भारत का इस्लामी देश बनना, केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए ख़तरा…

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मौजूदा समय में केवल इज़रायल ही नहीं बल्कि भारत जैसे शांतिप्रिय देश भी भयावह इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह केवल उसी इस्लामी विचारधारा का जीवित होना है जो ये मानती है कि यह दुनिया केवल और केवल अल्लाह की है और यहां उसके मानने वालों के सिवा किसी भी अन्य व्यक्ति को जीने का हक़ नहीं है। पिछले 2,000 वर्ष पहले इज़रायल की भूमि से लगभग समाप्त हो चुका यहूदी समुदाय एक बार फिर से यदि अपनी भूमि को प्राप्त करने में सफल रहा है तो इसके पीछे उसके ईश्वर का उसके समुदाय के प्रति किया गया वादा एवं उसकी जीवटता ही मुख्य साधन रहे हैं।

पिछले 2,000 वर्षों के अपने संघर्षों, भटकावों एवं भीषण नरसंहारों के पश्चात इज़रायल के यहूदी समुदाय को तो अपने वास्तविक शत्रुओं की पहचान हो गई परंतु यह बड़ा ही हास्यास्पद एवं दुर्भाग्यपूर्ण विषय है कि भारत के हिंदुओं सहित विश्व के अन्य समुदायों को अभी भी अपने नैसर्गिक शत्रुओं के अंदर भाईचारे की असीम संभावनाएं नज़र आया करती हैं। हालांकि देर से ही सही परंतु अब विश्व के अनेक देशों में धुर दक्षिणपंथी विचारधाराएं बहुत तेज़ी के साथ अपना स्थान बनाती जा रही हैं। इन सभी विचारधाराओं के प्राकट्य के पीछे संबंधित देशों की पूर्ववर्ती अप्रासंगिक उदारवादी एवं सहिष्णुतावादी नीतियों का ही होना है जिनके चलते संबंधित देशों के मूल समुदायों का अस्तित्व गंभीर संकट में पड़ गया है।

आज हम ऐसी ही एक अति-दक्षिणपंथी भारतीय सनातनी विचारधारा ‘बाबा इज़रायली‘ के विषय में बात करेंगे जो न केवल भारत में बल्कि इज़रायल में रहने वाले भारतीय मूल के बेने इज़रायली समुदाय के लाखों व्यक्तियों के मध्य भी तेज़ी के साथ अपना स्थान बनाती जा रही है। बीते कुछ समय के अंदर इज़रायली समुदाय में जिस तेज़ी के साथ ‘बाबा इज़रायली विचारधारा’ की स्वीकार्यता देखी गई है, वह अपने आपमें एक चौंकाने वाली बात अवश्य है। इज़रायल के अंदर सबसे पहले बाबा इज़रायली विचारधारा का असर उस समय देखा गया, जिस समय इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के मध्य ऐतिहासिक द्विपक्षीय समझौता हो रहा था। उस समय बाबा इज़रायली ने इस समझौते के उपरांत प्रसन्न दिख रहे इज़रायली समुदाय के लोगों को एक चेतावनी देते हुए इस समझौते से जुड़े हुए जिन नकारात्मक पहलुओं के विषय में भविष्यवाणी की थी, दुर्भाग्यवश आज वे सभी पहलू एक-एक करके सामने आते जा रहे हैं। इतना ही नहीं लिओरा इत्ज़ाक़ जैसी भारतीय मूल की इज़रायली गायिकाओं के द्वारा भी इज़रायल-यूएई समझौते से संबंधित बाबा इज़रायली की महत्वपूर्ण श्रंखलाबद्ध चेतावनियों को सार्वजनिक रूप से इज़रायली समुदाय के मध्य प्रसारित किया गया था परंतु दुर्भाग्यवश इज़रायली नेतृत्व के ऊपर उसका कोई विशेष असर पड़ता नहीं दिखा और इस प्रकार वेस्ट बैंक की भूमि पर इज़रायली दावा कमज़ोर कर दिया गया। हालांकि इज़रायली सरकार के इस निर्णय के विरोध में बाबा इज़रायली के द्वारा जिस प्रकार से एक के बाद एक करके प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हुईं, इज़रायली समुदाय में सरकार के विरोध में स्वर मुखरित होने लगे और अंततः सरकार को यह स्पष्टीकरण देना ही पड़ गया कि उसने वेस्ट बैंक पर अपना दावा छोड़ा नहीं है।

