ताजमहल और लाल किला के तथाकथित मालिकों के देश के प्रति समर्पण का एक सामयिक उदाहरण…

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यह समाचार अप्रैल 2020 का है जब गुजरात के आनंद ज़िला न्यायालय के एक माननीय जज ने अपने अधीनस्थ 10 कर्मचारियों से व्हाट्सएप संदेश के माध्यम से यह पूछा था कि क्या वह अपने वेतन में से स्वेच्छा से कोरोना-रक्षकों के लिए कुछ अनुदान करना चाहेंगे? उसके बाद निम्न-लिखित सूची में देखिए कि किन-किन कर्मचारियों ने अपने वेतन में से कुछ दान देने की सहमति दर्शाई थी और किन-किन कर्मचारियों ने एक फूटी कौड़ी तक देने से इंकार कर दिया था-

चित्र: कोरोना आपदा हेतु दान देने एवं दान देने से इंकार करने वाले गुजरात के आनंद ज़िला न्यायालय-कर्मियों की सूची

-पहला नाम है मोहम्मद एम० एन० शेख़ का। यह एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज हैं। इन्होंने अपने वेतन में से दान देने के लिए अपनी असहमति दर्शायी यानी कि इन्होंने अपने वेतन में से एक भी रुपया कोरोना आपदा हेतु दान देने से स्पष्ट मना कर दिया।

-दूसरा नाम है श्री आर० पी० वाघेला का। यह कोर्ट के रजिस्ट्रार हैं। इन्होंने सहमति दिखाई कि यह अपने वेतन में से कोरोना आपदा हेतु दान देना चाहते हैं।

-तीसरा नाम है मो० एम० एफ़० मिर्ज़ा का। यह यह कोर्ट सुपरिटेंडेंट है। इन्होंने भी दान देने से स्पष्ट इंकार कर दिया।

-चौथा नाम है श्री ए० जे० राम का। यह असिस्टेंट क्लर्क हैं। इन्होंने दान देने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी।

-पांचवां नाम है मोहम्मद एफ० वाई० मंसूरी का। यह भी असिस्टेंट क्लर्क हैं। इन्होंने दान न देने के लिए अपनी असहमति दिखाई।

-छठा नाम है श्री आर० वाई० मकवाना का। यह भी असिस्टेंट क्लर्क हैं। इन्होंने दान देने के लिए अपनी प्रदान की।

-उसके बाद नीचे के सभी हिंदू नाम जिसमें से कोई बाबू है, कोई पानी पिलाने वाला है, कोई चपरासी है- सबने अपने वेतन में से दान देने की सहर्ष अनुमति प्रदान कर दी।

अब ज़रा सोचिए कि हिंदू चपरासी, क्लर्क एवं पानी पिलाने वाले कम पढ़े-लिखे कर्मचारीगण, जिनके कि वेतन पहले से ही बेहद कम होते हैं- मुश्किल समय में वे तक दान करने की भावना रखते हैं लेकिन एडिशनल जज, सुपरिटेंडेंट और असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट जैसे पढ़े-लिखे क्लास-वन ईमानवाले अधिकारी जो कि भारी-भरकम वेतन पाते हैं- संकटकाल पड़ने पर देशहित में एक फूटी कौड़ी भी देने के लिए मना कर देते हैं।

इसके अलावा आपने यह बहुत बार देखा होगा कि जब भी सरकारी / ग़ैर-सरकारी अनुदान, सब्सिडीज़ अथवा अन्य हराम के माल (माल-ए-ग़नीमत) को हड़पने की बात आती है- ये मक्कार ईमानवाले सुन्नती ही लाइन में सबसे पहले खड़े दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावा रक्तदान एवं अंगदान जैसे महान-कार्यों को मज़हबी रूप से हराम माने वाले एवं इनमें अपनी शून्य भागीदारी रखने वाले ये धूर्त शुक्रवारी जंतु अपनी महा-कमीनगी का प्रदर्शन करते हुए वहां भी लाभार्थियों की लाइन में सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं। इस विषय में हम बहुत जल्द एक विस्तृत शोध-पत्र प्रकाशित करेंगे जिसमें कि आपको इस्लाम की ‘अल-तक़िया’ नीति का पालन करते हुए इन ईमानवालों के द्वारा काफ़िरों के माल को हड़पने की विभिन्न सुन्नती-विधियों और नीतियों के बारे में विस्तृत जानकरी प्रदान की जाएगी।

अब आप ज़रा स्वयं इस बात पर विचार कीजिए कि स्वयं को सुन्नती, परहेज़गार, अमनपसंद बताने वाले ताजमहल और लाल किला के तथाकथित मालिक जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने इस देश के लिए अपना ‘ख़ून’ बहाया है, वे किस प्रकार से देश में दुनिया के लोगों को मूर्ख बनाकर ‘अल-तक़िया’ खेल रहे हैं? उपरोक्त संदर्भित तथ्य, देश के प्रति इनके तथाकथित ‘प्रेम और समर्पण’ की सच्चाई को भली-भांति नंगा करने के लिए पर्याप्त हैं।

शलोॐ…!