इब्न-ए-इसहाक यहूदी नगर ख़ैबर की फ़तह का वर्णन करते हुए लिखता है कि मोहम्मद ने बग़ैर कोई चेतावनी दिए, इस क़िलाबंद नगर पर हमला किया और निहत्थे नगरवासियों को उस समय चुन-चुन कर मार डाला, जब वे जान बचाकर भाग रहे थे। यहां से बंदी बनाए गए लोगों में एक क़िनाना नामक व्यक्ति भी था। क़िनाना अल-रबी के पास बनू नज़ीर के ख़ज़ाने की चाभी थी। उसे रसूल के पास लाया गया और उससे ख़ज़ाने की चाभी मांगी गई। क़िनाना ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि चाभी कहां है? एक यहूदी रसूल के पास आया (तबरी बताता है कि इस यहूदी को पकड़कर लाया गया था) और बोला कि वह रोज़ सुबह क़िनाना को एक खंडहर में जाते हुए देखता था।
मोहम्मद ने क़िनाना से कहा कि तुम्हें पता है, यदि हमें इस बात का पता चल गया कि ख़ज़ाने की चाबी तुम्हारे पास है तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। इस पर क़िनाना ने कहा कि हां, मुझे पता है। रसूल ने अपने आदमियों को उस खंडहर की खुदाई करने का हुक्म दिया। वहां थोड़ा-सा ख़ज़ाना मिला। मोहम्मद ने पूछा कि बाक़ी ख़ज़ाना कहां है तो क़िनाना ने बताने से इंकार कर दिया। इस पर रसूल ने अल-ज़ुबैर-अल-अवाम को आदेश दिया कि इसे ले जाओ और तब तक इसे यातना दो कि जब तक यह ख़ज़ाने का पता न बता दे। अल-ज़ुबैर ने आग में एक पत्थर दहकाया और उसे क़िनाना के सीने पर रख दिया। क़िनाना चीखता रहा लेकिन अल-ज़ुबैर उस पत्थर को तब तक उसके सीने पर रखे रहा, जब तक कि वह मरणासन्न नहीं हो गया। फिर रसूल ने क़िनाना को मुहम्मद अबी मुसैलमा को सौंप दिया और मुसैलमा ने अपने भाई महमूद का बदला लेने के लिए तलवार से क़िनाना की गरदन उड़ा दी।
जिस दिन मोहम्मद ने क़िनाना को बेरहमी के साथ क़त्ल करवाया, उसी दिन वह उसकी 17 साल की बीवी साफ़िया का बलात्कार करने के लिए उसे उठाकर अपने तम्बू में ले गया। इस घटना के दो साल पहले ही मोहम्मद ने यहूदी जन-जाति बनू कुरैज़ा के अन्य मर्दों के साथ ही साफ़िया के पिता का भी क़त्ल कर दिया था। इब्न-ए-इसहाक लिखता है कि रसूल यहूदियों के क़िलों पर एक के बाद एक कब्ज़ा करते जा रहे थे और वहां की औरतों और बच्चों को क़ैद करते जा रहे थे। ऐसे ही क़ैदियों में ख़ैबर के मुखिया क़िनाना की बीवी साफ़िया और उसकी दो चचेरी बहनें भी क़ैद थीं। रसूल ने बलात्कार करने के लिए साफ़िया को अपने हिस्से में चुन लिया। दूसरी क़ैदी औरतों को बाक़ी मोमिनों में बांट दिया। बिलाल साफ़िया को रसूल के पास लाया था और ये लोग रास्ते में यहूदी मर्दों की लाशों पर चढ़कर आए थे। जब मोमिन साफ़िया को पकड़कर रसूल के पास ला रहे थे तो उसकी सहेलियां उसके लिए चीख रही थीं और रेत उठा-उठा कर उन पर फेंक रही थीं। जब रसूल ने यह देखा तो उसने कहा कि इन चुड़ैलों को यहां से हटाओ पर रसूल ने साफ़िया को वहीं खड़ी रहने का फ़रमान सुनाया और उसके ऊपर एक लबादा फेंक दिया ताकि दूसरे मोमिन यह जान सकें कि उसे रसूल ने अपने लिए चुन लिया है। रसूल ने साफ़िया को दिखाने के लिए बिलाल को झिड़कते हुए कहा कि क्या तुम्हारे भीतर ज़रा भी रहम नहीं है कि इन औरतों को उनके शौहरों की लाशों के ऊपर से लेकर आ रहे हो? मौलाना बुख़ारी ने भी अपनी हदीस की किताब ‘सहीह-अल-बुख़ारी’ की भी कुछ हदीसों में मोहम्मद की ख़ैबर पर फ़तह और मोहम्मद द्वारा साफ़िया के निर्दयतापूर्वक बलात्कार को जायज़ ठहराते हुए कई हदीसों को लिखा है।
