एली कोहेन: वह इज़रायली जासूस, जिसके दम पर इज़रायल ने 6 दिन में 5 देशों को हरा दिया…!

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‘तुम चिट्ठी किसे लिख रहे हो? ये N कौन है?’

‘कुछ भी तो नहीं… बस ऐसे ही… N से नादिया। मैं कभी-कभी वक़्त गुज़ारने के लिए ये सब लिखता रहता हूं…’

‘नादिया कौन है?’

‘नादिया मेरी पत्नी का नाम है।’

‘लेकिन मुझे लगा था कि तुम्हारी शादी नहीं हुई।’

‘कामिल की शादी नहीं हुई है, लेकिन एली की शादी हुई है…’

‘एली कोई नहीं है!’

‘मुझे कभी-कभी अकेलापन महसूस होता है, जि स की वजह से मैं लिखता हूं।’

‘कामिल को कभी अकेलापन महसूस नहीं होता।’

‘ठीक है, मैं आगे से चिट्ठियां नहीं लिखूंगा।’

‘चिट्ठियां? और भी हैं? कहां हैं?’

‘जूलिया प्लीज़, मैं इन्हें कहीं पोस्ट नहीं करने जा रहा। बस सोचा कि एक दिन जब ये सब ख़त्म हो जाएगा तो मैं इन्हें (नादिया को) दिखा सकता हूं…नहीं नहीं नहीं, प्लीज़ इन्हें जलाओ मत…’

‘ये कोई खेल नहीं है कामिल। ये कोई रोल नहीं है, जिसे तुम अदा कर रहे हो। या तो तुम कामिल हो या फिर मरने के लिए तैयार रहो!’

जूलिया ग़ुस्से में उस शख़्स की गर्दन दबोचकर खड़ी हो जाती है और साथ ही धमकी भी देती है कि उसे इस हरकत के बारे में अपने आला अफ़सरों को ख़बर देनी होगी। कामिल समझ जाता है कि उससे भूल हुई है और इसे दोहराने की बेवकूफ़ी वो नहीं कर सकता।

पीछे मौजूद फ़ायरप्लेस में चिट्ठियां राख़ में तब्दील हो गईं और साथ ही नादिया से जुड़े अरमान भी और एली ने एक बार फिर कामिल का जामा पहन लिया। एली या कामिल, कामिल या एली, इज़रायली या सीरियाई, जासूस या कारोबारी!

कहानी भले फ़िल्मी लगे, लेकिन एली कोहेन की ज़िंदगी कुछ इसी तरह के थ्रिल से सजी थी। पूरा नाम एलीआहू बेन शॉल कोहेन! इन्हें इज़रायल का सबसे बहादुर और साहसी जासूस भी कहा जाता है। वह जासूस जिसने चार साल न केवल दुश्मनों के बीच सीरिया में गुज़ारे, बल्कि वहां सत्ता के गलियारों में ऐसी पैठ बनाई कि शीर्ष स्तर तक पहुंच बनाने में भी क़ामयाब रहे। कोहेन, कामिल बनकर सीरियाई राष्ट्रपति के इतना क़रीब पहुंच गए थे कि वो सीरिया का डिप्टी डिफ़ेंस मिनिस्टर बनने से बस ज़रा से फ़ासले पर थे। ऐसा कहा जाता है कि कोहेन की जुटाई ख़ुफिया जानकारी ने ही सन 1967 के अरब-इज़रायल युद्ध में इज़रायल की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।

