19 जनवरी: समस्त हिंदू समुदाय के लिए आत्ममंथन करने का दिन…

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हम प्रत्येक वर्ष 19 जनवरी को कश्मीरी हिंदुओं का ‘नरसंहार-दिवस’ मनाया करते हैं। प्रतिवर्ष यह दिन कश्मीरी हिंदुओं के साथ-साथ पूरे विश्व के सनातनी हिंदुओं के लिए पीड़ा की एक लहर बनकर गुज़रा करता है। हालांकि वैश्विक हिंदू समुदाय में ऐसे भी निकृष्ट प्रजाति के हिंदू हैं, जो माता भारती की हार के इस दिन के रक्त-रंजित इतिहास को याद करने एवं उसे अपनी अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने के स्थान पर क्रिकेट के किसी मैच में भारत की जीत का जश्न मनाकर अपनी नीचता का प्रमाण दिया करते हैं।

चित्र: बांदीपोरा नरसंहार (वर्ष 1990) एवं वंधामा नरसंहार (वर्ष 1998)

कश्मीरी हिंदू, जिन्हें कि कश्मीर त्रासदी की गाथाओं में अक्सर ‘कश्मीरी पंडित’ नामक शब्द से परिभाषित किया गया, असलियत में ये हिंदुओं की किसी एक जाति के लोग न होकर उनकी सभी जातियों एवं वर्गों के लोग थे। सबसे नज़दीकी समय में विश्व के जिन समुदायों ने सबसे अधिक इस्लामी अत्याचार एवं क्रूरता के दंश को अपने ऊपर झेला है, उनमें से एक समुदाय भारत का यह कश्मीरी हिंदू समुदाय है। कश्मीरी हिंदुओं के अलावा विश्व के किसी देश में आज तक ऐसी मिसाल देखने को नहीं मिली कि किसी देश की बहुसंख्यक आबादी के एक हिस्से को इस्लामी आतंकवाद के कारण अपने ही देश के एक अन्य हिस्से में शरणार्थी बनकर रहना पड़े एवं उस देश की सरकारें एवं न्यायपालिकाएं, उनके ऊपर अत्याचार करने वाले अत्याचारी इस्लामी आतंकवादियों को उनके गुनाहों की सज़ा भी न दिलवा पाएं!

उपरोक्त बात के अतिरिक्त यहां पर हम इस बात से भी अपना मुंह नहीं मोड़ सकते हैं कि कश्मीर में हुए इस भयानक नरसंहार के शिकार एवं पीड़ित रहे हमारे भूतपूर्व कश्मीरी हिंदू भाई लोग भी अपने ज़माने के सबसे बड़े सेकुलर हिंदू हुआ करते थे। उस ज़माने में हमारे इन कश्मीरी हिंदुओं की सेकुलरिज़्म के चर्चे ऐसे थे कि कई बार तो कश्मीर की तथाकथित आज़ादी के लिए जुम्मे की नमाज़ के बाद अपने ईमानवाले भाइयों के साथ हमारे ये कश्मीरी हिंदू भाई लोग, शेष भारत के हिंदुओं के ख़िलाफ़ तख़्तियां लेकर भारत-विरोधी नारे लगाते हुए भी देखे गए थे! हो सकता है कि हमारे इन कश्मीरी हिंदू भाइयों को यह सब मज़बूरी में करना पड़ा हो परंतु इस बाद से कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता है कि हिंदुस्तानियत को दोयम दर्ज़े पर रखने वाले हमारे कश्मीरी भाइयों को केवल और केवल कश्मीरियत का ही ख़ास ख़याल रहा करता था। अपने ईमानवाले भाइयों के सेकुलर प्रेम में दीवाने बने हमारे इन कश्मीरी हिंदू भाइयों को स्वप्न में भी इस बात का इल्म नहीं रहा होगा कि हिंदुस्तानियत के अलावा किसी भी अन्य प्रकार की ‘….यत’ को धारण करने के अंतिम परिणाम कभी इतने भयावह भी हो सकते हैं! शायद आपको विश्वास न हो परंतु यह बात सौ प्रतिशत सत्य है कि इतना सब कुछ झेलने के बाद आज भी कुछ ऐसे बेशर्म कश्मीरी हिंदू लोग हैं जो सेकुलरिज़्म की अफ़ीम को पीकर कश्मीरी अलगाववादियों को रमज़ान की इफ़्तारी और बक़रीद की दावतें देकर धारा-370 के ख़ात्मे समेत कश्मीर-क्षेत्र पर भारत के नियंत्रण को अवैध बताया करते हैं!