प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः के अंतर्गत कार्य कर रही धुर दक्षिणपंथी मानी जाने वाली ‘बाबा इज़रायली विचारधारा‘ कई मायनों में भारत की पूर्ववर्ती विचारधाराओं का धारयुक्त सम्मिश्रण है। यह हमारा निजी रूप से मानना है कि आज विश्व के अन्य देशों को ही नहीं अपितु स्वयं इज़रायल को भी उनकी इस परिष्कृत विचारधारा को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जिससे वह पिछले कुछ वर्षों में विचलित होता हुआ दिखाई पड़ा है। इसी संबंध में जब बाबा इज़रायली से हमारी विस्तार से वार्ता हुई तो उसी वार्ता के उपरांत कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु निकलकर सामने आए जो कि आज भारतीय परिप्रेक्ष्य में अत्यंत ही प्रासंगिक हैं। हमारा ऐसा मानना है कि भारतीय नीति-निर्माताओं एवं बौद्धिक संस्थाओं को इन बिंदुओं का संज्ञान लेते हुए इन पर गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए-

प्रश्न: प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः क्या है?

उत्तर: प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः एक विशुद्ध सनातनी प्रोजेक्ट है जो कि इस सृष्टि के प्रारंभ से ही ‘धर्म’ अर्थात ‘सत्य’, ‘न्याय’ एवं ‘उचित व्यवस्था’ के लिए क्रियान्वित किया जाता रहा है।

प्रश्न: प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः को आज तक किस-किसने क्रियान्वित किया है और इसको कौन आगे बढ़ाने की अहर्ता रखता है?

उत्तर: यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो आदि देव महादेव, आदि शक्ति माता भवानी, भगवान श्री राम, श्री कृष्ण सहित भगवान परशुराम, ऋषि दधीचि, आचार्य चाणक्य, शिवाजी महाराज सहित अनेक देवी-देवताओं, अवतारों, महापुरुषों, धर्मनिष्ठ ऋषियों एवं सनातनी आत्माओं द्वारा समय-समय पर ‘धर्म की रक्षा’ के लिए प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः को चलाया जाता रहा है। इसके अलावा मनुष्य ही नहीं बल्कि गिद्धराज जटायु जैसे अनेक पशु-पक्षी भी धर्म रक्षार्थ इस प्रोजेक्ट का अंग रहे हैं। अतः हर वह जीव जो कि इस आर्यभूमि को पुण्य-भूमि मानता और पूजता है एवं इसको कलुषित एवं नष्ट करने वाली शक्तियों को उखाड़ फेंकने की इच्छा रखता है, वह इस प्रोजेक्ट का अंग हो सकता है।

प्रश्न: कुछ चंद लोग आख़िर कैसे इस प्रोजेक्ट के माध्यम से सामाजिक एवं राजनीतिक बदलाव ला सकते हैं?

