जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि कांग्रेसी शासनकाल में हिन्दुस्तान निरंतर भीषण इस्लामी आतंकी हमलों और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। गत दशकों में भारत में विभिन्न स्थानों पर हुए आतंकवादी हमलों में देश ने जान-माल के साथ-साथ अपनी प्रगति को लेकर भी बड़ी क़ीमत चुकाई है। इसी सूची में 26 नवंबर, सन 2008 को देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई नगर में एक भीषण इस्लामी आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में 10 दुर्दांत इस्लामी आतंकवादियों ने नगर के तीन स्थानों पर अपनी कायरता दिखाते हुए 166 से अधिक लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी। इसके अलावा इस आतंकी हमले में सैकड़ों लोग घायल भी हुए थे। इन 10 इस्लामी आतंकियों में केवल एक इस्लामी आतंकवादी ‘अजमल आमिर कसाब’ को ही पकड़ा जा सका था।
इस हमले की जांच के बाद जो साक्ष्य सामने निकलकर आए, उनके आधार पर यह कहना अनुचित न होगा कि 26/11 का यह इस्लामी आतंकी हमला तत्कालीन कांग्रेस सरकार एवं पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का एक ज्वाइंट ऑपरेशन था। इसके लिए पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने हिंदू नामों वाले पहचान-पत्रों को अपने साथ रखा हुआ था तथा अपने हाथ पर हिंदुओं के धार्मिक प्रतीक के रूप में बांधा जाने वाला रक्षा-सूत्र ‘कलावा’ धारण किया हुआ था। इन सभी आतंकियों को भारतीय सुरक्षाबलों के हाथों किसी भी स्थिति में जीवित न पकड़े जाने के कठोर निर्देश भी दिए गए थे परन्तु भारतीय सेना के सेवानिवृत्त सैनिक एवं मुंबई पुलिस के सहायक उप-निरीक्षक अमर हुतात्मा स्वर्गीय तुकाराम गोपाल ओम्बले जी ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए मात्र एक लाठी के बल पर ही अल-कांग्रेस एवं आईएसआई के द्वारा बिछाए गए इस हिंदू-द्रोही व्यूह का भेदन कर दिया। सुरक्षाबलों एवं आतंकवादियों के बीच हो रही अंधाधुंध फायरिंग के बीच तुकाराम ओम्बले जी ने अपने जीवन की चिंता न करते हुए एक बहुत बड़ा निर्णय लिया और मौका देखते ही स्वचालित हथियार लिए हुए इस्लामी आतंकवादी अजमल कसाब पर झपट्टा मारकर उसको दबोच लिया। इसी दौरान अजमल कसाब ने अपने स्वचालित हथियार की पूरी मैगज़ीन श्री तुकाराम ओम्बले जी के शरीर में खाली कर दी। उनके इस साहसिक कार्य के लिए बाद में उन्हें मरणोपरांत ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया गया।
कांग्रेस-आईएसआई द्वारा गढ़े गए इस पूरे षड्यंत्र के पीछे का मुख्य उद्देश्य हिंदुत्व को आतंकवाद से जोड़ते हुए ‘भगवा-आतंकवाद’ के एक फ़र्ज़ी नरेटिव को गढ़कर इस्लामी आतंकवाद को कवर फ़ायर देना था। इस कार्य के लिए देशद्रोही कांग्रेसी जमात ने इस्लामी आतंकवादियों के साथ मिलकर पूरी तैयारियां भी करके रखी हुई थीं। इसी क्रम में हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए कांग्रेस ने ‘भगवा-आतंकवाद’ के नाम से फ़र्ज़ी कहानियां गढ़कर मोहम्मद अज़ीज़ बरनी नामक एक बौद्धिक इस्लामी आतंकवादी से ‘आरएसएस की साज़िश 26/11’ नामक एक पुस्तक भी लिखवाई थी जिसमें हिंदूवादी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ को एक आतंकी संगठन के रूप में प्रदर्शित किया गया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह सहित कई कांग्रेसी एवं इस्लामी जिहादी नेताओं ने इस पुस्तक का विमोचन किया था।
मुंबई पर आतंकी हमले के बाद भारतीय वायु सेना पाकिस्तान पर हमला करना चाहती थी परंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसके लिए अनुमति ही नहीं दी। हमें यह लिखते हुए भी बेहद शर्म का अनुभव हो रहा है कि इस आतंकवादी हमले के फ़ौरन बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी करते पाए गए थे। इतना ही नहीं, मुंबई हमले की जांच पूरी होने से पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मुंबई हमलों के लिए उत्तरदाई ठहराने वाली इस्लामी आतंकवादी अज़ीज़ बरनी की पुस्तक ‘आरएसएस की साज़िश 26/11’ का विमोचन करते हुए रंगे हाथों पकड़े गए। इसके उपरांत कांग्रेसी शासनकाल में ही पूर्ण हुई जांच में यह पाया गया कि मुंबई में हुआ इस्लामी आतंकवादी हमला पूरी तरह से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था।
मुंबई में हुए 26/11 के इस्लामी आतंकी हमले की बरसी पर बलिदान हुए सभी अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम एक बार पुनः अमर बलिदानी हुतात्मा तुकाराम ओम्बले के सर्वोच्च बलिदान को शत-शत नमन करते हैं जिन्होंने अपना बलिदान देकर हिंदुत्व को ‘भगवा-आतंकवाद’ नामक फ़र्ज़ी नरेटिव में लपेटने वाली घिनौनी कांग्रेसी साज़िश को अपने अकेले के दम पर हिंदवी-खाक़ में दफ़न कर दिया।
शलोॐ…!