आने वाले इस्लामी सैलाब के बारे में अनुमान लगाकर उस ज़माने में भी कई समझदार लोगों ने हमारे इन कश्मीरी हिंदू भाइयों को अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक उपायों को अपनाने की सलाह दी थी परंतु हमारे कश्मीरी भाई सेब के बाग़ों में अपने ईमानवाले भाइयों के साथ बकरे के गोश्त की बोटियों को नोंचने में इतने व्यस्त हो गए थे कि उन्होंने उस अति-आवश्यक सलाह को भी नज़रअंदाज़ कर दिया। आज भी समझदार हिंदुओं का एक समूह, शेष भारत के हिंदुओं को उनके सामने खड़े भविष्यगत इस्लामी ख़तरे के विषय में सतत रूप से आगाह कर रहा है परंतु शेष भारत का वर्तमान हिंदू समुदाय भी ठीक उसी प्रकार से सेकुलरिज़्म की अफ़ीम खाकर अपने कश्मीरी पुरखों की ही पुरातन-परिपाटी पर अग्रसर है।

चित्र: कश्मीरी हिंदुओं को जम्मू में शरण देने का विरोध करते जम्मू के स्थानीय हिंदू

ख़ैर, अब कश्मीर के पड़ोसी हिस्से यानी जम्मू के हिंदुओं की बात करते हैं। हमारे इन कश्मीरी हिंदू भाइयों के साथ-साथ हमारे जम्मू वाले हिंदू भाई भी कुछ कम नहीं थे। सामूहिक बलात्कार एवं नरसंहार के शिकार होने बाद जब कश्मीर के हिंदू लोग, पलायन करके जम्मू में शरणार्थी बनकर आ रहे थे तो जम्मू में रहने वाले हमारे हिंदू भाइयों ने अपने हाथों में लाल रंग के बड़े-बड़े बैनर लेकर उनके आने का विरोध किया था। जम्मू के हिंदुओं का कहना था कि उनको कश्मीरी शरणार्थी नहीं चाहिए एवं कश्मीरियों को जम्मू का हक़ मत दो। हालांकि जम्मू के हिंदुओं के द्वारा किए जाने वाले इस विरोध के पीछे ये कारण भी अंतर्निहित थे कि वे कश्मीरी हिंदुओं को अपने से अधिक ईमानवालों के निकट पाते थे। शायद यही वजह थी कि कश्मीरी हिंदुओं का व्यवहार एवं व्यापार, जम्मू के हिंदुओं से अधिक कश्मीर घाटी के ईमानवालों के साथ चला करता था और वे अपने आपको हिंदुस्तानी से पहले कश्मीरी समझा करते थे।

हालांकि बाद में जम्मू के ये हिंदू, जो 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं को बसाने का विरोध कर रहे थे, पिछले कुछ वर्षों में अवैध रूप से घुसपैठ करके आए ईमानवाले रोहिंग्या शरणार्थियों को झेलने के लिए विवश कर दिए गए। हाल-फ़िलहाल में जम्मू की हालत ऐसी है कि जम्मू भी अगला कश्मीर बनने के कगार पर है। जम्मू और कश्मीर से लद्दाख़ के अलग कर दिए जाने के बाद वर्तमान जम्मू और कश्मीर में काफ़िरों की संख्या में और भी तेज़ी से कमी आई है और इस प्रकार ‘राज्य का ईमान’ पहले से भी और मज़बूत हुआ है। दैनिक भास्कर समाचार-पत्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार म्यांमार से आए रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने की लगातार बात कर रही है, लेकिन जम्मू म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (जेएमसी) में स्थानीय लोगों के मुक़ाबले ऐसे अवैध प्रवासियों को तरजीह मिल रही है। करीब 200 रोहिंग्या घुसपैठिये शरणार्थी जम्मू म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में दिहाड़ी मजदूर हैं, जो नालियों की सफ़ाई का काम करते हैं। इन्हें हर रोज़ 400 रुपए मिलते हैं। जबकि, इसी काम के लिए स्थानीय मज़दूरों को मात्र 225 रुपए ही मिलते हैं। ठेकेदारों ने इन रोहिंग्या घुसपैठिए मेहमानों को लाने-ले जाने के लिए वाहनों का इंतज़ाम भी किया है।

चित्र: एक सुनियोजित साज़िश के तहत रोहिंग्या घुसपैठियों को जम्मू में बसाया जा रहा है

