श्री राम हमारे पूर्वज: एक उच्चतम कोटि का ‘अल-तक़िया ‘ प्रयोग…

babaisraeli.com202012216754

आए दिन अथवा गाहे-बगाहे लगभग हर हिंदू का किसी न किसी शातिर मोमिन से सामना होता है और लगभग हर बार वह मोमिन उनसे कुछ ऐसी बात कह जाता है कि जिसके वे मुरीद हो जाते हैं लेकिन वास्तव में वह मोमिन उन्हें मूर्ख बना जाता है और उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता! उदाहरण के लिए इस चित्र में दिखाया जा रहे मोमिन मौलाना के इस बयान को ही देख लीजिए जिसमें यह कह रहा है कि बाबर और औरंगज़ेब हमारे पूर्वज नहीं बल्कि हमारे पूर्वज तो श्री राम हैं। बेहद शातिरपन और चालाकी से भरा मौलाना का यह बयान 99.99% सेकुलर और अपने धार्मिक नरेटिव की समझ से कोसों दूर रहने वाले आम हिंदुओं को घुटनों पर लाने के लिए काफ़ी है।

चित्र: साभार अमर उजाला

हालांकि इस मौलाना के इस बयान में कुछ भी ग़लत नहीं है। श्री राम न केवल हिंदुओं के बल्कि समस्त विश्व के मनुष्यों के पूर्वज हैं। कोई मत, पंथ अथवा संप्रदाय सप्रमाण इस बात से अपना मुख नहीं मोड़ सकता कि श्री राम उनके पूर्वज नहीं है परंतु एक ही अल्लाह, एक ही किताब, एक ही नबी और एक ही शरीयत को मानने वाले एक ही अरब क्षेत्र के एक ही कबीले के दो उप-कबीलों (शिया-सुन्नी) के बीच की 1,400 साल पुरानी ख़ूनी-रंजिश, इस बात की तस्दीक करती है कि जब इतने क़रीब होकर भी अरब के ये दो उप-कबीले आपस में एक नहीं हो पाए तो फिर आख़िर इस मौलाना को ऐसी कौन सी ज़रूरत आन पड़ी जो यह अपनी धुर-विरोधी धार्मिक आस्थाओं को मानने वाले नुमाइंदों (हिंदुओं) के ईश्वर को अपना पूर्वज क़बूल करने के लिए तैयार हो गया?

इस बात को हम दावे के साथ कह सकते हैं कि इस मौलाना के उपरोक्त बयान को सुनने के बाद जागरूक से जागरूक हिंदू भी इस मौलाना की मज़हबी विरासत अर्थात इस्लामी जमात के द्वारा पिछले 1,400 सालों में फैलाए गए वैश्विक आतंकवाद, ज़ाहिलियत और क़त्लो-ग़ारत के बर्बर इतिहास को एक किनारे रखकर इस मौलाना और इसके इस्लाम का प्रशंसक बन बैठा होगा और इसे ‘असली मुसलमान’ होने का सर्टिफिकेट बांटता हुआ पगलाता दिखाई पड़ा होगा। इसके उलट इस मौलाना ने उन नासमझ हिंदुओं की मूर्खता पर हंसते हुए सदाबहार इस्लामी रसूलास्त्र ‘अल-तक़िया‘ के सफ़ल प्रयोग पर मन ही मन अल्लाह का शुक्राना अदा किया होगा।

विदित हो कि यह ‘अल-तक़िया’ एक ऐसा इस्लामी टूल है जिसे हम ‘रसूलास्त्र’ के नाम से संबोधित करते हैं। इस अल-तक़िया को हम ‘रसूलास्त्र’ क्यों कहते हैं, दरअसल इसके पीछे बहुत बड़े कारण हैं जिनके विषय में हम ‘ग़ज़वा-ए-हिंद‘ के ऊपर आने वाली अपनी आगामी लेखन-श्रृंखला में बात करेंगे। फ़िलहाल अभी संक्षेप में आप इतना जान लीजिए कि मज़हब-ए-इस्लाम के फैलाव में जो कार्य अच्छे-अच्छे पीर-मुर्शिद, सूफ़ी-औलिया, बादशाह-सुल्तान, ख़लीफ़ा-निज़ाम, मुजाहिदीन-ग़ाज़ी (काफ़िरों के सर काटने वाले) और यहां तक कि इस्लाम के पैग़ंबर जैसे लोग तक नहीं कर पाए, वह कार्य इस इस्लामी टूल ‘अल-तक़िया’ ने किया है।

अब आते हैं पिछली बात पर कि अगर यह मौलाना हमारे सामने इस बयान को देता तो इसके इस बयान को सुनने के बाद उस पर हमारा क्या रिएक्शन होता? ज़ाहिर सी बात है कि अव्वल तो हमारे ऊपर ऐसे शातिर मौलानाओं के इन बयानों का कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता क्योंकि हम जानते हैं कि हिंदुओं को नपुंसक बनाने के लिए दिए जाने वाले इन धूर्तों के ऐसे फ़रेबी बयान ‘अल-तक़िया’ नामक इस्लामी रसूलास्त्र की ही कोरी नुमाइश होते हैं मगर उसके बाद भी अगर इस मौलाना ने हमारे सामने अपना यह बयान दिया होता तो हम इसके इस बयान के जवाब में इससे केवल एक ही सवाल करते कि मौलाना साहब, जब आपने यह तस्लीम कर ही लिया है कि श्री राम आपके पूर्वज हैं तो फिर अब देर किस बात की है, आइए और अपनी घर वापसी कर लीजिए!

हमारे इस सवाल के बाद इस मौलाना का क्या रिएक्शन होता, हमें नहीं लगता कि आपको यह बताने की आवश्यकता है। चालबाज़ियों भरे ऐसे बयानों को देने वाले इस्लामी कालनेमियों को काबू में करने के लिए हिंदुओं के पास सिर्फ़ ये ही जबाबी सवाल हैं जिनके भीतर इस उच्चतम स्तर के अल-तक़िया नामक इस्लामी रसूलास्त्र की रीढ़ तोड़ने की ताक़त है। बाक़ी हर बात हार का साधन है!

शलोॐ…!