उत्तर: इतिहास गवाह रहा है कि विश्व में जितने भी बड़े वैचारिक बदलाव आए हैं, उन सबकी शुरुआत बहुत छोटे-छोटे स्तरों से ही हुई है। यदि कोई एक विचार जो कि अपनी निष्ठा एवं सिद्धांतों की कसौटी पर विचलन को प्राप्त नहीं होता है तो फिर वह विचार भले ही अच्छा अथवा बुरा विचार क्यों न हो, एक न एक दिन वह अपना फैलाव करने में अवश्य ही प्रभावी होता है। उदाहरण के लिए मां गंगा जैसी महानदी जो कि गोमुख जैसे एक अत्यंत ही संकीर्ण उत्स से बाहर आती हुई दृष्टिगत होती हैं, अपनी स्पष्टता और अविचलितमार्गी पथ के बल पर मैदानी क्षेत्रों में अपनी विशालता के साथ तांडव करती हुई दिखा करती हैं। यह भी एक अन्य तथ्य का हिस्सा है कि यहूदीयत, ईसाइयत, इस्लाम एवं बौद्धमत जैसी मध्यकालीन विचारधाओं के साथ-साथ चाणक्यवादी एवं शिवाजीकृत वैचारिक एवं राजनीतिक बदलाव भी बहुत छोटे-छोटे स्तरों से ही प्रारंभ हुए परंतु ये बदलाव तभी मूर्त एवं विशाल स्वरूप ले सके जब उनसे संबंधित लोगों ने उन बदलावों को लाने के लिए अपनी सर्वोच्च निष्ठा का दान दिया। अतः उपरोक्त उदाहरणों पर गंभीरता के साथ विचार करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि कोई छोटा समूह भी अपने मन में एक-निष्ठता के साथ किसी भी कार्य के क्रियान्वयन का संकल्प कर ले तो विश्व में ऐसा कोई भी बदलाव नहीं है कि जिसको धरातल पर उतारा न जा सके।

प्रश्न: वर्तमान में प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः इस समय किस स्थिति में है और इसको कौन आगे बढ़ा रहा है?

उत्तर: यदि सच कहा जाए तो भारतीय परिप्रेक्ष्य में हमको अभी प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः को एक निष्ठता के साथ चलाने के लिए कोई भी सनातनी धड़ा अपनी अहर्ता पूरी करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है।

प्रश्न: ऐसे क्या कारण हैं कि आपको वर्तमान में कोई भी सनातनी धड़ा प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः को आगे बढ़ाने के लिए अपनी अहर्ता पूरी करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है?

उत्तर: इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं और ये समस्त कारण निजी, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं अन्य प्रकार के वैचारिक कारणों का सम्मिश्रण भी हैं। चूंकि ये कारण इतने बड़े, गोपनीय एवं इतनी अधिक संख्या में हैं, इसलिए इनको एकदम से बता पाना संभव नहीं है।

प्रश्न: उपरोक्त बताए गए गोपनीय कारणों को नहीं परंतु अन्य कारणों में से यदि आप कुछ उदाहरण प्रदान कर सकते हैं तो कृपया ऐसा करने का कष्ट करें!

