भारत की राजनीति में महिलाओं के शोषण एवं उन्हें इस्तेमाल करके ठिकाने लगा देने की ऐसी कई कांग्रेसी कहानियां रही हैं जिन्होंने एक लंबे समय तक अपनी चर्चाओं से भारत की राजनीति के एक स्याह हिस्से को देश की जनता के सामने प्रदर्शित किया है। दुर्भाग्य से इन कहानियों में देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा बिहार ने अधिक योगदान दिया है। इसके पीछे की मुख्य वजह, बिहार की सामंतशाही वाली राजनीति में शुरू से ही भ्रष्टाचारियों और अपराधियों का दबदबा होना रहा है।
फ़िलहाल, इस लेख में चर्चा की जाएगी वर्ष 1983 के कुख्यात बॉबी उर्फ़ निशा त्रिवेदी के साथ हुई उस निर्मतापूर्ण त्रासदी की जिसने बिहार के साथ-साथ पूरे भारत की राजनीति में हड़कंप मचा दिया था। बिहार विधान परिषद की तत्कालीन सभापति और कांग्रेसी नेता रही राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी बॉबी उर्फ़ निशा त्रिवेदी, बिहार विधानसभा सचिवालय में टाइपिस्ट के पद पर तैनात थीं। वे एक बेहद ख़ूबसूरत महिला थीं जिस वजह से बिहार कांग्रेस के कई नेहरूवादी नेता उन पर गन्दी नज़रें रखा करते थे। शुरुआत में तो निशा त्रिवेदी ने बिहार के कामुक-लंपट कांग्रेसी नेताओं से अपने आप को बचाए रखा लेकर कालांतर में वे किसी तरह उनके जाल में फंस गईं। उसके बाद क्या था, तत्कालीन बिहार कांग्रेस के भेड़िये राजनेताओं ने एक लंबे समय तक सिलसिलेवार तरीक़े से उनको अपनी हवस का शिकार बनाया और जब उनका मन भर गया तो उन्होंने निशा त्रिवेदी को ज़हर देकर मरवा दिया। दिनांक 7 मई, सन 1983 को बॉबी उर्फ़ निशा त्रिवेदी, बिहार कांग्रेस के कुकर्मी कांग्रेसी राजनेताओं की कामलोलुपता और नैतिक पतनता का शिकार बनकर इहलोक को सदा-सर्वदा के लिए अलविदा कह गईं।
इस घटना के बाद दोषियों के इशारे पर पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बॉबी की लाश का पोस्टमार्टम किया और जाली प्रमाणपत्र बनाकर आनन-फानन में प्रशासनिक सहयोग से उन्हें दफ़नवा दिया गया। इस मामले में बिहार विधान परिषद की तत्कालीन सभापति सरोज दास पर भी लीपापोती का आरोप लगा था। बॉबी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक डॉक्टर ने लिखा था कि बॉबी की मौत आंतरिक रक्तस्त्राव से हुई जबकि दूसरे डॉक्टर ने बॉबी की मौत का कारण हृदयाघात बताया था।
पटना के तत्कालीन एसएसपी रहे बिहार के तेज़तर्रार पुलिस अधिकारी आईपीएस किशोर कुणाल को जब बॉबी की हत्या का पता चला तो उन्होंने इसे संदिग्ध मानते हुए रातों-रात उनके शव को क़ब्र से निकलवा लिया। भले ही बिहार के प्रभावशाली कांग्रेसी नेतागण स्वयं को बचाने के लिए बॉबी की मृत्यु को सामान्य मृत्यु बताकर संभावित जांच करवाए जाने से पल्ला झाड़ रहे थे परंतु जब एसएसपी किशोर कुणाल ने बॉबी के शव का दोबारा से पोस्टमॉर्टम करवाया तो उसकी विसरा-जांच में भारी मात्रा में मेलेथियन ज़हर का दिया जाना पाया गया। इस विसरा-रिपोर्ट से यह सिद्ध हो गया कि बॉबी की मृत्यु सामान्य न होकर एक सुनियोजित कांग्रेसी-जनित हत्या थी।
फिर क्या था, पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर ने फ़ौरन ही अपनी जांच का दायरा बढ़ाते हुए युद्ध-स्तर पर बॉबी की हत्या के असली अपराधियों के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिशें शुरू कर दीं। बॉबी के संदिग्ध हत्यारे लगने वाले बिहार कांग्रेस के नेताओं को पूछताछ के लिए रोज़ तलब किया जाने लगा। ईमानदारी से जांच की गहनता को देखकर बिहार के कई कद्दावर कांग्रेसी नेताओं के पसीने छूट गए। उन्हें ऐसा लगने लगा कि यदि इस जांच को जल्द ही न रोका गया तो उनकी गर्दन कभी भी फांसी के फंदे तक पहुंच सकती है। कुणाल किशोर को शुरूआती प्रलोभन दिए गए परंतु उनके और अधिक सख़्त होते तेवर देखकर बिहार कांग्रेस के अपराधी नेताओं की हालत पतली होती गई। तभी अचानक से बिहार की जगन्नाथ मिश्र की कांग्रेसी सरकार ने इस केस को सीबीआई जांच के लिए स्थानांतरित कर दिया।
