मतांतरण (धर्मांतरण) जिहाद: ग़ज़वा-ए-हिंद को लागू करने में अव्वल जिहाद…

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ग़ज़वा-ए-हिंद को लागू करने के तरीक़ों में सबसे अव्वल तरह का जिहाद है मतांतरण अर्थात धर्मांतरण जिहाद। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी ग़ैर-इस्लामी मुल्क में तेज़ी से होने वाली मतांतरण प्रक्रिया उस मुल्क के अंदर तेज़ी के साथ इस्लामी आबादी में इज़ाफ़ा करती जो कि उस मुल्क को जल्द ही एक इस्लामी मुल्क बनाने की दिशा में बेहद अहम क़दम साबित होता है। अतः इस्लामी संगठनों के द्वारा मज़हब-ए-इस्लाम को तेज़ी के साथ फैलाने के लिए व्यापक स्तर पर मतांतरण जिहाद की प्रक्रिया का क्रियान्वयन किया जाता है।

मतांतरण जिहाद के द्वारा अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए येन-केन-प्रकारेण जैसे कि इस्लाम की अल-तक़िया नीति के द्वारा काफ़िरीन का मतांतरण करवाया जाता है। काफ़िर समुदाय के पिछड़े एवं वंचित वर्ग के लोगों को तोड़-मरोड़ कर पुराना इतिहास पढ़ाया जाता है और उसके बाद उन्हें काफ़िर-समुदाय की मुख्यधारा से पहले तो विमुख कर दिया जाता है फिर उसके बाद उन्हें धीरे-धीरे मज़हब-ए-इस्लाम के क़रीब लाकर मतांतरण की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। ग़रीब और ज़रूरतमंद लोग धन एवं अच्छे जीवन को जीने की लालसा में इस्लामी जिहादियों के लालच में फंस जाते हैं। कई बार कमज़ोर और मजबूर लोगों को डरा-धमका कर भी उन्हें मतांतरित करवाया जाता है। इस कार्य में संलिप्त हर इस्लामी जिहादी अपने-अपने स्तर पर कार्य करता है और धर्मांतरित किए गए लोगों की कम-से-कम अगली पीढ़ी तक हर-संभव मदद करता है।

पढ़े-लिखे और और उच्च वर्ग के सेकुलर टाइप के काफ़िर लोगों का मतांतरण करवाने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार से लालच दिए जाते हैं। जैसे कि किसी कंपनी अथवा व्यवसाय में कार्यरत ऊंचे ओहदे वाला नियोक्ता अपने यहां पर कार्य करने वाले काफ़िरीन को मज़हब-ए-इस्लाम क़ुबूल कर लेने पर अच्छा पद और तनख़्वाह ऑफ़र करते हैं जिसके लालच में उस संस्थान में काम करने वाले काफ़िरीन लालचवश मज़हब-ए-इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं। इस कार्य के लिए इस्लामी संगठनों को भारत एवं इस्लामी मुल्कों से भारी मात्रा में धन उपलब्ध करवाया जाता है। ये इस्लामी मुल्क मतांतरित लोगों को अपने यहां अच्छी तनख़्वाह पर नौकरियां भी उपलब्ध करवाया करते हैं।

दिल्ली के ओखला स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के पीछे सराय ज़ुलैना, जामिया हमदर्द के पास तुग़लकाबाद, अलीगढ़ के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पास अमीर निशा व सर सैयद नगर, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय एवं मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पास के इलाक़े जैसी हाई प्रोफ़ाइल इस्लामी बस्तियों में खाड़ी देशों में जॉब दिलवाने के लिए भारी मात्रा में इस्लामी परामर्श केंद्र (Job Consultancies) स्थापित की गई हैं। लखनऊ के इंटीगरल विश्वविद्यालय एवं फ़रीदाबाद के अल-फ़लाह विश्वविद्यालय जैसे निजी इस्लामी विश्वविद्यालय भी इस तरह के कार्यों में अंदर तक संलिप्त हैं। आप लोगों को यह जानकर बहुत ही आश्चर्य होगा कि यह परामर्श केंद्र मुस्लिमों की अपेक्षा हिंदुओं को अधिक मात्रा में खाड़ी देशों में जॉब दिलवाने का कार्य करते हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण हिंदुओं के एक बड़े हिस्से को इस्लामी माहौल के अनुसार ढालना और उनके माध्यम से शेष हिंदुओं के बीच में अरबी-इस्लामी सभ्यता की शान-ओ-शौकत को प्रचारित करवाकर एक रूप से ‘प्रचार जिहाद’ को अंजाम देना रहता है। भारत से खाड़ी देशों में नौकरी करने जाने वाले हिंदुओं में से लगभग 95% हिंदुओं का इस्लाम के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है। इनमें से आधे से अधिक हिंदू खाड़ी देशों में नौकरी करने के दौरान ही अपना मतांतरण करके इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं एवं इसके अलावा इस्लाम क़ुबूल न करने वाले हिंदुओं के हृदय में भी घोर सेकुलरिज़्म का समंदर लहरें मारने लगता है जो कि उनकी अगली पीढ़ी को मतांतरित करने का कार्य करता है। इसके अलावा ये परामर्श केंद्र तमाम इस्लामी विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में अंजाम दिए गए लव-जिहाद के सफल उम्मीदवारों को भी इस्लामी मुल्कों में नौकरी दिलवाने अथवा भारत के ही किसी मुस्लिम बहुल इलाक़े में व्यवस्थित करवाने का प्रयास करते हैं।

देश के अंदर मतांतरण के कार्यों को अंजाम देने के लिए बेहद संगठित तौर पर कार्य करने वाला ये इस्लामी गैंग इस्लामी मुआशरे के हर वर्ग से सम्बद्ध होता है। इसमें विभिन्न इस्लामी संस्थान, पेशेवर, शिक्षक, राजनेता, उद्योगपति, व्यवसायी एवं सभी प्रकार के सरकारी-ग़ैर सरकारी लोग केवल और केवल अपने मज़हबी फराइज़ अर्थात जिहाद-उल-फ़ीस-बि-लिल्लाह (अल्लाह की राह में जिहाद) को पूर्ण करने के लिए सम्मिलित होते हैं। हर मुस्लिम इस गैंग का घोषित अथवा अघोषित तौर पर हिस्सा होता है और मौक़ा मिलने पर वह इस मतांतरण जिहाद के मुक़द्दस कार्य में अपनी आहुति प्रदान कर अल्लाह के फ़रमाबरदार बंदों में शुमार होने का ख़्वाब देखता है। देश-विदेश में उपस्थित विभिन्न इस्लामी शक्तियां इस गैंग को वित्त-पोषित करके इसे खाद-पानी देती हैं जिसके बल पर ये गैंग दिन-दूनी, रात चौगुनी गति से अपने मिशन में कामयाब होता चला जाता है। इस्लामी मुआशरे के बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक इस्लाम की दावत (निमंत्रण) देने वाले इन लोगों को ‘दाई-ए-इस्लाम’ की उपाधि से विभूषित करते हैं और इनके कार्य को नबी अथवा पैग़ंबर का कार्य समझकर उन्हें अपने सर-आंखों पर बैठाते हैं।

शलोॐ…!