उत्तर: हिंदुओं के अलावा विश्व के अंदर प्रत्येक मत के मतावलंबी अपने मत के हितों के लिए एकजुट रहते हैं। उनकी एकजुटता का आलम कुछ-कुछ ऐसा होता है कि शीर्ष स्तर से लेकर उनके समुदाय के निचले स्तर तक का व्यक्ति भी एक ही विचारधारा और निष्ठा से पल्लवित होता है। इस एकजुटता के पीछे का मुख्य कारण उनकी अपने मत के प्रति निष्ठा एवं समर्पण है। उनकी निजी एवं क्षेत्रीय निष्ठाएं उनके मत के प्रति निष्ठाओं से कभी आगे नहीं निकलतीं। हिंदुओं के परिप्रेक्ष्य में मामला इसके एकदम उलट है। चार शिष्य बनते ही अधिकांश तथाकथित धर्मगुरु स्वयं-भू भगवान बनकर बैठ जाते हैं और ईश-पूजा के स्थान पर स्वयं की पूजा करवाने लग जाते हैं। इसके अलावा जो तथाकथित धर्मगुरु कुछ श्रेष्ठ पदों को हासिल करने में क़ामयाब हो जाते हैं, उन्हें भी अचानक से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने और उसके द्वारा पोषित होने की बीमारी लग जाती है जिसके परिणामस्वरूप वे दुराग्रहवश सनातनी हितों के विरुद्ध तक चले जाते हैं। अभी कुछ समय पूर्व जब भारत सरकार हिंदुओं के संरक्षण हेतु पूर्ववर्ती नागरिकता क़ानून में संशोधन के लिए नया क़ानून लेकर आई तो हिंदुओं के एक शीर्षस्थ तथाकथित धर्मगुरु ने सरकार के इस स्वागतयोग्य क़दम की प्रशंसा करने के स्थान पर उसकी निंदा की। अब हमारा यह प्रश्न है कि हिंदू धर्म के शीर्षस्थ तथाकथित धर्मगुरु भी यदि राजनीतिक दुर्भावना से ग्रस्त होकर सनातनी-हितों के विरुद्ध जाकर कार्य करेंगे तो फिर उनसे धर्म-रक्षण के कार्य के क्रियान्वयन की किस प्रकार से आशा की जा सकती है? इसके अलावा हिंदू समुदाय में कुछ ऐसे ढोंगाचार्य भी हैं जो अपने नाम के आगे 1008 श्री लगवाया करते हैं। इन ढोंगाचार्यों को इतना भी नहीं पता कि श्री अर्थात ऐश्वर्य की पराकाष्ठा ही 108 श्री पर जाकर समाप्त हो जाती है जो कि केवल और केवल ईश्वर के लिए ही सुनिश्चित है। फिर ये लोग अपने नाम के आगे किस प्रकार से 1008 श्री लगवाया करते हैं? क्या ये लोग ईश्वर से भी अधिक महान हैं? ठीक इसी तरह की एक और बात आपके सामने लाते हैं। कुछ ऐसे भी माननीय हैं कि जो अपने को ‘परम-पूज्यनीय’ के नाम से विभूषित करवाते हैं। अब ज़रा इस ‘परम-पूज्यनीय’ शब्द का विग्रह करके देखिए- हिंदी भाषा में ‘पूज्यनीय’ का अर्थ होता है कि जो पूजा करने योग्य हो और ‘परम’ इसकी सर्वोच्च अवस्था को निरूपित करता है अर्थात ‘परम-पूज्यनीय’ का अर्थ है कि ‘जो पूजा करने के लिए सर्वोच्च है’। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ईश्वर के सिवा ऐसा कोई भी नहीं है जो कि सर्वोच्च पूज्यनीय हो। अतः स्वयं को ‘परम-पूज्यनीय’ कहलवाना एक प्रकार से स्वयं को ईश्वर अथवा उसके समतुल्य घोषित करवाने जैसा ही अनुचित आचरण है। आख़िर में एक बात और सुन लीजिए। वर्तमान में ऐसी भी एक तथाकथित हिंदू विचारधारा है जो स्वयं को हिंदू तो कहती है मगर उसका यह मानना है कि हिंदू होने के लिए किसी ‘आस्था’ और ‘पूजा-पद्धति विशेष’ की कोई आवश्यकता नहीं है। उसके हिसाब से भारत में पैदा होने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है। अब हमारा उस विचारधारा को मानने वाले परम-पूज्यनीयों से केवल और केवल इतना भर कहना है कि पिछले 800 वर्षों में आठ करोड़ से अधिक हिंदुओं की निर्मम हत्याएं करने वाले औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान सरीखे 90% से अधिक दुर्दांत इस्लामी दरिंदे भारत में ही पैदा हुए थे तो क्या आपकी विचारधारा के अनुसार उनको हिंदू कहा जा सकता है? इसके अलावा भारत माता के टुकड़े-टुकड़े करने वाला मोहम्मद अली जिन्ना भी भारत के गुजरात राज्य की पैदाइश था। संसद पर आतंकी हमला करने वाला मोहम्मद अफ़ज़ल गुरु एवं मुंबई हमले में सैकड़ों हिंदुओं की हत्याएं करवाने वाला याकूब मेनन भी भारत में ही पैदा हुआ था। क्या आपके अनुसार ये भी हिंदू माने जाएंगे? 1990 के दशक में कश्मीर घाटी को हिंदुओं के रक्त से नहलाने वाले इस्लामी आतंकवादी भी इसी भारत के अंदर जन्मे थे। सौ करोड़ हिंदुओं को 15 मिनट में नेस्तनाबूद कर देने की धमकी देने वाला हैदराबादी इस्लामी आतंकवादी और अलगाववादी बात करने वाला उसका बड़ा भाई भी भारत में पैदा हुए हैं। तो क्या मात्र भारत में पैदा हो जाने के कारण आपकी विचारधारा इन सबको हिंदू मानती है? यदि हिंदू होने के लिए केवल भारत में पैदा होना ही न्यूनतम अहर्ता है तो फिर क्या आपकी विचारधारा आने वाले समय में यह भी मान लेगी कि उपरोक्त वर्णित हिंदू (???) आतंकवादियों के द्वारा बरपाया जाने वाला आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद (???) है? अब हम इस बात को क्यों न मान कर चलें कि जब कोई विचारधारा भारत में पैदा होने मात्र भर से प्रत्येक व्यक्ति को हिंदू होने का प्रमाणपत्र जारी कर दिया करती है तो आने वाले समय में वह विचारधारा भारत के अंदर प्रकट होने वाले आतंकवाद को ‘हिंदू आतंकवाद’ का प्रमाणपत्र जारी नहीं करेगी? हम इस बात को भी क्यों न मानें कि हिंदुओं के आराध्य देव श्री राम को ‘इमाम-ए-हिंद’ अर्थात हिंदोस्तान का इमाम अर्थात अल्लाह का पुजारी कहकर आपकी विचारधारा ने अप्रत्यक्ष तरीके से हिंदुओं का मतांतरण करवाने का असफल प्रयास किया है?