ये शख़्स न इज़रायल में जन्मे थे, न सीरिया या अर्जेंटीना में। एली का जन्म 06 दिसंबर, सन 1924 में मिस्र के एलेग्ज़ेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता सन 1914 में सीरिया के एलेप्पो से यहां आकर बसे थे। जब इज़रायल बना तो मिस्र के कई यहूदी परिवार वहां से निकलने लगे। सन 1949 में कोहेन के माता-पिता और तीन भाइयों ने भी यही फ़ैसला किया और इज़रायल जाकर बस गए लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहे कोहेन ने मिस्र में रुककर अपना कोर्स पूरा करने का फ़ैसला किया। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मुताबिक़ अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा पर ग़ज़ब की पकड़ की वजह से इज़रायली ख़ुफ़िया विभाग उन्हें लेकर काफ़ी दिलचस्प हुआ। सन 1955 में वह जासूसी का छोटा सा कोर्स करने के लिए इज़रायल गए भी और अगले साल मिस्र लौट आए। हालांकि, स्वेज़ संकट के बाद दूसरे लोगों के साथ कोहेन को भी मिस्र से बेदख़ल कर दिया गया और सन 1957 में वो इज़रायल आ गए। यहां आने के दो साल बाद उनकी शादी नादिया मजाल्द से हुई, जो इराक़ी-यहूदी थीं और लेखिका सैमी माइकल की बहन भी। सन 1960 में इज़रायली ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती होने से पहले उन्होंने ट्रांसलेटर और एकाउंटेंट के रूप में काम किया।

आगे की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कोहेन सन 1961 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स पहुंचे, जहां उन्होंने सीरियाई मूल के कारोबारी के रूप में अपना काम शुरू किया। कामिल अमीन थाबेत बनकर कोहेन ने अर्जेंटीना में बसे सीरियाई समुदाय के लोगों के बीच कई संपर्क बनाए और जल्द ही सीरियाई दूतावास में काम करने वाले आला अफ़सरों से दोस्ती गांठकर उनका भरोसा जीत लिया। इनमें सीरियाई मिलिट्री अटैचे अमीन अल-हफ़ीज़ भी थे, जो आगे चलकर सीरिया के राष्ट्रपति बने। कोहेन ने अपने ‘नए दोस्तों’ के बीच ये संदेश पहुंचा दिया था कि वो जल्द से जल्द सीरिया ‘लौटना’ चाहते हैं। सन 1962 में जब उन्हें राजधानी दमिश्क जाने और बसने का मौका मिला तो अर्जेंटीना में बने उनके संपर्कों ने सीरिया में सत्ता के गलियारों तक उन्हें गज़ब की पहुंच दिलाई। क़दम जमाने के तुरंत बाद कोहेन ने सीरियाई सेना से जुड़ी ख़ुफ़िया जानकारियां और योजनाएं इज़रायल तक पहुंचाना शुरू कर दिया। जासूसी के क्षेत्र में कोहेन की कोशिशें उस वक़्त और अहम हो गईं जब सन 1963 में सीरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ। बाथ पार्टी को सत्ता मिली और इनमें ऐसे कई लोग थे जो अर्जेंटीना के ज़माने से कोहेन के दोस्त थे।

तख़्तापलट की अगुवाई की अमीन अल-हफ़ीज़ ने, जो कि राष्ट्रपति बने। हफ़ीज़ ने कोहेन पर पूरा एतबार किया और ऐसा कहा जाता है कि एक बार तो वो उन्हें सीरिया का डिप्टी रक्षा मंत्री बनाने का फ़ैसला कर चुके थे। कोहेन को न केवल ख़ुफ़िया सैन्य ब्रीफ़िंग में मौजूद रहने का मौक़ा मिला बल्कि उन्हें गोलन हाइट्स में सीरियाई सैन्य ठिकानों का दौरा तक कराया गया। उस समय गोलन हाइट्स इलाके को लेकर सीरिया और इज़रायल के बीच काफ़ी तनाव था। ‘द स्पाई’ सिरीज़ में एक वाकया दिखाया गया कि किस तरह कोहेन, गर्मी और सीरियाई सैनिकों के उसमें तपने का हवाला देकर वहां यूकेलिप्टस पेड़ लगाने का आइडिया देते हैं और ये पेड़ लगाए भी जाते हैं। कहा जाता है कि सन 1967 की मिडल ईस्ट वॉर में इन पेड़ों और गोलन हाइट्स से जुड़ी कोहेन की भेजी दूसरी जानकारी ने इज़रायल के हाथों सीरिया की हार की नींव रखी थी। इन्हीं पेड़ों की वजह से इज़रायल को सीरियाई सैनिकों की लोकेशन पता लगाने में काफ़ी मदद मिली।

