मस्जिद जिहाद: इस्लामी आतंकवादियों को कवर फ़ायर देने वाला एक अजीमुश्शान इस्लामी टूल…

babaisraeli.com20210412-00

मस्जिद जिहाद इस्लामी जिहाद के तमाम आलातरीन जिहादों में एक अफ़ज़ल जिहाद है। यह एक ऐसा जिहाद है कि जिसके माध्यम से आतंकवाद के पनाहगार इस्लामी जिहाद को जारी रखने के लिए अपने मुजाहिदीन को एक बेहद सुरक्षित माध्यम मुहैया करवाते हैं।

आज से लगभग 30 वर्ष पहले कश्मीर में भी ग़ज़वा-ए-काश्मीर को मुक़म्मल करने के लिए इसी मस्जिद जिहाद नामक इस्लामी टूल का इस्तेमाल किया गया था। उसके बाद वहां पर रहने वाले नापाक हिंदुओं को घाटी से खदेड़कर बाहर फेंक दिया गया था। जो जिद्दी हिंदू वहां से नहीं भाग रहे थे, उनकी महिलाओं और लड़कियों के साथ एकदम इस्लामी तरीके से बलात्कार करके एवं पुरुषों की गर्दनें ज़बह करके घाटी में पाक इस्लामी हुक़ूमत क़ायम की गई थी। इसके बाद एकदम से घाटी में ख़ुद-ब-खुद शरिया नाफ़िस हो गया था।

वर्ष 2002 में गुजरात में अंजाम दिए गए गोधरा कांड से पहले भी इसी मस्जिद जिहाद के माध्यम से इस्लामी उलेमा के द्वारा स्थानीय मुजाहिदीन को इकट्ठा किया गया था। इसके बाद उन्हें साबरमती ट्रेन के अंदर यात्रा कर रहे नापाक हिंदू कारसेवकों को जलाने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान किए गए थे। इस मुक़दमे के दौरान न्यायालय ने भी यह माना था कि रेलवे स्टेशन के पास स्थित सिग्नल फालिया एरिया के लोगों को यह अफ़वाह फैलाकर एकत्र किया गया था कि कारसेवक एक मुस्लिम लड़की का अपहरण कर रहे हैं। इसके बाद पास की मस्जिद से लोगों को भड़काने वाले नारे लगाए गए। बाद में एकत्रित भीड़ से ट्रेन रोकने के लिए कहा गया जिसके उपरांत ट्रेन को जलाने का निश्चय किया गया। न्यायालय ने माना कि यह एक सुनियोजित इस्लामी षड्यंत्र था क्योंकि 5 से 6 मिनट के अंदर इस्लामी आतंकवादियों को हथियार सहित एकत्र कर रेलवे स्टेशन और ट्रेन तक लाना बग़ैर किसी पूर्व निर्धारित योजना के संभव नहीं था।

वर्ष 2020 में भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए दंगों में भी इसी मस्जिद जिहाद के माध्यम से इस्लामी मुजाहिदीन को दंगों को अंजाम देने के लिए इस्लामी प्रशिक्षण मुहैया कराया गया था। इसके लिए इस्लामी संस्था पीस फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) के द्वारा मस्जिदों से जुड़े हुए मदरसों को भारी मात्रा में फंडिंग की गई थी। आधिकारिक आंकड़े के अनुसार दिल्ली दंगों को आयोजित करवाने के लिए पीस फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के द्वारा मात्र एक सप्ताह के भीतर 107 करोड़ रुपए की भारी-भरकम धनराशि मदरसा शिक्षा के नाम पर विभिन्न इस्लामी आतंकवादियों के निजी खातों में भेजी गई थी।

वर्ष 2020 में कर्नाटक में एक आशा कार्यकर्ता के ऊपर हुए हमले के पीछे का कारण भी यही मस्जिद जिहाद ही था। कोरोना वायरस का डाटा एकत्र‍ित करने करने गई एक आशा कार्यकर्ता पर हमले के लिए मस्जिद से बक़ायदा अनाउंसमेंट करके उकसाया गया था जिसके बाद स्थानीय आतंकवादियों ने आशा कार्यकर्ता के ऊपर हमला करके उसे काफ़ी नुकसान पहुंचाया था।

अब वर्ष 2021 में बंगाल में इसी मस्जिद जिहाद के द्वारा बिहार पुलिस के अधिकारी अश्विनी कुमार की हत्या की गई है। हत्या की जांच करने वाली जांच टीम को जो सुबूत मिले हैं, उनमें यह बात सामने निकल कर आई है कि अश्विनी कुमार की हत्या करने से पहले स्थानीय मस्जिद से बक़ायदा पहले लाउडस्पीकर के द्वारा अनाउंसमेंट किया गया था। इसके बाद वहां पर उग्र इस्लामी आतंकवादियों की भारी भीड़ जमा हो गई और फिर उन्होंने अश्वनी कुमार को पकड़ लिया व पीट-पीटकर उनकी नृशंस हत्या कर दी।