प्रश्न: क्या आपको लगता है कि आपकी उपरोक्त बातें हिंदुओं के विभिन्न भीमकाय संगठनों की विचारधाराओं को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं?

उत्तर: सत्यम् किम् प्रमाणम्, अर्थात सत्य को प्रमाण की क्या आवश्यकता है? यदि हमारी बात ग़लत है तो उसे तर्क के आधार पर ग़लत सिद्ध किया जाना चाहिए। इसके विपरीत यदि हमारी बात सत्य है तो फिर उसे निर्विवाद रूप से स्वीकार करने में देरी भी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि सत्य को कुछ समय तक तो दबाकर रखा जा सकता है परंतु यदि उसे अधिक समय तक दबाकर रखा जाए तो एक दिन ऐसा भी आता है कि जब वैचारिक-विस्फोट जैसी विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न: मौजूदा समय में किसके ऊपर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है?

उत्तर: जैसा कि हमने ऊपर बताया कि हर वह जीव जो कि इस आर्यभूमि को महा-मंगलमई एवं पुण्य-भूमि मानता और पूजता है एवं इसको कलुषित एवं नष्ट करने वाली शक्तियों को उखाड़ फेंकने की इच्छा रखता है, वह इस प्रोजेक्ट का अंग हो सकता है।

प्रश्न: क्या प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः को आगे बढ़ाने के लिए किसी संगठन-विशेष का गठन करने की योजना अथवा आवश्यकता है?

उत्तर: ‘हिंदू’ शब्द स्वयं में ही पुण्यात्माओं का एक संगठन है। अतः किसी भी प्रकार के किसी संगठन-विशेष को बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात और कि मौजूदा समय की परिस्थितियों को देखते हुए हर नया बनने वाला संगठन हिंदुओं की एकता को जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने का कार्य कर रहा है। इसको दृष्टिगत रखते हुए अब नए संगठनों को बनाने पर नहीं अपितु पहले से बने हुए विभिन्न संगठनों के आपसी विलय पर कार्य करना ही श्रेष्ठतम होगा।

प्रश्न: तो इस समय आप किस संगठन के साथ कार्यरत हैं अथवा कौन-सा संगठन आपके साथ कार्य कर रहा है?