जासूसी पर कोहेन की ज़बरदस्त पकड़ के बावजूद उनमें लापरवाही की एक झलक भी दिखती थी। इज़रायल में उनके हैंडलर बार-बार उन्हें रेडियो ट्रांसमिशन के समय चौकन्ना रहने की हिदायत दिया करते थे। साथ ही उन्हें ये निर्देश भी थे कि एक दिन में दो बार रेडियो ट्रांसमिशन न करें लेकिन कोहेन बार-बार इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया करते थे और उनके अंत की वजह भी यही लापरवाही बनी। जनवरी 1965 में सीरिया के काउंटर-इंटेलीजेंस अफ़सरों को उनके रेडियो सिग्नल की भनक लग गई और उन्हें ट्रांसमिशन भेजते समय गिरफ़्तार कर लिया गया। कोहेन से पूछताछ हुई, सैन्य मुक़दमा चला और आख़िरकार उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई। कोहेन को सन 1966 में दमिश्क में एक सार्वजनिक चौराहे पर फांसी दी गई थी। उनके गले में एक बैनर डाला गया था, जिसका शीर्षक था ‘सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की तरफ़ से…’

इज़रायल ने पहले उनकी फांसी की सज़ा माफ़ करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया लेकिन सीरिया नहीं माना। कोहेन की मौत के बाद इज़रायल ने उनका शव और अवशेष लौटाने की कई बार गुहार लगाई लेकिन सीरिया ने हर बार इनकार किया। मौत के 53 साल गुज़रने के सन 2018 में कोहेन की एक घड़ी ज़रूर इज़रायल को मिली। इज़रायल प्रधानमंत्री के कार्यालय ने इस बात की घोषणा की थी। इज़रायल के कब्ज़े में ये घड़ी कब और कैसे आई, इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी। सिर्फ़ इतना बताया गया कि ‘मोसाद (इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी) के ख़ास ऑपरेशन’ में इस घड़ी को बरामद कर इज़रायल वापस लाया गया। मोसाद के डायरेक्टर योसी कोहेन ने तब कहा था कि ये घड़ी एली कोहेन ने पकड़े जाने वाले दिन तक पहनी हुई थी और ये ‘कोहेन की ऑपरेशनल इमेज और फ़र्ज़ी अरब पहचान का अहम हिस्सा थी।’ इस घड़ी के मिलने पर इज़रायल प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने एक बयान में कहा था, “मैं इस साहसिक और प्रतिबद्धतापूर्ण अभियान के लिए मोसाद के लड़ाकों को लेकर गर्व महसूस कर रहा हूं। इस ऑपरेशन का एकमात्र उद्देश्य उस महान योद्धा से जुड़ा कोई प्रतीक इज़रायल लाना था जिसने अपने देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका अदा की थी।”

बाद में ये घड़ी कोहेन की विधवा नादिया को एक निजी समारोह में सौंपी गई थी। उन्होंने इज़रायल टीवी से तब कहा था, “जिस पल मुझे पता चला कि ये घड़ी मिल गई है, मेरा गला सूख गया और शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई।” नादिया ने कहा, “उस वक़्त मुझे लगा जैसे कि मैं उनका हाथ अपने हाथ में महसूस कर सकती हूं। मुझे ऐसा अहसास हुआ कि उनका एक हिस्सा हमारे साथ है।” एली कोहेन और नादिया कोहेन की तीन संतानें सोफ़िया कोहेन, शाय कोहेन और इरित कोहेन, आज भी अपने पिता की उस घड़ी को उनकी कुर्सी पर सजाकर रखती हैं।

शलोॐ…!