लव-जिहाद: समस्या का मूल कारण और मात्र 6 बिंदुओं में संपूर्ण निवारण…

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आज हमें अपने एक परिचित मित्र से यह सूचना प्राप्त हुई कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले एक पहाड़ी हिंदू परिवार की लड़की पिछले साल लव-जिहाद का शिकार हो गई। दरअसल दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक ज़िले में उत्तराखंड का यह सेकुलर हिंदू परिवार बेहद अमन-पसंद माने जाने वाले ईमानवाले लोगों के बीच में रहा करता था। अतः वहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब की बेहद सेकुलर लहरों में पली-बढ़ी इस परिवार की एक हिंदू लड़की ने अप्रैल 2020 के महीने में हिंदू-मोमिन भाई-चारे की रस्सी को मज़बूती प्रदान करते हुए अपने घर से भागकर एक ईमानवाले को अपना शौहर तस्लीम कर लिया। घर वालों को जब तक इस बात की जानकारी होती तब तक ये पहाड़ी मोहतरमा क़लमा-ए-तौहीद यानी कि ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मद उर रसूल अल्लाह अर्थात अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मोहम्मद उसके आखिरी रसूल हैं- पढ़कर एक जन्नती मोमिना बन चुकी थीं और अपने ईमानवाले शौहर से अपना निकाह भी मुक़म्मल करवा चुकी थीं।

ख़ैर, घर वालों के पास अब कुछ विशेष करने को शेष बचा नहीं था और मोहतरमा ने जन्म लेकर मां-बाप के ऊपर जो एहसान किया था, गंगा-जमुनी तहज़ीब में लिपटा हिंदुस्तान का धर्मनिरपेक्ष संविधान उन्हें उससे मुक्ति भी प्रदान करवा चुका था। हालांकि मोहतरमा के बेचारे मां-बाप ने एक लंबे समय तक अपनी बेटी को दोबारा से प्राप्त करने के लिए काफ़ी हाथ-पैर मारे परंतु उनके हाथ में हवा में घुली हुई स्याह बदकिस्मती के सिवा और कुछ हाथ नहीं आया।

3 जनवरी, सन 2021 को जब अचानक उस अभागी मां के फ़ोन की घंटी बोली और लगभग 9 महीने के अंतराल के बाद उसने फ़ोन पर अपनी बेटी की सिसकती आवाज़ को सुना तो पल भर में ही उस मां का कलेजा फटकर चाक हो गया। मालूम हुआ कि मोहतरमा ने हवस में आग में अंधी होकर अपना धर्म-परिवर्तन करते हुए जिस ईमानवाले शौहर के साथ अपना निकाह मुक़म्मल करवाया था, आजकल उनका वह उन्हें सुबह-शाम एकदम आसमानी तरीक़े से सुन्नती इलाज मुहैया करवा रहा है। इसके अलावा मोहतरमा ने यह भी बताया कि उनको इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनका ईमानवाला शौहर पहले से ही शादीशुदा और कई बच्चों का बाप भी था। और तो और उसके घर में ये मोहतरमा उसकी एक रखैल अर्थात यौन-दासी बनकर रह रही थीं। मोहतरमा ने आगे बताया कि अगर ग़लती से मोहतरमा से ज़रा सी भी ग़लती हो जाती है तो उनका ईमानवाला शौहर जानवरों से भी बदतर तरीक़े से उन्हें ऐसी हाहाकारी सुन्नती मार देता है कि मोहतरमा की रूह तक कांप जाती है।

मात्र 9 महीने पहले ‘मेरा अब्दुल वैसा नहीं है…’ कहने वाली मोहतरमा, उपरोक्त बातें बताते-बताते अचानक से एक लौंडी (स्लेव / दासी) की तरह रोने-गिड़गिड़ाने लगीं कि मम्मी हमसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है लेकिन अब कैसे भी करके हमको यहां से निकाल लो वरना ये राक्षस लोग किसी दिन हमको मार डालेंगे। इतना कहने के बाद मोहतरमा फ़ोन पर ही रोने-पीटने लग गईं लेकिन तभी अचानक से एक चटाक की आवाज़ आई और उनके फ़ोन का स्विच ऑफ़ हो गया।

