक हावी होते चले जाते हैं।

अब इस समस्या से हिंदू समुदाय कैसे उबर सकता है, इस विषय पर भी हमें गहन मंथन करना होगा। हिंदुओं को यदि अपने दुश्मनों के ऊपर कूटनीतिक रूप से बढ़त प्राप्त करनी है तो हिंदुओं को सबसे पहले स्वयं के अस्तित्व को बचाए रखने की दिशा में अपनी एकता को अक्षुण्ण रखना होगा। अब यह हिंदू-एकता अक्षुण्ण कैसे होगी, इसके लिए हिंदुओं को एक सर्व-स्वीकार्य नीति का सृजन करके उस पर चलना होगा। हो सकता है कुछ लोग यह कहें कि एक बात को एक ही घर के लोग मानते नहीं है, तो 100 करोड़ हिंदू एक एक नीति पर कैसे चलने में सक्षम होंगे? आख़िर ऐसी कौन सी सर्व-स्वीकार्य नीति होगी जो समस्त हिंदू समुदाय को एकता के सूत्र में बांधे रखने में सहायक होगी?

इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए हमें सबसे पहले अपने दूरगामी नरेटिव को स्पष्ट करना होगा। अब यह नरेटिव-बिल्डिंग कोई हंसी-मज़ाक़ का खेल तो है नहीं जो यह एक दिन में हो जाएगा! ज़ाहिर है हमें इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी। हिंदू समुदाय के प्रत्येक वर्ग के ज़िम्मेदार लोगों को इस कार्य के लिए आगे आना होगा। उसके बाद उन्हें मौजूदा पारंपरिक शिक्षा-व्यवस्था के समानांतर एवं उसके साथ संबद्ध एक ऐसी केंद्रीयकृत शिक्षण-व्यवस्था का सृजन और फिर उसका अनुसरण करना होगा जो आने वाले समय में उनकी अगली पीढ़ी के रक्त से तथाकथित सेकुलरिज़्म के कीड़े को पनपने से पहले ही नष्ट दे और उसे उनके अस्तित्व के ऊपर मंडराते हुए प्रचंड ख़तरे से निपटने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर सके। यदि हिंदुओं ने जल्द ही ऐसी कोई शिक्षण-व्यवस्था न स्थापित की तो सबसे पहले कूटनीतिक रूप से और फिर बाद में राजनैतिक एवं सामुदायिक रूप से हिंदुओं का ख़ात्मा होना तय है।

वैसे भी कलियुग चल ही रहा है। इसमें कब किसका अंत समीप आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। हमारे हिसाब से अभी भारत के हिंदू समुदाय के पास वर्ष 2034 तक की अंतिम समय-सीमा बाक़ी है। उसके बाद हिंदुस्तान में वह शुक्रवारी-तांडव होगा जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। जिस तरह से किसी चलती गाड़ी को रोकने के लिए उसके डिब्बों को नहीं बल्कि उसके इंजन को कंट्रोल किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से भारत की होने वाली तबाही के क्रम में सबसे पहले भारत के उसी 3% समुदाय को ठिकाने लगाया जाएगा जिसके दम पर आज बाक़ी 97% भारतीय जनता मुफ़्त राशन-पानी और सब्सिडी प्राप्त कर रही है। विदित हो कि इस मुफ़्त राशन-पानी और सब्सिडी प्राप्त करने वाली भारतीय जनता में 97% हिस्सेदारी उस समुदाय की है जो समुदाय भारत की बहुसंख्यक हिंदू जनता और 3% कर-दाताओं को अपना मज़हबी दुश्मन और शिकार माना करता है।

अब भारत के उस 3% समुदाय को यह तय करना है कि वह आज की अपनी आराम-तलबी के चलते आज से 15-20 वर्षों बाद पंजाब, सिंध, बंगाल एवं कश्मीरी हिंदुओं की तरह एक बेहद दर्दनाक मौत मरना पसंद करेगा अथवा वह ‘धर्मो रक्षति रक्षितः… ‘ के सिद्धांत से सीख लेते हुए अपने भविष्यतकालीन अस्तित्व के रक्षण के लिए उद्यत होगा। यह बात वर्तमान के भारतीय संदर्भ में उतनी ही अधिक गंभीर है जितनी कि यह बात वर्ष 1947 के पूर्व में पाकिस्तानी-बंगाली एवं 1990 के पूर्व में कश्मीरी संदर्भ में गंभीर थी। जिसने भी इस बात को हल्के में लेने की कोशिश की, यक़ीन मानिए, वह निश्चित ही किसी मानसिक चिकित्सालय का अतिथि बनने की दहलीज पर खड़ा हुआ है।

चित्र: आज से लगभग 15-20 वर्षों के बाद भारत के हिंदू का होने वाला हश्र

भारतीय हिंदू की स्थिति कितनी भयावह है इसे जानने के लिए आप अंत में केवल यह छोटा सा सरकारी जनसांख्यिकी आंकड़ा जान लीजिए कि वर्ष 1947 से वर्ष 2001 तक भारत के 85 ज़िले राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन (50% से कम जनसंख्या वाले) हो चुके थे। यह सरकारी आंकड़ा घोषित तौर पर उपलब्ध आंकड़ों को लेकर तैयार किया गया था जिसमें अवैध बांग्लादेशी, रोहिंग्या एवं अन्य घुसपैठियों को शामिल नहीं किया गया था। यदि इस आंकड़े में इन सबको शामिल कर लिया जाए तो वास्तविक धरातल पर वर्ष 2001 तक 85 नहीं बल्कि 118 भारतीय ज़िलों में हिंदू-जनसंख्या का प्रतिशत 50% से नीचे आ चुका था। वर्ष 2020 आते-आते हिंदू-विहीन भारतीय ज़िलों की यह संख्या 123 हो चुकी थी।