उत्तर: हम कोई व्यक्ति-विशेष नहीं बल्कि एक विशुद्ध सनातनी विचारधारा हैं। इसलिए हर मानवतावादी संगठन हमारा है और हर मानवतावादी संगठन के हम हैं। हम हर मानवतावादी संगठन में कार्यरत हैं और हर मानवतावादी संगठन हम में कार्यरत है।

प्रश्न: क्या प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः केवल भारत एवं भारतीय हिंदुओं की रक्षार्थ ही है?

उत्तर: सनातनी परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाए तो ‘धर्म’ का मतलब रिलीजन नहीं बल्कि ‘कर्तव्य’ अर्थात ‘ड्यूटी’ होता है। यह कर्तव्य व्यक्ति को सत्य, न्याय एवं उचित व्यवस्था के पालन, रक्षण एवं उसके समुचित प्रबंधन के लिए उद्यत करता है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरे विश्व अपना घर समझने वाला तथा ‘सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया’ अर्थात विश्व के सभी लोगों के लिए सुखी एवं निरोगी रहने की कामना करने वाला सनातन धर्म अन्य मतों की तरह किसी भी प्रकार की भौगोलिक अथवा सामाजिक सीमाओं एवं बाध्यताओं से बंधा हुआ नहीं है। इसलिए यह प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः केवल भारत एवं सनातनी हिंदुओं का ही प्रोजेक्ट न होकर समस्त विश्व एवं मानवता के रक्षण के लिए कार्य करता है।

प्रश्न: प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः का अनुसरण करना किस प्रकार से विश्व के अन्य देशों के लिए लाभप्रद हो सकता है?

उत्तर: इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर यह है कि इस प्रोजेक्ट का अनुसरण न करना, केवल भारत एवं हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए अत्यंत ही हानिकारक सिद्ध होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि भारत के अंदर ही यह प्रोजेक्ट असफल होता है और आने वाले समय में भारत एक इस्लामी देश बन जाता है तो यह न केवल भारत में रहने वाले हिंदुओं के लिए बल्कि पूरे वैश्विक मानवतावादी समुदाय के लिए अत्यंत हानिकारक होगा। आज का सशक्त, सामर्थ्यवान एवं एशिया में सामरिक दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण देश भारत चूंकि बहुत जल्दी विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है, अतः ऐसी स्थिति में यदि आने वाले समय में भारत एक इस्लामी देश में परिवर्तित हो जाता है तो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इराक़, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, इंडोनेशिया एवं अरब के समस्त इस्लामी देश मिलकर दो तिहाई से अधिक वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करेंगे। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि यदि जंगल में शूकरों की आबादी अधिक हो जाती है तो वे भी शेरों का शिकार कर लिया करते हैं। अतः यदि मध्य एवं दक्षिण एशिया के सभी इस्लामी देश एक झंडे के नीचे आ जाएंगे तो फिर आने वाले समय में चीन और रूस जैसे देशों को भी ठिकाने लगा ही दिया जाएगा। सनद रहे कि रूस जैसा शक्तिशाली देश भी 1990 के दशक में लगभग एक दर्ज़न इस्लामी देशों में विखंडित हो चुका है। इसलिए आने वाले समय में वर्तमान चीन एवं रूस विखंडित नहीं होगा, ऐसा कहना केवल और केवल अदूरदर्शिता की ही निशानी होगा। एक बार पूरी एशिया के ऊपर यदि इस्लामी परचम लहर जाता है तो फिर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीक़ा को 100% दारुल-इस्लाम बनाने में अधिक समय नहीं लगेगा। उसके बाद क्या होगा, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। आज के समय में सर्वाधिक शक्तिशाली दिख रहा देश अमेरिका कितनी जल्दी हथियार डाल देगा, इस बात की शायद अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसलिए हमारा समस्त वैश्विक मानवतावादी समुदाय से आग्रह है कि वे न केवल इस प्रोजेक्ट धर्मो रक्षति रक्षितः के भारतीय संस्करण को ही अपना समर्थन प्रदान करें बल्कि वे इस प्रोजेक्ट को समस्त विश्व के मानवतावादी देशों में प्रारंभ करने का प्रयास करें। हमारी आंखें अगले 15 से 20 वर्षों के अंदर घटने जा रही उन भयावह त्रासदी भरी घटनाओं को भी वर्तमान में स्पष्तः देख पा रही हैं जिनके विषय में आम व्यक्ति शायद स्वप्न में भी नहीं सोच सकता है।