इस केस में उपरोक्त बातों से इतर भी एक आश्चर्यजनक पहलू है। इस केस की जांच के दौरान सीबीआई ने कभी भी पटना पुलिस से संपर्क करने तक की ज़हमत तक नहीं उठाई और किसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट की तरह ही इस केस की क्लोज़र-रिपोर्ट तैयार करके अदालत में दाख़िल भी कर दी। बिहार सरकार के सरकारी वकील ने भी सीबीआई की इस रिपोर्ट का विरोध नहीं किया और अदालत ने क्लोज़र रिपोर्ट को स्वीकार भी कर लिया। तत्कालीन बिहार सरकार के द्वारा इस केस को सीबीआई-जांच के लिए भेजे जाने से पहले इस केस की जांच करने वाले पटना के एसएसपी कुणाल किशोर, काफ़ी हद तक इस केस की गुत्थी को सुलझाने के क़रीब पहुंच गए थे परंतु बॉबी हत्याकांड के असली गुनहगार रहे कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें इस केस की जांच से हटवा दिया। दरअसल किशोर कुणाल की ईमानदारी और तेज़तर्रार छवि से डरे सहमे बिहार के तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर यह दबाव डाला कि वे इस केस को तत्काल ही कुणाल किशोर के हाथों से लेकर सीबीआई को सौंप दें।
स्वयं कुणाल किशोर के मुताबिक़ तत्कालीन बिहार सरकार के क़रीब चालीस कांग्रेसी विधायक और दो मंत्री, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के पास पहुंचे और उन्हें यह धमकी दी कि यदि उन्होंने इस केस को सीबीआई को स्थानांतरित नहीं किया तो उनकी सरकार गिरा दी जाएगी। उसके बाद मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने कुणाल किशोर को तलब करके उनसे केस के बाबत जानकारी मांगी। कुणाल किशोर ने उन्हें जांच के विषय में सीमित जानकारी देते हुए यह हिदायत दी कि बॉबी हत्याकांड एक ऐसा शोला है कि जिसमें यदि मुख्यमंत्री हस्तक्षेप करेंगे तो वो भी लपेटे में आ सकते हैं। अतः इसके बाद मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने किशोर कुणाल के ऊपर किसी भी तरह का दबाव देना उचित नहीं समझा। उन्हें पता था कि ईमानदार छवि वाले कुणाल किशोर पर उनके किसी दबाव का असर नहीं होगा।
उसके बाद बिहार के अपराधी कांग्रेसी नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल गुपचुप तरीक़े से दिल्ली जाकर 24 मई, सन 1983 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री मैमूना बेगम उर्फ़ इंदिरा गांधी से मिला और उन्हें इस केस के संबंध में सही-सही जानकारी देते हुए बताया कि यदि बिहार सरकार के तेज़तर्रार पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर के हाथों से इस केस की जांच वापस नहीं ली गई तो बिहार की आधी से अधिक कांग्रेसी-सरकार जेल के अंदर होगी। अपनी पार्टी के अपराधी नेताओं की ऐसी बातों को सुनने के बाद प्रधानमंत्री मैमूना बेगम समझ गईं कि यह केस अत्यंत ही गंभीर है। यदि जल्दी ही इस केस पर मिट्टी न डाली गई तो आगामी चुनावों में न केवल बिहार सरकार बल्कि उनकी केंद्र सरकार पर भी ग्रहण लग सकता है।
इसके बाद वही हुआ कि जिसकी अधिक सम्भावना थी। उसी दिन, शाम को लगभग 7:00 बजे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री मैमूना बेगम का टेलीफ़ोन आया और 25 मई, सन 1983 को अगले ही दिन बिहार सरकार ने अप्रत्याशित फ़ैसला लेते हुए इस केस को ‘केंद्र सरकार के पिंजरे के तोते’ के नाम से कुख्यात केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया। सीबीआई ने इस केस की पूरी जांच में न्याय के स्थान पर कांग्रेसी हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा और जांच के नाम पर काफ़ी समय बर्बाद करते हुए इस केस को सदा-सर्वदा के लिए कांग्रेसी षड्यंत्रों के तले दबा दिया।
पूर्व आईपीएस कुणाल किशोर के मुताबिक़ उस समय सीबीआई के कुछ अच्छे ईमानदार अधिकारियों ने दबे-मुंह पटना पुलिस की शुरूआती जांच की सराहना भी की थी मगर केंद्र सरकार ने उन ईमानदार सीबीआई अधिकारियों को उक्त केस की जांच से हटाकर एजेंसी के अन्य भ्रष्ट अधिकारियों को सौंप दिया। सीबीआई के उन भ्रष्ट अधिकारियों ने एजेंसी के मुख्यालय में ही बैठकर बे-सिर पैर की कहानी गढ़ ली और केस की क्लोज़र-रिपोर्ट में बॉबी की मृत्यु को आत्महत्या का मामला क़रार देकर बिहार के भ्रष्ट, पतित, अपराधी और बलात्कारी कांग्रेसी नेताओं को साफ़ बचा लिया।
कुणाल किशोर का कहना है कि बॉबी बलात्कार एवं हत्याकांड से अधिक उनको इस बात का दुःख है कि उनकी आंखों के सामने बिकाऊ प्रशासनिक एवं जांच अधिकारियों की सहायता से बिहार एवं केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने न्याय और संविधान का बलात्कार करते हुए भारत की एक बेटी को न्याय से वंचित करने का महापाप किया और वह कड़ी मेहनत और मुक़म्मल जांच के बाद भी इस मामले में बॉबी के बलात्कारी और हत्यारे कांग्रेसी गुंडों को क़ानून के कठघरे में लाकर सज़ा नहीं दिलवा पाए।
शलोॐ…!