‘यूपी का जंगलराज’: गेस्ट हाउस कांड, मायावती की इज़्ज़त लूटने और उनकी हत्या करने का नमाज़वादी कुकृत्य…

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वर्ष 1990 का दशक न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत की राजनीति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दशक था। यही वह दशक था जिसने कि राष्ट्रीय राजनीति में हिंदुत्व की एंट्री करवाते हुए हिंदुओं को गर्व की अनुभूति करवाई। इस दशक में राष्ट्रीय राजनीति में हिंदुत्व की एंट्री के होते ही कांग्रेस एवं अन्य हिंदू विरोधी धड़े भी मुखरता के साथ दृष्टिगोचर हुए। इन्हीं अन्य हिंदू विरोधी धड़ों में एक धड़ा समाजवादी पार्टी का भी था जो कि कालांतर में नमाज़वादी पार्टी के नाम से कुख्यात हुआ।

इस दशक की शुरुआत में जब राम मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद एवं भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए नेता आंदोलन के ज़रिए समाज में तेज़ी के साथ अपनी पैठ बनाते जा रहे थे तब कांग्रेस एवं उसकी विचारधारा से सहमति रखने वाले अन्य दल किसी भी स्थिति में भाजपा को रोकने के लिए हिंदू-विरोधी गठबंधनों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे थे। इसी क्रम में बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव इस गैंग के प्रमुख चेहरे बनकर सामने आए।

वर्ष 1992 में जब बाबरी ढांचे का विध्वंस हो गया तो वर्ष 1993 में भाजपा को रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की नमाज़वादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाजवादी पार्टी ने गठजोड़ किया। इन दोनों नेताओं ने ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ जैसे निंदनीय हिंदू-विरोधी नारे को अपनी टैगलाइन बनाते हुए साथ मिलकर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश के अंदर हिंदू-विरोधी राजनीति की आधारशिला रखी। उस समय वर्तमान उत्तराखंड भी अविभाजित उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था जिस कारण उत्तर प्रदेश विधानसभा में 422 सीटें थीं।

वर्ष 1993 में हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों में नमाज़वादी पार्टी ने 256 एवं बहुजन समाजवादी पार्टी ने 164 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इन चुनावों में गठबंधन की जीत हुई। एक ओर जहां नमाज़वादी पार्टी को 109 सीटें मिलीं तो वहीं दूसरी ओर बहुजन समाजवादी पार्टी को 67 सीटें प्राप्त हुईं। इसके बाद दोनों पार्टियों के मध्य ढाई-ढाई वर्षों के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करने की सहमति बनी। चूंकि नमाज़वादी पार्टी को बहुजन समाजवादी पार्टी से अधिक सीटें प्राप्त हुई थीं इसलिए पहले मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

2 वर्ष तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा लेकिन वर्ष 1995 के आते-आते इन दोनों साझेदारों के मध्य मनमुटाव पैदा हो गया। 2 जून, 1995 को बहुजन समाजवादी पार्टी ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी जिससे मुलायम सिंह यादव की सरकार गिर गई। उस समय लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस का कमरा नंबर-01 बसपा नेत्री मायावती का ठिकाना हुआ करता था। सरकार का अपने हाथ से निकल जाना मुलायम सिंह यादव एवं उनके गैंग के गुंडों को रास नहीं आया और उनकी पार्टी के गुंडे विधायक अपने गुर्गों को लेकर मायावती के ठिकाने की ओर कूच कर गए।

मायावती गेस्ट हाउस में अपने विधायकों के साथ वार्ता कर रही थीं तभी अचानक से बाहर से शोर-शराबे की आवाज़ें आने लगीं। गेस्ट हाउस के दरवाज़े पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने नमाज़वादी पार्टी के गुंडों को रोकने की कोशिश की परंतु उनके भारी संख्या बल के कारण वे उन्हें रोकने में सफल नहीं हुए और नमाज़वादी पार्टी के गुंडे गेस्ट हाउस के अंदर घुस गए। मायावती और उनके विधायक जब तक कुछ समझ पाते तब तक नमाज़वादी गुंडों ने मायावती और उनके विधायकों को घेर कर उनके ऊपर हमला कर दिया।

