एक बहुत पुरानी कहावत है कि हड्डी दिखी नहीं कि कुत्तों का झुंड अपनी जीभ लपकाते हुए आ गया। वर्तमान में यह कहावत भारत की विपक्षी पार्टी कांग्रेस पर सटीक बैठती है जो भारत की तथाकथित आज़ादी के बाद लगभग 70 वर्षों तक भारत पर निष्कंटक रूप से हुक़ूमत करती रही परंतु फिर भी उसने किसानों की हालत सुधारने के लिए कुछ विशेष उपाय नहीं किए। इसके पीछे की मुख्य वजह यह रही कि कांग्रेस ने किसानों के लिए कार्य करने के स्थान पर अपना वोट-बैंक चमकाने के लिए केवल किसानों की राजनीति की। साथ ही अपनी इसी क्षुद्र राजनीति को चमकाने के लिए कांग्रेस ने अपनी पिछली तीन पीढ़ियों से लगातार ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा दिया परंतु उसके शासनकाल में ग़रीबी तो नहीं हटी, हां हज़ारों ग़रीब देश से अवश्य ‘हट गए’।
एक बार एक जनसभा में कांग्रेस के बड़े नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गांधी ने बहुत ही शर्मनाक तरीके से इस तथ्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि कांग्रेसी सरकारों के दौरान ऊपर से चलने वाले ₹100 में से ₹99 बीच में ही भ्रष्टाचारियों और बिचौलियों द्वारा खा लिए जाते हैं जबकि मात्र ₹1 ही जनता तक पहुंच पाता है। बीते 70 वर्षों में शायद यही कांग्रेसी सरकारों की एकमात्र उपलब्धि रही थी जिसे दशकों तक भारतीय जनमानस ने अपनी नियति समझ लिया था। यह ऐसा समय था कि जब भारत की जनता न चाहते हुए भी इस भ्रष्टाचारी शासन-व्यवस्था के साथ अपना जीवन जीने के लिए अभिशप्त थी क्योंकि उसे इस गंदगी से निकलने का कोई रास्ता ही दिखाई नहीं पड़ रहा था।
वर्ष 2014 में हुए आम चुनावों में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में भारी बहुमत से जीत दर्ज़ की तो उसके बाद एक के बाद एक करके इस भ्रष्टाचारी-व्यवस्था को सुधारने की दिशा में कई क़दम उठाए गए। इन क़दमों में से एक क़दम जनता को प्रत्यक्ष लाभांतरण योजनाओं (DBT) के द्वारा सरकारी मदद एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करना भी था। सरकार द्वारा लागू की गई इन योजनाओं का परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे भारत के भ्रष्टाचारी तंत्र में छुपे हुए मोटे भ्रष्टाचारी मगरमच्छों को दाना-पानी मिलना बंद हो गया और देश के वंचित-वर्ग से संबंध रखने वाली ग़रीब जनता सरकारी मदद एवं सुविधाओं के द्वारा प्रत्यक्ष लाभान्वित होने लगी। सरकार के इन क़दमों से देश के भ्रष्टाचारी मगरमच्छों को 180 डिग्री के कोण से हुए इन सुधारों के कारण जो सदमा लगा, उस पर नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों ने और अधिक चोट दे डाली। इससे उनको यह स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा कि आने वाले समय में उनका दाना-पानी पूरी तरह से बंद होने वाला है। अतः इन भ्रष्टाचारी मगरमच्छों ने मौक़ा देखते ही विभिन्न मुद्दों पर जनता को भड़काकर सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद करना शुरू कर दिया। निजी स्वार्थ में अंधे होकर ये लोग इतने अधिक नीचे गिर गए कि इन्होंने सरकार को अस्थिर करने के लिए कश्मीर में धारा-370 के ख़ात्मे एवं सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले भारत-विरोधी इस्लामी आतंकवादी संगठनों तक को भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अपना समर्थन देना शुरू कर दिया।