फ़िलहाल, तब से मोहतरमा का फ़ोन बंद है और उनकी लोकेशन का भी पता नहीं चल रहा है। इसके अतिरिक्त यह बात भी सर्वविदित है कि मोहतरमा से जब तक संपर्क नहीं होता है, तब तक उनको आसमानी हलाला-गृह से निकालने के सभी प्रयास व्यर्थ ही सिद्ध होंगे। हालांकि अपने निजी अनुभवों को देखते हुए हम इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि ऐसी धिम्मी हिंदू ख़ातूनों के साथ भलाई करने में, सिवाय रुसवाई के और कुछ भी हाथ नहीं आता है फिर भी हमारी टीम इज़रायली एक बार फिर से अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए उन्हें बचाने का प्रयास कर रही है। एक ओर जहां राजेश, सुरेश अथवा महेश के साथ विवाह होने की स्थिति में ऐसी मोहतरमाओं से उनकी सास, ननद अथवा ससुराल पक्ष का कोई व्यक्ति यदि ऊंची आवाज़ में बोल भी देता है तो ये मोहतरमाएं दहेज़ अधिनियम एवं घरेलू-प्रताड़ना जैसे विभिन्न दानवीय क़ानूनों की आड़ लेकर अपने पूरे ससुराल-पक्ष का जीवन नारकीय बनाकर रख देने में पल भर की देर भी नहीं लगाती हैं तो वहीं दूसरी ओर जब तथाकथित आधुनिकता एवं नारी-सशक्तिकरण का झंडा बुलंद करने के उपरांत जब ये ‘मॉडर्न-मोहतरमाएं’ ईमानवाले लव-जिहादियों की चौखट पर उनकी रखैल बनकर अपनी एड़ियां रगड़ते हुए साल में जब चार बार हलालाख़ाने की मेहमान बनती हैं, अमूमन तब कहीं जाकर इनके नालीवाद का कीड़ा, इनकी सेकुलरी-गाथाओं का ऐतिहासिक गवाह बनता है।

मॉरल ऑफ़ द एबव स्टोरी:

उपरोक्त वर्णित लव-जिहाद सहित अनेक समस्याओं से बचने के लिए सलाह दी जाती है कि-

1. आप अपने घर के बच्चों पर अपनी तेज़ नज़र रखें। इसके अलावा अपने सामजिक दायरे में किसी भी ईमानवाले को दाख़िल होने की इजाज़त न दें। ईमानवाले लोग जहां पर भी कुफ़्र अथवा माल-ए-ग़नीमत देखते हैं, वहां पर वे जब तक जिहाद को अंजाम न दे लें, उनकी नमाज़ें क़ुबूल नहीं होतीं। अतः प्रत्येक स्थिति में ईमानवालों से सामाजिक दूरी बनाकर रखें। घर के अंदर उन्हें बुलाने-बैठाने के बारे में तो स्वप्न में भी न सोचें।

2. अपने सोशल मीडिया सर्किल में कभी-भी ईमानवालों को शामिल न करें। दरअसल आपकी मित्रता-सूची में मौजूद वे ईमानवाले लोग, जिन्हें आप अपना मित्र मानकर पोषित करते हैं, आपको पता भी नहीं चलता है और वो आपकी मित्रता-सूची में शामिल महिला संबंधियों एवं परिचितों के ऊपर अपनी गंदी दृष्टि डालकर उनको अपने जाल में फांस लिया करते हैं। इसके अलावा आपकी मित्रता-सूची में निष्क्रिय रूप में पड़े रहकर ये ईमानवाले लोग, आपकी एवं आपके अन्य मित्रों की गतिविधियों के ऊपर निगाह रखते हैं और राष्ट्रीय, सामजिक अथवा अन्य किसी मुद्दे पर कोई पोस्ट अथवा कमेंट देखते ही ख़ामोशी के साथ संबंधित व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने अथवा पहुंचवाने का हरसंभव प्रयास करते हैं।