नमाज़वादी पार्टी के गुंडे चिल्ला-चिल्ला कर मायावती को जातिसूचक गालियां बकने लगे। जब मायावती के विधायकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो नमाज़वादी गुंडों ने उन पर जबरदस्त तरीके से लात-घूंसों की बरसात कर दी। जब बसपा विधायकों ने अपना बचाव किया तो नमाज़वादी गुंडों ने डंडों और लाठियों के साथ बसपा विधायकों के ऊपर हमला कर दिया। वे बसपा के पांच विधायकों को घसीटते हुए गाड़ी से मुख्यमंत्री आवास ले गए जहां पर पिस्टल की नोंक पर उनसे कोरे कागज़ पर दस्तख़त करवा लिए गए। वरिष्ठ बसपा नेता आर. के. चौधरी के साथ तो अत्यंत ही बर्बरतापूर्ण तरीक़े से मारपीट की गई। जैसे-तैसे उन्होंने अपने आप को कमरे में बंद करके अपने प्राण बचाए। चूंकि मुलायम सिंह यादव अभी भी मुख्यमंत्री पद पर बने हुए थे इसलिए पूरा पुलिस प्रशासन नमाज़वादी पार्टी के गुंडों के साथ था।

चित्र: इंडियन एक्सप्रेस समाचार-पत्र में छपी गेस्ट हाउस कांड की ख़बर

मुलायम सिंह के आदेश पर गेस्ट हाउस की बिजली-पानी की सप्लाई काट दी गई थी और तत्कालीन लखनऊ एसएसपी अपने आवास में आराम फ़रमा रहे थे। मुख्यमंत्री कार्यालय ने धमकी थी कि उक्त घटना की शिकायत आने की स्थिति में भी उनके गुंडों के ऊपर बल प्रयोग न किया जाए। जिला मजिस्ट्रेट ने इसके ख़िलाफ़ विरोध जताया तो आधी रात में ही उनका तबादला कर दिया गया।

पूरी रात गेस्ट हाउस में नमाज़वादी गुंडों का तांडव होता रहा। नमाज़वादी गुंडे मायावती एवं उनके विधायकों सहित पूरे बहुजन समाज के लिए भद्दी-भद्दी गालियां बकते रहे। गेस्ट हाउस में लगी हुई भारत की महान विभूतियों की तस्वीरों और मूर्तियों को तोड़कर जूतों और डंडों से कुचला गया। भारत के लोकतंत्र में लोकतंत्र के द्वारा चुनकर आने वाले गुंडों के द्वारा लोकतंत्र का ऐसा बलात्कार इससे पहले कभी नहीं हुआ था।

चित्र: गेस्ट हाउस कांड

भाजपा और केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से जब स्थिति नियंत्रण में आई तो बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं एवं अन्य नेताओं से बात की गई। इस घटना से मायावती और उनके साथी नेतागण इतने डरे हुए थे कि वे अपने-अपने कमरों से बाहर निकले को तैयार नहीं थे। जब उन्हें बार-बार यक़ीन दिलाया गया कि अब ख़तरा टल गया है तब कहीं जाकर वे बाहर आए।

बताते हैं कि नमाज़वादी गुंडों ने मायावती के कपड़े फाड़ डाले थे और उनके साथ दुष्कर्म करने का भी प्रयास किया था। यह ईश्वर की कृपा ही थी कि मायावती को थोड़ा सा मौका मिला और वे दिल्ली में बैठे हुए अटल बिहारी वाजपेई जी के पास अपना संदेश भिजवाने में कामयाब हो गईं। मायावती का संदेश प्राप्त होते ही अटल बिहारी वाजपेई जी ने अविलंब लखनऊ स्थित भाजपा कार्यालय पर फ़ोन करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी को तत्काल घटना-स्थल पहुंचकर मायावती की रक्षा करने का निर्देश दिया। ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी एवं उनके समर्थक बिजली की गति से घटनास्थल पर पहुंच गए और उन्होंने नमाज़वादी गुंडों और बलात्कारियों के हाथों मायावती की आबरू को लुटने से बचा लिया। यह बहुत बाद में यह पता चला कि मायावती की इज़्ज़त लूटने के पश्चात समाजवादी गुंडों की उनकी हत्या करने की भी योजना थी।

दबंग नेता की छवि वाले ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी एवं उनके कार्यकर्ताओं ने नमाज़वादी गुंडों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद से मायावती उन्हें अपना भाई मानने लगी थीं और उनके ख़िलाफ़ कभी भी बसपा ने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए। इतना ही नहीं भाजपा के ख़िलाफ़ राजनीति करने वाली मायावती ने कई बार अपने मुंह बोले भाई ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी के लिए चुनाव प्रचार तक किया। ज्ञात रहे कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी ने राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी और वे फ़र्रुख़ाबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे। वर्ष 1977 और 1985 में हुए चुनावों में जीत दर्ज़ करने के बाद उन्होंने 1991, 1993 और 1996 में वहीं से जीत की हैट्रिक भी लगाई थी।