टीम बाबा इज़रायली के द्वारा किए गए ताज़ा-तरीन सर्वे के मुताबिक़ अभी हाल ही में हिंदू-विहीन हुआ ज़िला संभवतः पूर्वी सिक्किम है जो अक्टूबर 2020 में राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन हुआ है। इसी क्रम में आने वाले कुछ दिनों के अंदर पश्चिम बंगाल का बीरभूम एवं उत्तर प्रदेश के बहराइच एवं बरेली ज़िले भी राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन होने जा रहे हैं। मोटे अनुमान के मुताबिक़ हिंदू जनसंख्या में कमी एवं ग़ैर-हिंदू जनसंख्या में विस्फ़ोटक वृद्धि दर के चलते वर्ष 2025, 2030 एवं 2035 तक क्रमशः भारत के 138, 182 एवं 337 ज़िले राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन हो जाएंगे। विदित रहे कि यह आंकड़ा टीम बाबा इज़रायली के द्वारा भारत के 718 ज़िलों में से 593 ज़िलों के उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के ऊपर किए गए एक बड़े शोधकार्य पर आधारित है। ऐसा अनुमान है कि यदि हम भारत के समस्त 718 ज़िलों के जनसांख्यिकी डाटा का समग्र अन्वेषण करेंगे तो वर्ष 2035 में भारत के राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन ज़िलों की संख्या, ग़ज़वा-ए-हिंद के लिए आवश्यक 340 हिंदू-विहीन ज़िलों (कुल भारतीय ज़िलों की संख्या का 50%+) की संख्या से कहीं ज़्यादा बैठेगी।

चित्र: देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है और इसे किसी पर ज़बरन नहीं थोपा जा सकता – सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया हलफ़नामा

कुल-मिलाकर उपरोक्त शोध का यही निष्कर्ष निकलता है कि अब भारत में ग़ज़वा-ए-हिंद को रोक पाना बिल्कुल असंभव है। ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ केंद्र सरकार ने भी इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह देश के लोगों पर ज़बरन परिवार नियोजन थोपने के साफ़ तौर पर विरोध में है। केंद्र के मुताबिक निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी एवं यह जनसांख्यिकी विकार पैदा करेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में पेश अपने हलफ़नामे में कहा कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है और इसे किसी पर ज़बरन नहीं थोपा जा सकता है। सरकार के द्वारा शीर्ष अदालत में दिए गए इस हलफ़नामे के पीछे सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है, इस विषय में तो ख़ैर आने वाला वक़्त ही बताएगा परंतु इतना तय है कि अब केवल हिंदू समुदाय की वर्तमान एवं आगामी तैयारियां ही यह निर्धारित करेंगी कि भारत में लगभग 15 वर्ष बाद होने वाले महा-विनाशक हिंदू-नरसंहार में भारत का वर्तमान हिंदू समुदाय, पूर्व के पंजाब, सिंध, बंगाल एवं कश्मीर के भारतीय हिंदू समुदाय की तरह ही इक-तरफ़ा भेड़ बनकर अपनी गर्दनें और औरतें ग़ाज़ियों के हाथों में सौंप देगा अथवा अपने शत्रुओं को थोड़ी-बहुत टक्कर देते हुए सिख-गुरुओं एवं प्रताप-शिवाजी महाराज की तर्ज़ पर अपना आत्म-सम्मान बचाने के लिए कोई प्रयास करेगा!

चित्र: राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन हो चुके भारत के ज़िलों की सूची (पूरी सूची नीचे दी गई पीडीएफ़ फ़ाइल में उपलब्ध)

अंत में अपनी बात समाप्त करते हुए हम बस यही कहेंगे कि अपने दरवाज़े पर लगभग आ खड़ी महा-विनाशक विपदा से निपटने के लिए तैयारियां करने के स्थान पर यदि आप अभी से इस चीज़ की गणना करने लगे हैं कि आपके ज़िले का नंबर कब आएगा, तो यक़ीन मानिए कि आपका आत्मसम्मान मर चुका है और आप एक ज़िंदा लाश की तरह इस भारत-भूमि पर बोझ बनकर खड़े हैं। आप किसी भी स्थिति में एक कसाई की दुकान के बाहर जाली मे बंद एक मुर्गे से अधिक मानसिक योग्यता नहीं रखते हैं।

शलोॐ…!

(विशेष: भारत की तेज़ी से समाप्त होती हिंदू-जनसंख्या के ऊपर ज़मीनी स्तर पर किया गया यह महा-शोधकार्य टीम बाबा इज़रायली के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम है। मौजूदा समय में इस पर निरंतर शोधकार्य किया जा रहा है जिसके भविष्यगामी परिणाम आने वाले समय में आपके समक्ष साझा किए जाते रहेंगे।)