इस्लामी आतंकवाद की विचारधारा का मूल

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आमतौर पर जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि दुनिया में इस्लामी आतंकवाद सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है और पूरी दुनिया इससे लड़ रही है। ज्यादा नहीं बस 15-20 वर्ष पहले तक अधिकतर पश्चिमी देश इस्लामी आतंकवाद को क़ानून-व्यवस्था का मामला बताकर अपनी आंखें मूंद लिया करते थे लेकिन विगत कुछ वर्षों में जब स्वयं उन्हें इस्लामी आतंकवाद के दुष्परिणामों से रू-ब-रू होना पड़ा है, तब कहीं जाकर उन्हें ये समझ आया है कि इस्लामी आतंकवाद को केवल क़ानून-व्यवस्था का मुद्दा बनाकर नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता।

जैसे-जैसे इन पिछले 10-15 वर्षों के दौरान दुनिया इस्लामी आतंकवाद के प्रति असहिष्णु होती चली गयी, वैसे-वैसे इस्लामी आतंकवादियों की पोषक इनकी बौद्धिक  विंग इनको कवर फायर देने के लिए तरह-तरह के प्रतिमान गढ़ती चली गयी। प्रथम दृष्टया इन प्रतिमानों का रूप दुनिया को भले ही कुछ और नज़र आया हो मगर अन्ततोगत्वा इसके केंद्र में दुनिया में अहले-इस्लाम को संरक्षण देना व इसको फैलाना ही रहा है।

इस तथ्य को गहनता से जानने के लिए सबसे पहले हमें इस्लाम की मूल विचारधारा को समझना होगा जिसके मूल में ही यह बात उल्लिखित है कि ये दुनिया अल्लाह ने केवल और केवल मुसलमानों के लिए बनायी है और ग़ैर-मुस्लिमों को इसमें रहने का हक़ नहीं है।

देखिये क़ुरआन के कुछ वक्तव्य-

“ऐ मुसलमानों! तुम ग़ैर-मुसलमानों से लड़ो। तुमसे उन्हें सख़्ती मिलनी चाहिए।”
-09:123, सूरह अत-तौबा, क़ुरआन

“और तुम उनको जहाँ पाओ, उनको क़त्ल करो।”
-02:19, सूरह अल-बक़रा, क़ुरआन

“काफ़िरों से तब तक लड़ते रहो, जब तक अल्लाह का दीन पूरी ज़मीन पर न फ़ैल जाए।”
-08:39, सूरह अल-अनफ़ाल

“ऐ नबी! काफ़िरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो। उनका ठिकाना जहन्नुम है।”
-09:73, सूरह अत-तौबा एवं 66:09, सूरह अत-तहरीम, क़ुरआन

“अल्लाह ने काफ़िरों के लिए जहन्नुम की आग तय कर रखी है।”
-09:68, सूरह अत-तौबा, क़ुरआन

“उनसे लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं और न आख़िरत पर। जो उसे हराम नहीं समझते जिसे अल्लाह ने अपने नबी के द्वारा हराम ठहराया है। उनसे तब तक जंग करो जब तक वे ज़लील होकर जज़िया न देने लगें।”
-09:29, सूरह अत-तौबा, क़ुरआन

“मूर्ति-पूजक लोग नापाक होते हैं।”
-09:28, सूरह अत-तौबा, क़ुरआन

“जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिए अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है। उसका ठिकाना जहन्नुम है।”
-05:72, सूरह अल-माइदा, क़ुरआन

ऊपर दिए क़ुरआन के वक्तव्यों को पढ़कर ये स्पष्ट है कि पूरे विश्व की इस्लामी जमात आज इस्लामी विचारधारा के अनुसार ही कार्य कर रही है। जिसे हम इस्लामी आतंकवाद कह रहे हैं दरअसल वह उनके मज़हब का ही एक बुनियादी हिस्सा है। कोई बड़ी बात नहीं कि आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की पैरोकारी करने वाले अहले-इस्लामी लोग आने वाले वक़्त में ऊपर उल्लिखित की गयी इस्लामी विचारधारा को शत-प्रतिशत लागू करवाने के लिए क़ानूनी रूप से पहल करें क्योंकि भारत का तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संविधान सभी लोगों को अपने-अपने मज़हब को पूरी निष्ठा से पालन करने की ज़िम्मेदारी देता है।

शलोॐ…!

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