चित्र: गेस्ट हाउस कांड का मुक़दमा वापस लेना एक बड़ी ग़लती थी -मायावती

इसके बाद भाजपा के समर्थन से मायावती की सरकार बनी। उन्होंने एक समिति बना कर गेस्ट हाउस कांड की जांच का ज़िम्मा सौंपा। 74 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र भी दायर हुए लेकिन भारत की कछुआगामी न्यायपालिका के सौजन्य से इस मामले में संलिप्त किसी भी नमाज़वादी गुंडे को कभी कोई सज़ा नहीं हुई। वर्ष 2019 में ‘मोदी लहर-2’ को रोकने के लिए जब सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो दोनों पार्टियों के मध्य हुए एक समझौते के तहत मायावती ने इस मुक़दमे को वापस ले लिया। हालांकि बाद में मायावती को अपने इस निर्णय पर अफ़सोस हुआ और उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया कि उनके द्वारा इस मुक़दमे को वापस लेना उनके द्वारा की गई एक भारी भूल थी।

ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी के द्वारा मायावती की इज़्ज़त को लूटने से वंचित रह जाने के कारण नमाज़वादी गुंडों एवं बलात्कारियों ने पंडित जी से बदला लेने की ठानी। 10 फ़रवरी, 1997 को नमाज़वादी पार्टी के 2 गुंडों- संजीव माहेश्वरी एवं विजय सिंह ने ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी की नृशंस हत्या कर दी। इस हत्याकांड में द्विवेदी जी के अंगरक्षक रहे ब्रजकिशोर तिवारी की भी जान चली गई थी। इस हत्याकांड के बाद मायावती अपने भाई को खो देने के कारण फूट-फूट कर रोई थीं।

इस मामले में लखनऊ के हज़रतगंज पुलिस थाने में मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, धनीराम वर्मा, मोहम्मद आज़म ख़ान और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नमाज़वादी गुंडों और अपराधियों के ख़िलाफ़ 3 मुक़दमे दर्ज़ किए गए थे। जनता के भारी दबाव के कारण इस मामले की जांच सीबीआई को प्रदान कर दी गई लेकिन सरकारें बदलती रहीं और ये मुक़दमा लंबा खिंचता रहा।

उनकी हत्या के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी प्रभा द्विवेदी को फ़र्रुख़ाबाद से अपना उम्मीदवार बनाया था। तब मायावती ने द्विवेदी जी को ‘शहीद’ बताते हुए लोगों से उनकी पत्नी को वोट देने की अपील की थी। वर्ष 2017 में हुए चुनावों में भाजपा ने उनके बेटे मेज़र सुनील दत्त द्विवेदी को टिकट दिया और वह वहां से जीत कर विधायक बने।

बहुत समय बाद ब्रह्मदत्त द्विवेदी जी की हत्या के मामले में दोनों नमाज़वादी गुंडों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई लेकिन निचली अदालतों की लेट-लतीफी के चलते ये दोनों नमाज़वादी गुंडे ज़मानत पर रिहा हो गए। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आज भी इस मामले में अंतिम फ़ैसला नहीं आ पाया है और अभी भी यह मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित चल रहा है।

लखनऊ का यह गेस्ट हाउस कांड नमाज़वादी गैंग के द्वारा अंजाम दिए गए अनेक कुकृत्यों में से मात्र एक कुकृत्य था जिसके विषय में आज बाबा इज़रायली के द्वारा देश की जनता को पुनः स्मरण कराया गया। आने वाले समय में पुनः कभी ऐसा ‘जंगलराज’ लौट कर न आए, इसके लिए देश की जनता को सदैव चौकस-चौकन्ना रहना होगा। इस बात को सुनिश्चित करने के लिए देश की जनता को यह शपथ भी लेनी होगी कि वह कभी भी अपना मत किसी अराजक, नक्सली एवं बलात्कारी विचारधारा के व्यक्तियों अथवा दलों को प्रदान न करे और सदैव उसी व्यक्ति एवं विचारधारा के दलों को अपना समर्थन दे जो लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ-साथ मानवीय मूल्यों का भी आदर करते हों!

शलोॐ…!