अनस ने कहा कि जब अल्लाह के रसूल ने ख़ैबर पर हमला किया तो हमने तड़के फज्र की नमाज़ पढ़ी। रसूल घोड़े पर सवार हुए और अबू-तल्हा भी। हम अबू-तल्हा के पीछे घोड़े पर थे। रसूल हवा की तरह शहर की गलियों में आगे बढ़ रहे थे और मेरा घुटना रसूल की जांघों से रगड़ रहा था। उन्होंने अपनी जांघें उघाड़ीं तो उसकी सफेदी दिखी। जब रसूल ने शहर में प्रवेश किया तो उन्होंने कहा, ‘अल्लाह-ओ-अकबर’! हमने ख़ैबर को मिटा दिया। जैसे ही हम उन लोगों की बस्ती के निकट पहुंचेगे, जिन पर हमला करना है तो उनके लिए सुबह क़यामत लेकर आएगी। रसूल ने यह बात तीन बार कही। सुबह हुई और जब उस शहर के लोग अपने रोज़मर्रा के काम के लिए निकले तो वे डर से चीखने लग गए कि मोहम्मद आ गया, मोहम्मद आ गया (हमारे कुछ साथियों ने कहा, ‘अपनी फौज के साथ’ )।
इतने में दिह्या आया और बोला कि हमने ख़ैबर को जीत लिया है और वहां रहने वाले लोगों को क़ैद कर लिया है। इसके अलावा हमने ख़ूब माल-ए-ग़नीमत (लूट का माल) इकट्ठा किया है। ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे एक ग़ुलाम लड़की दो। रसूल ने कहा कि जाओ और क़ैदियों में से किसी भी लड़की को ले लो। उसने साफ़िया बिंते (पुत्री) हुयई को ले लिया। तभी एक व्यक्ति रसूल के पास आया और बोला ऐ अल्लाह के रसूल! आपने दिह्या को साफ़िया दे दी! अरे, वह तो यहूदी कुरैज़ा अन-नज़ीर क़बीले के मुखिया की मुख्य सेविका है! वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके पास ही शोभा देती है। यह सुनने के बाद फिर रसूल ने कहा कि दिह्या को साफ़िया सहित ले लाओ। दिह्या और साफ़िया को मोहम्मद के सामने पेश किया गया। जब मोहम्मद ने साफ़िया को देखा तो उसके अंदर छुपा हुआ हिंसक बलात्कारी भेड़िया जाग गया और उसने दिह्या से कहा कि साफ़िया को छोड़ दो और क़ैदियों में से किसी और औरत को ले लो। अनस ने आगे कहा कि बाद में रसूल ने साफ़िया को क़ैद से आज़ाद कर दिया और उससे शादी कर ली। साबित ने अनस से पूछा कि ओ अबू हमज़ा! रसूल ने साफ़िया को मेहर (दहेज) में क्या दिया? उसने उत्तर दिया कि साफ़िया ख़ुद मेहर थी क्योंकि रसूल ने उसे आज़ाद करके फिर उसके साथ निकाह किया। अनस ने फिर कहा कि रास्ते में उम्म-ए-सलैम ने उसे दुल्हन के रूप में तैयार किया और रात में वह रसूल के पास दुल्हन की तरह भेजी गई (जिसके बाद रसूल ने उसके साथ निर्मम तरीक़े से बलात्कार किया)।