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ देश भर में 40,000 से ज़्यादा रोहिंग्या शरणार्थी घुसपैठिए हैं परंतु वास्तव में इन रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या अनुमान से कहीं ज़्यादा है। जम्मू और इससे सटे 4 जिलों में ये रोहिंग्या घुसपैठिए बग़ैर किसी रोकटोक के आर्मी कैंप, पुलिस लाइन और रेलवे लाइन जैसी संवेदनशील जगहों के नज़दीक अपने तंबू लगाकर राष्ट्रीय-सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यदि जम्मू-क्षेत्र में इन अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों एवं इस्लामी आतंकवादियों को बसाने और उन्हें जंतु-विशेष की तरह तूफ़ानी गति से प्रजनन करने से नहीं रोका गया तो आने वाले एक से दो हज़ार दिनों के अंदर जम्मू-क्षेत्र, अगला कश्मीर बन जाएगा।

उपरोक्त चर्चा का निष्कर्ष यह है कि जब एक राज्य जम्मू एवं कश्मीर के ही दो भागों- जम्मू व कश्मीर के जब हिंदू एक नहीं हो पाए तो भला शेष भारत के हिंदुओं और कश्मीरी हिंदुओं के बीच किस प्रकार प्रेम उत्पन्न हो सकता था? वहीं दूसरी ओर हज़ारों किलोमीटर दूर म्यांमार से आए अवैध बांग्लादेशी रोहिंग्या घुसपैठियों को बसाने के लिए भारत के प्रत्येक क्षेत्र में रहने वाले ईमानवालों ने अपने ग़ज़ब के मज़हबी हक़ अदा कर दिए। ऐसे में यदि शेष-भारत का हिंदू यह समझ रहा है कि वह अपने-अपने क्षेत्र में सुरक्षित है तो यह उसकी बहुत बड़ी भूल है। हर दो से तीन महीने में भारत का एक ज़िला राजनैतिक रूप हिंदू-विहीन होता चला जा रहा है। टीम बाबा इज़रायली द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट के मुताबिक़ दिसंबर, 2020 तक भारत के 123 ज़िले राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन हो चुके थे। विदित रहे कि राजनैतिक रूप से हिंदू-विहीन भारतीय ज़िलों का यह आंकड़ा टीम बाबा इज़रायली के द्वारा भारत के 718 ज़िलों में से 593 ज़िलों के उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के ऊपर किए गए एक बड़े शोधकार्य पर आधारित है। आपके ज़िले का कब नंबर लगने वाला है, यह आप इस लिस्ट में ढूंढ सकते हैं।

चित्र: जम्मू में रोहिंग्या घुसपैठियों को वहां के स्थानीय निवासियों पर तरजीह दी जा रही है

भारत के प्रत्येक हिंदू के लिए उसके अस्तित्व के बारे में भविष्यवाणी करती हुई बाबा इज़रायली की यह अंतिम चेतावनी है कि अभी भी समय शेष है, सुधर जाओ। बिकरू (उत्तर प्रदेश) के आतंकवादी विकास दुबे के एनकाउंटर सरीखी घटनाओं पर जोगी बाबा को अगले चुनावों में देख लेने की ‘आत्मघाती बंदर घुड़की’ देने के स्थान पर लाखों कश्मीरी हिंदुओं के इस्लामी नरसंहार जैसी घटनाओं का माक़ूल जबाब देने की आदत डालो अन्यथा जिस प्रकार से सेकुलर कश्मीरी हिंदुओं को अपने सेब के लहलहाते बाग़ों, घरों एवं संपत्तियों को छोड़कर 19 जनवरी, 1990 की हाड़-कंपाती स्याह सर्द रात में कायरों की भांति अपमानित होकर अनंत काल के लिए पलायन करना पड़ा, ठीक उसी प्रकार एक दिन तुमको भी अपने मंहगे मोबाइलों, कारों, फ़ैक्टरियों, बड़े-बड़े संस्थानों एवं कार्यालयों समेत अपनी माओं, बहनों और बेटियों से भी हाथ धोना पड़ेगा। यदि सेकुलरिज़्म की अफ़ीम को लात मारकर, सहिष्णुता और उदारता के ब्रांड-एम्बेसेडर कश्मीरी हिंदू के मात्र एक प्रतिशत हिस्से ने भी ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ के ध्येय वाक्य की शिक्षा एवं उसके क्रियान्वयन पर थोड़ा सा भी ध्यान देते हुए अपनी रक्षार्थ, शस्त्रों का संधान कर लिया होता तो संभवतः आज हमारे पूज्य ऋषि कश्यप की तपोभूमि ‘कश्मीर’ का इतिहास कुछ और ही होता…

शलोॐ…!