3. आपके लिए यहां पर यह भी जानना आवश्यक है कि दरअसल यह ‘सहेली’ नामक जीव पहले से ही ईमानवालों के संपर्क में रहा करता है। कई बार तो इस जीव को ईमानवालों के द्वारा ही अपने ‘शिकार’ के साथ प्लांट किया जाता है जिसके माध्यम से वे अपने ‘शिकार’ को उसके घरों से बाहर निकलवाने का कार्य किया करते हैं। ईमानवालों के ‘शिकार’ के घरवाले यही सोचते रह जाते हैं कि उनकी बेटी तो अपनी सहेली के साथ बाहर जा रही है, अतः चिंता की कोई बात नहीं है लेकिन उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता है कि घर से जाने के बाद उनकी बेटी और उसकी सहेली दोनों अपने-अपने लव-जिहादियों के साथ अलग-अलग मोटरसाइकिलों अथवा कारों पर बैठकर डेटिंग अथवा हमबिस्तरी के लिए जा रही हैं।

4. उपरोक्त बातों के अलावा आपके लिए हमारी एक और सलाह है कि आप भले ही अपनी एक नज़र से अपने बच्चों के ऊपर विश्वास करते रहें परंतु अपनी दूसरी नज़र से हमेशा उनके कार्यों एवं उनकी आवाजाही का अवलोकन करते रहें। यहां पर पुनः हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि आप केवल अपने घर की लड़कियों के साथ ही नहीं अपितु आप अपने घर के लड़कों के साथ भी ऐसा करें क्योंकि चाहे लड़का हो अथवा लड़की- जवानी अथवा नादानी के ख़ुमार में कोई भी व्यक्ति, कभी भी भटक सकता है। इससे बचने के लिए आप यह क़दम उठा सकते हैं कि जब तक बहुत अधिक आवश्यकता न हो, बच्चों को अलग से फ़ोन प्रदान न करें।

5. आजकल नशीले पदार्थों के सेवन के मामलों में ऐसे ही घरों के बच्चे अधिक संलिप्त पाए जा रहे हैं जिनके घर वाले उनके ऊपर ध्यान नहीं देते। अतः आप प्रत्येक स्थिति में अपने बच्चों के ऊपर सघनता से निगाह रखें। याद रखें कि जानवरों की तरह केवल पैदा करके बच्चों को बड़ा कर देने से ही आपके कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती वरन बच्चों को पैदा करने के उपरांत उन्हें अपने धार्मिक, सामाजिक, नैतिक, कूटनीतिक एवं राष्ट्रीय हितों के प्रति प्रतिबद्ध बनाना ही सच्चे अर्थों में मातृत्व एवं पितृत्व की गरिमा को अलंकृत करने का कार्य करता है।

6. अंत में एक छोटी सी परंतु महत्वपूर्ण बात और कि यदि आपके घर में भूखों मरने जैसी नौबत नहीं है और आप अपने समाज में थोड़ी-बहुत भी प्रतिष्ठा रखते हैं तो आप अपने बच्चों का समय से विवाह अवश्य कर दें क्योंकि मानव-शरीर को रोटी-पानी के अलावा अन्य चीज़ों की भी प्राकृतिक रूप से आवश्यकता पड़ती है। नैतिक रूप से ये चीज़ें प्राप्त न होने की स्थिति में नौजवान लड़के और लड़कियां तो छोड़िए, बड़े-बूढ़े लोग भी अक्सर बहक जाया करते हैं।

बाबा इज़रायली द्वारा उल्लिखित उपरोक्त सलाहें प्रथम दृष्टया किसी भी व्यक्ति को स्त्री-विरोधी, नौजवान-विरोधी अथवा किसी अन्य प्रकार के दुराग्रह से ग्रसित प्रतीत हो सकती हैं लेकिन उपरोक्त सलाहों का पालन न करने की स्थिति में उत्पन्न होने वाले भयावह परिणामों के ऊपर यदि आप गंभीरता के साथ विचार करेंगे तो धीरे-धीरे आपको हमारी उपरोक्त सलाहें शत-प्रतिशत उचित प्रतीत लगने लगेंगी। हमने एक बार नहीं बल्कि सैकड़ों बार उपरोक्त समस्याओं और उनसे संबंधित चीज़ों पर आधारित विभिन्न घटनाक्रमों को अपनी आंखों से प्रत्यक्ष क्रियान्वित होते हुए देखा है, अतः हमें इस बात को कहने में किंचित-मात्र भी संदेह नहीं है कि हमारी उपरोक्त सलाहों का पालन के पश्चात आपको अवश्य ही उनके सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।

शलोॐ…!