मोहम्मद के साथी अनस ने एक और हदीस में इस बात का उल्लेख किया है कि मदीना की आबो-हवा रास न आने के कारण अरब के एक क़बीले के आठ आदमियों का एक समूह मोहम्मद के पास आया। तब मोहम्मद ने ऊंट के पेशाब को दवा के रूप में बताया और उन्हें शहर के बाहर ऊंटों की रखवाली कर रहे नौकर से मिलने भेज दिया। इन आदमियों ने उस नौकर का क़त्ल कर दिया और ऊंटों को हांक ले गए। जब मोहम्मद को इस बात का पता चला तो उसने अपने आदमियों को उन लोगों के पीछे लगा दिया। जल्द ही वे लोग पकड़े गए और मोहम्मद के सामने पेश किए गए। मोहम्मद ने उनके हाथ-पांव काटने और उनकी आंखों में गर्म सलाखें डालने का हुक्म दिया। उसके बाद मोहम्मद के चेलों ने वैसा ही किया और उन दोनों को उस पठारी ज़मीन पर तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया। अनस ने कहा कि वे दोनों लोग पानी-पानी कहकर बेहोश हो जाते थे लेकिन उन्हें किसी ने भी एक बूंद तक पानी नहीं दिया और अंततः वे लोग प्यासे ही तड़पकर मर गए।
माना कि उन अरबियों ने चोरी और हत्या की वारदात को अंजाम दिया था और इसके लिए उन्हें सज़ा-ए-मौत भी दी जानी चाहिए थी मगर उन्हें मौत देते वक़्त इतनी भयानक पीड़ा क्यों दी गई? क्या मोहम्मद भी ऐसा ही अपराध नहीं कर रहा था? मोहम्मद को ये ऊंट कहां से मिले थे? क्या ये ऊंट चोरी अथवा डकैती अथवा लूट के नहीं थे? क्या मोहम्मद ने हमले करके मासूम लोगों का क़त्ल नहीं किया था? दरअसल मुसलमानों का यह दोहरा चरित्र इस्लाम की शुरुआत से ही है। मुसलमानों की सोच में नियम-क़ायदे या न्यायसंगतता है ही नहीं। ग़ैर-मुस्लिम देशों में मुसलमान हमेशा विशेषाधिकार की मांग करते हैं जबकि जहां वे बहुसंख्यक होते हैं वहां ग़ैर-मुस्लिमों को न्यूनतम मानवाधिकार भी प्रदान करने से इंकार करते हैं। उनको लगता है कि किसी भी प्रकार के अधिकार किसी भी ग़ैर-मुस्लिम के पास न होकर केवल और केवल मुसलमानों के पास ही होने चाहिए।
मोहम्मद ने क़िनाना से कहा कि तुम्हें पता है, यदि हमें इस बात का पता चल गया कि ख़ज़ाने की चाबी तुम्हारे पास है तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। इस पर क़िनाना ने कहा कि हां, मुझे पता है। रसूल ने अपने आदमियों को उस खंडहर की खुदाई करने का हुक्म दिया। वहां थोड़ा-सा ख़ज़ाना मिला। मोहम्मद ने पूछा कि बाक़ी ख़ज़ाना कहां है तो क़िनाना ने बताने से इंकार कर दिया। इस पर रसूल ने अल-ज़ुबैर-अल-अवाम को आदेश दिया कि इसे ले जाओ और तब तक इसे यातना दो कि जब तक यह ख़ज़ाने का पता न बता दे। अल-ज़ुबैर ने आग में एक पत्थर दहकाया और उसे क़िनाना के सीने पर रख दिया। क़िनाना चीखता रहा लेकिन अल-ज़ुबैर उस पत्थर को तब तक उसके सीने पर रखे रहा, जब तक कि वह मरणासन्न नहीं हो गया। फिर रसूल ने क़िनाना को मुहम्मद अबी मुसैलमा को सौंप दिया और मुसैलमा ने अपने भाई महमूद का बदला लेने के लिए तलवार से क़िनाना की गरदन उड़ा दी।
जिस दिन मोहम्मद ने क़िनाना को बेरहमी के साथ क़त्ल करवाया, उसी दिन वह उसकी 17 साल की बीवी साफ़िया का बलात्कार करने के लिए उसे उठाकर अपने तम्बू में ले गया। इस घटना के दो साल पहले ही मोहम्मद ने यहूदी जन-जाति बनू कुरैज़ा के अन्य मर्दों के साथ ही साफ़िया के पिता का भी क़त्ल कर दिया था। इब्न-ए-इसहाक लिखता है कि रसूल यहूदियों के क़िलों पर एक के बाद एक कब्ज़ा करते जा रहे थे और वहां की औरतों और बच्चों को क़ैद करते जा रहे थे। ऐसे ही क़ैदियों में ख़ैबर के मुखिया क़िनाना की बीवी साफ़िया और उसकी दो चचेरी बहनें भी क़ैद थीं। रसूल ने बलात्कार