प्रश्न: आप भारतीय हिंदुओं के साथ वैश्विक मानवतावादी समुदाय एवं शांति में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर: युद्ध के लिए सदैव तत्पर एवं उद्यत रहना ही दीर्घकालिक शांति को स्थापित करता है। इसलिए शांति में विश्वास रखने वाले लोगों से हमारा यही कहना है कि यदि वे वास्तव में दीर्घकालिक शांति के साए में रहना चाहते हैं तो उन्हें अल्पकालिक शांति को त्यागकर हर पल युद्ध के लिए तत्पर रहना होगा क्योंकि ऐसा करने से ही मानवता के दुश्मन आक्रामक होने के स्थान पर रक्षात्मक होने का प्रयास करेंगे और ऐसी स्थिति में ही शांति स्थापित रहेगी।

प्रश्न: यदि आपकी विचारधारा को गुरु मान लिया जाए तो फिर उसके उपरांत मानवता के रक्षण के लिए आप कौन-सा गुरु-मंत्र देना चाहेंगे?

उत्तर: गुरु तो केवल ईश्वर ही है। उसके अलावा मनुष्य तो केवल शिष्य मात्र ही हो सकते हैं। फिर भी यदि आपने मानवता के रक्षण के लिए मंत्र पूछा है तो हम आपसे केवल इतना ही कहेंगे कि मानवता की रक्षा कैसे की जा सकती है, इस बात को जानने के लिए धर्मराज से बेहतर कोई अन्य कैसे बता सकता है? सनातनी ग्रंथ जय-संहिता अर्थात महाभारत के वन पर्व में उद्धृत यक्ष-प्रश्न के प्रत्युत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर मानवता की रक्षा के लिए जो सबसे सीधा मार्ग बताते हैं, वह इस प्रकार है-

“धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।”

313:128, वन पर्व, जय-संहिता (महाभारत)

अर्थात, मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

शलोॐ…!

(नोट: अर्जुन इज़रायली द्वारा हिंदी में अनुवादित बाबा इज़रायली का यह साक्षात्कार इज़रायली रक्षा विशेषज्ञ एवं पत्रकार एंबर कोहेन के द्वारा जेरूसलम पोस्ट, बाबा इज़रायली डॉट कॉम एवं अन्य इज़रायली मीडिया संस्थानों के लिए दिनांक अप्रैल 05, 2021 को हिब्रू भाषा में रिकॉर्ड किया गया था। ज्ञात हो कि बाबा इज़रायली विचारधारा का इज़रायली प्रतिरूपण एंबर कोहेन इज़रायली सुरक्षा बल (IDF) में कार्यरत वरिष्ठ सैन्य अधिकारी हैं जो कि इज़रायल में रहकर भारतीय मूल्यों की संवाहिका के रूप में कार्य कर रही हैं। टीम बाबा इज़रायली की सदस्या एंबर कोहेन बाबा इज़रायली डॉट कॉम की लेखिका भी हैं। वे हिंदी-हिब्रू भाषाओं को माध्यम बनाकर हिंदू-यहूदी मूल्यों की सदानीरा बनकर भारत और इज़रायल देशों के मध्य अनवरत प्लावित हो रही हैं।)