उपरोक्त घटनाओं के अलावा कश्मीर घाटी में नियमित रूप से मस्जिद जिहाद की अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं जिनमें घाटी में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए इस्लामी आतंकवादी मस्जिदों का इस्तेमाल करते हैं। वह मस्जिद का सहारा लेकर गोलीबारी को अंजाम देते हैं और फिर भाग निकलते हैं। ऐसा कई मौकों पर सामने आ चुका है। इस बारे में बात करते हुए कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने बताया कि इस्लामी आतंकवादियों ने पंपोर, सोपोर और शोपियां में हमलों के लिए बार-बार मस्जिदों का इस्तेमाल किया है। आईजीपी कुमार के मुताबिक, इस्लामी आतंकवादियों ने 19 जून, 2020 को पंपोर में हमलों के लिए मस्जिद की आड़ ली थी। इसी तरह, 1 जुलाई, 2020 को सोपोर और 9 अप्रैल, 2021 को शोपियां में हुए हमले के लिए भी मस्जिद का सहारा लिया गया था।

मौजूदा समय में भारत में कार्यरत ग़ज़वा-ए-हिंद नेटवर्क के आतंकवादियों का अगला टारगेट भारत के दो पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश हैं। सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश राज्य, जिनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा काफ़ी कम है, को इस्लामी जमात क्रमशः वर्ष 2025 से वर्ष 2030 तक इस्लामी भूमि में परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत है। वैश्विक इस्लामी संगठन इन दोनों राज्यों को हासिल करने के लिए किस क़दर बेचैन हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे आने वाले दो से तीन वर्षों के अंदर उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में 200 से 500 बड़ी मस्जिदें, ईदगाहें एवं मदरसे स्थापित करने के लिए युद्ध-स्तर पर प्रयास कर रहे हैं।

यदि उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश के हिंदू समुदाय ने इस्लामी आतंकवादियों के इन मंसूबों पर जल्द पानी नहीं फ़ेरा तो इसके बेहद गंभीर परिणाम सामने आएंगे। मौजूदा परिस्थितियों को देखकर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के सुप्तप्राय हिंदू समुदाय कि कुंभकरणी नींद की बदौलत अगले 1,000 दिनों के पश्चात भारत के इन दो पहाड़ी राज्यों की मिट्टी से वर्ष 1990 के कश्मीर की वही पुरानी आबोहवा सुर्ख़रू होना शुरू हो जाएगी। हालांकि उत्तराखंड की बदरीनाथ विधानसभा सीट से भाजपा विधायक महेंद्र भट्ट द्वारा यह कहा गया था कि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और अब सरकार को देवभूमि में नई मस्जिदों के निर्माण पर रोक लगानी चाहिए परंतु दुर्भाग्यवश भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष खजान दास ने इसे भट्ट की निजी राय बताते हुए कहा था कि उनकी पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा उत्तराखंड की रुद्रपुर सीट से भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के द्वारा भी समय-समय पर उत्तराखंड के इस्लामीकरण पर तीखा आक्रोश व्यक्त किया गया है। राजकुमार ठुकराल के द्वारा इस्लामी आतंकवादियों को देशद्रोही बताए जाने पर उनकी पार्टी के द्वारा उनको कई बार नोटिस भी प्रदान किया गया है। विधायक महेंद्र भट्ट एवं विधायक राजकुमार ठुकराल के अलावा वर्तमान उत्तराखंड सरकार में ऐसे बहुत कम चेहरे रहे हैं जो अपनी पार्टी से अधिक हिंदू-हितों की चिंता करते हुए राज्य में पांव पसारते चले जा रहे इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध स्पष्ट रूप से अपनी बात रखने का साहस भी कर पाते हैं।

विदित हो कि उत्तराखंड के अंदर मस्जिदों का सबसे अधिक निर्माण एवं पहाड़ी जनमानस का इस्लामीकरण वर्तमान भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के शासनकाल के दौरान ही हुआ है। त्रिवेंद्र सिंह रावत का चार वर्ष का निरंकुश शासनकाल, राज्य के अंदर हिंदू-हितों की लगातार अनदेखी करता आ रहा था जिसके उपरांत वर्तमान भाजपा सरकार के प्रति जनता के रोष को समय से भांपते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उनको अपदस्थ कर तीरथ सिंह रावत के रूप में राज्य को एक नया मुख्यमंत्री प्रदान किया है। अब देखना यह है कि तीरथ सिंह रावत बचे हुए एक वर्ष के समयकाल में कैसे अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री के कुकर्मों और पापों की गठरी का बोझ हल्का कर पाते हैं?

शलोॐ…!