करने के लिए साफ़िया को अपने हिस्से में चुन लिया। दूसरी क़ैदी औरतों को बाक़ी मोमिनों में बांट दिया। बिलाल साफ़िया को रसूल के पास लाया था और ये लोग रास्ते में यहूदी मर्दों की लाशों पर चढ़कर आए थे। जब मोमिन साफ़िया को पकड़कर रसूल के पास ला रहे थे तो उसकी सहेलियां उसके लिए चीख रही थीं और रेत उठा-उठा कर उन पर फेंक रही थीं। जब रसूल ने यह देखा तो उसने कहा कि इन चुड़ैलों को यहां से हटाओ पर रसूल ने साफ़िया को वहीं खड़ी रहने का फ़रमान सुनाया और उसके ऊपर एक लबादा फेंक दिया ताकि दूसरे मोमिन यह जान सकें कि उसे रसूल ने अपने लिए चुन लिया है। रसूल ने साफ़िया को दिखाने के लिए बिलाल को झिड़कते हुए कहा कि क्या तुम्हारे भीतर ज़रा भी रहम नहीं है कि इन औरतों को उनके शौहरों की लाशों के ऊपर से लेकर आ रहे हो? मौलाना बुख़ारी ने भी अपनी हदीस की किताब ‘सहीह-अल-बुख़ारी’ की भी कुछ हदीसों में मोहम्मद की ख़ैबर पर फ़तह और मोहम्मद द्वारा साफ़िया के निर्दयतापूर्वक बलात्कार को जायज़ ठहराते हुए कई हदीसों को लिखा है।
अनस ने कहा कि जब अल्लाह के रसूल ने ख़ैबर पर हमला किया तो हमने तड़के फज्र की नमाज़ पढ़ी। रसूल घोड़े पर सवार हुए और अबू-तल्हा भी। हम अबू-तल्हा के पीछे घोड़े पर थे। रसूल हवा की तरह शहर की गलियों में आगे बढ़ रहे थे और मेरा घुटना रसूल की जांघों से रगड़ रहा था। उन्होंने अपनी जांघें उघाड़ीं तो उसकी सफेदी दिखी। जब रसूल ने शहर में प्रवेश किया तो उन्होंने कहा, ‘अल्लाह-ओ-अकबर’! हमने ख़ैबर को मिटा दिया। जैसे ही हम उन लोगों की बस्ती के निकट पहुंचेगे, जिन पर हमला करना है तो उनके लिए सुबह क़यामत लेकर आएगी। रसूल ने यह बात तीन बार कही। सुबह हुई और जब उस शहर के लोग अपने रोज़मर्रा के काम के लिए निकले तो वे डर से चीखने लग गए कि मोहम्मद आ गया, मोहम्मद आ गया (हमारे कुछ साथियों ने कहा, ‘अपनी फौज के साथ’ )।
इतने में दिह्या आया और बोला कि हमने ख़ैबर को जीत लिया है और वहां रहने वाले लोगों को क़ैद कर लिया है। इसके अलावा हमने ख़ूब माल-ए-ग़नीमत (लूट का माल) इकट्ठा किया है। ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे एक ग़ुलाम लड़की दो। रसूल ने कहा कि जाओ और क़ैदियों में से किसी भी लड़की को ले लो। उसने साफ़िया बिंते (पुत्री) हुयई को ले लिया। तभी एक व्यक्ति रसूल के पास आया और बोला ऐ अल्लाह के रसूल! आपने दिह्या को साफ़िया दे दी! अरे, वह तो यहूदी कुरैज़ा अन-नज़ीर क़बीले के मुखिया की मुख्य सेविका है! वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके पास ही शोभा देती है। यह सुनने के बाद फिर रसूल ने कहा कि दिह्या को साफ़िया सहित ले लाओ। दिह्या और साफ़िया को मोहम्मद के सामने पेश किया गया। जब मोहम्मद ने साफ़िया को देखा तो उसके अंदर छुपा हुआ हिंसक बलात्कारी भेड़िया जाग गया और उसने दिह्या से कहा कि साफ़िया को छोड़ दो और क़ैदियों में से किसी और औरत को ले लो। अनस ने आगे कहा कि बाद में रसूल ने साफ़िया को क़ैद से आज़ाद कर दिया और उससे शादी कर ली। साबित ने अनस से पूछा कि ओ अबू हमज़ा! रसूल ने साफ़िया को मेहर (दहेज) में क्या दिया? उसने उत्तर दिया कि साफ़िया ख़ुद मेहर थी क्योंकि रसूल ने उसे आज़ाद करके फिर उसके साथ निकाह किया। अनस ने फिर कहा कि रास्ते में उम्म-ए-सलैम ने उसे दुल्हन के रूप में तैयार किया और रात में वह रसूल के पास दुल्हन की तरह भेजी गई (जिसके बाद रसूल ने उसके साथ निर्मम तरीक़े से बलात्कार किया)।