गत दिनों जब भारत सरकार ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए किसानों और उनकी फ़सल के ख़रीददारों के मध्य दलाली वसूलने वाले बिचौलियों को ठिकाने लगाने के लिए तीन अहम किसान बिलों को पारित किया तो ये दल्ले भ्रष्टाचारी मगरमच्छ बौखला उठे। इन्हें लगा कि अब तो हमारी रीढ़ की हड्डी ही टूट गई है और अब यदि हम ख़ामोश रह गए तो फिर हमारी दलाली का भविष्य चौपट है। अतः इन्होंने बौखलाहट में सरकार के सुधारात्मक क़दमों के ख़िलाफ़ किसानों को भड़काना शुरू कर दिया और साथ ही साथ अपने भारत-विरोधी इस्लामी आतंकवादी मित्र संगठनों के द्वारा उन्हें फंडिंग एवं समर्थन प्रदान करवाते हुए सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतार दिया।
आज यदि हम इस हो रहे किसान आंदोलन के पीछे खड़े चेहरों की बात करें तो आपको इसमें वास्तविक किसान बहुत पीछे खड़ा दिखाई पड़ेगा। इस आंदोलन के फ्रंट पर आपको वे लोग ही नज़र आएंगे जो कभी जेएनयू में भारत-विरोधी कार्यक्रम करने वाले टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोगों के साथ खड़े थे। इस आंदोलन में आपको वे समस्त राजनीतिक दल भी शामिल मिलेंगे जिन्होंने सीएए और एनआरसी जैसे राष्ट्रवादी मुद्दों के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ में आयोजित भारत-विरोधी धरने में शिरकत करते हुए भारत-विरोधी नारे लगाए थे और पूर्वोत्तर को शेष भारत से अलग करने की धमकी भी दी थी। यदि हम थोड़ी और गहनता के साथ अपनी दृष्टि को दौड़ाएंगे तो हम पाएंगे कि इस आंदोलन के फंडिंग एजेंट्स भी ठीक उसी समूह से हैं जिन्होंने शाहीन बाग़ में आयोजित भारत-विरोधी धरने एवं दिल्ली दंगों में बड़ी फंडिंग की थी।
इसके अलावा इस किसान प्रदर्शन में आए हुए तथाकथित किसानों द्वारा इंडिया गेट पर ट्रैक्टर जलाना, सार्वजनिक और सरकारी संपत्तियों में आग लगाना, मैमूना बेगम (इंदिरा गांधी) की तर्ज़ पर प्रधानमंत्री मोदी को जान से मार देने की धमकी देना, जेलों में बंद आतंकवादियों, माओवादियों और बौद्धिक आतंकवादियों को रिहा करने की मांग करना- ये सब से सब इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि किसानों के नाम पर किया जाने वाला यह प्रदर्शन कोई किसान प्रदर्शन नहीं है बल्कि यह भारत-विरोधी गैंग के द्वारा देश को अस्थिर करने का एक प्रयोग भर है। कोई भी दूर-दृष्टा व्यक्ति इस संभावना से इंकार नहीं कर सकता है कि देशद्रोही ग़ज़वा-ए-हिंद एवं खालिस्तानी नेटवर्क इस तथाकथित किसान आन्दोलन की आड़ में देश में कोई बड़ा दंगा करवाने का एक भीषण षड्यंत्र रच रहे होंगे! देश की सुरक्षा एजेंसियों एवं सरकार से हमारा त्वरित-अनुरोध है कि वे कम से कम धरना स्थल पर बैठे हुए इन तथाकथित किसानों का जल्द से जल्द KYC-पंजीकरण अवश्य करवा लें ताकि भविष्य में अवश्यंभावी अंजाम दिए जाने वाले आतंकवादी कृत्यों की स्थिति में किसानों के भेष में छुपे हुए इन देशद्रोही आतंकवादियों को फ़ौरन दबोचा जा सके।
शलोॐ…!