मोहम्मद के साथी अनस ने एक और हदीस में इस बात का उल्लेख किया है कि मदीना की आबो-हवा रास न आने के कारण अरब के एक क़बीले के आठ आदमियों का एक समूह मोहम्मद के पास आया। तब मोहम्मद ने ऊंट के पेशाब को दवा के रूप में बताया और उन्हें शहर के बाहर ऊंटों की रखवाली कर रहे नौकर से मिलने भेज दिया। इन आदमियों ने उस नौकर का क़त्ल कर दिया और ऊंटों को हांक ले गए। जब मोहम्मद को इस बात का पता चला तो उसने अपने आदमियों को उन लोगों के पीछे लगा दिया। जल्द ही वे लोग पकड़े गए और मोहम्मद के सामने पेश किए गए। मोहम्मद ने उनके हाथ-पांव काटने और उनकी आंखों में गर्म सलाखें डालने का हुक्म दिया। उसके बाद मोहम्मद के चेलों ने वैसा ही किया और उन दोनों को उस पठारी ज़मीन पर तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया। अनस ने कहा कि वे दोनों लोग पानी-पानी कहकर बेहोश हो जाते थे लेकिन उन्हें किसी ने भी एक बूंद तक पानी नहीं दिया और अंततः वे लोग प्यासे ही तड़पकर मर गए।
माना कि उन अरबियों ने चोरी और हत्या की वारदात को अंजाम दिया था और इसके लिए उन्हें सज़ा-ए-मौत भी दी जानी चाहिए थी मगर उन्हें मौत देते वक़्त इतनी भयानक पीड़ा क्यों दी गई? क्या मोहम्मद भी ऐसा ही अपराध नहीं कर रहा था? मोहम्मद को ये ऊंट कहां से मिले थे? क्या ये ऊंट चोरी अथवा डकैती अथवा लूट के नहीं थे? क्या मोहम्मद ने हमले करके मासूम लोगों का क़त्ल नहीं किया था? दरअसल मुसलमानों का यह दोहरा चरित्र इस्लाम की शुरुआत से ही है। मुसलमानों की सोच में नियम-क़ायदे या न्यायसंगतता है ही नहीं। ग़ैर-मुस्लिम देशों में मुसलमान हमेशा विशेषाधिकार की मांग करते हैं जबकि जहां वे बहुसंख्यक होते हैं वहां ग़ैर-मुस्लिमों को न्यूनतम मानवाधिकार भी प्रदान करने से इंकार करते हैं। उनको लगता है कि किसी भी प्रकार के अधिकार किसी भी ग़ैर-मुस्लिम के पास न होकर केवल और केवल मुसलमानों के पास ही होने चाहिए।
विशेष: उपरोक्त बौद्धिक अंश ईरान के इस्लामी विद्वान अली सीना द्वारा लिखित पुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद‘ से उद्धृत किए गए हैं। इस पुस्तक में अली सीना मोहम्मद के जीवन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए इस्लाम और उससे जुड़े समस्त पहलुओं का बेजोड़ तरीक़े से ख़ुलासा किया है। इस्लामी कट्टरपंथ एवं इस्लामी आतंकवाद के मूल को जानने की इच्छा रखने वाले लोगों को अली सीना की यह कालजयी कृति अवश्य पढ़नी चाहिए। इस पुस्तक को आप टीम बाबा इज़रायली द्वारा विकसित किए जा रहे ‘ई-पुस्तकालय‘ में जाकर पढ़ सकते हैं। आने वाले समय में आपको हमारे इस ई-पुस्तकालय में हिंदू-चेतनाओं, उससे जुड़ी विषमताओं एवं विभीषिकाओं से संबंधित दुर्लभ हिंदू-साहित्य प्राप्त होगा।
शलोॐ…!